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गुलदस्ता

ऋषिवंश

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6365
आईएसबीएन :81-288-1788-4

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आत्मा के घोर अकेलेपन से उपजी ये कविताएँ उस विराट अकेलेपन से संध्या-भाषा में बात करती हैं....

Guldasta - A hindi Book by Rishivansh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


ऋषिवंश व्यक्ति के तौर पर और कवि के तौर पर इंसानी सिलसिले से एकमद भिन्न हैं और अपने आप में एक अपवाद जैसे हैं। इनकी कविताएँ भी इस लिहाज से इस या उस दौर की कविताएँ नहीं हैं। इन कविताओं में किसी आइडियोलॉजी को, सांसारिक रुझान को, तर्क से उपजी भ्रात्मक प्रतिबद्धता को और बौद्धिक खुदा होने की जिद या अकड़ को खोजना व्यर्थ है।

आत्मा के घोर अकेलेपन से उपजी ये कविताएँ उस विराट अकेलेपन से संध्या-भाषा में बात करती हैं, जो तमाम चराचर के पीछे परा-सौंदर्य, अनदेखी जीवंत उपस्थिति और पावन आत्मानुभूति के रूप में व्याप्त है और आँख के लिए अदृश्य होकर भी मन के अनुभव को स्वयंसिद्ध तौर पर प्राप्त है। निजी मौन के विराट मौन से मूक संवाद के रूप में भाषा पुल बनकर आती है। सो इन रचनाओं में भाषा एक पुल है, बहाना है, सांसारिक औपचारिकता है। नतीजतन ऋषिवंश की भाषा दर्सल कुछ नहीं कहती। वह समझने की नहीं, अनुभव की चीज है। समझना डिटेन्शन है, विलम्ब है, जबकि ये कविताएँ माँग करती हैं कि आप बिना समझे अनुभव की झलक ले जाएँ। तत्काल ! एक सडन फ्लैश में।

जैसा कहा, ऋषिवंश की रचनाएँ किसी दौर से संबंध नहीं रखतीं। उनका सीधा संबंध शाश्वत से है, चिर वर्तमान से है और शब्दातीत आत्मउपस्थिति से है, जहाँ दुःख और मौत नहीं होते, किन्तु पत्ते-पत्ते से प्रेम और करुणा होती है। इसी एक्शन से आगे बढ़कर ये सायलेन्स के द्वारा दी जाती हुई मदद हैं जो आपको धन्यभाव से भरती हैं और स्मरण कराती हैं कि शरीर होते भी आप उससे बड़ी चीज हैं, जिसे मौत और सांसारिक क्लेश नहीं छूते, क्योंकि दुख शरीर तक है। उपस्थिति को कुछ नहीं होता। उपस्थिति शाश्वत है, अमूर्त है, पावन विराट शून्य के रूप में चराचर में व्यापी हुई है।

ऋषिवंश की रचनाएँ उपस्थित शरीर से गढ़ी गई कविताएँ या रचनाएं नहीं हैं, बल्कि निराकार शाश्वत उपस्थिति से उपजे ध्वनि-फूल, शब्द-फूल हैं। यहाँ भाषा केवल सांसारिकता, औपचारिकता के तौर पर आई है, जबकि उसका इशारा भाषा के पार उस पावन उपस्थिति, उस अमूर्त सौन्दर्य, उसे इंद्रियातीत आनंद की तरफ है, जिसे आत्मा या परमात्मा कहा गया है। और फिर शब्दातीत मौन।

महमहाता गुलदस्ता : राहत देता काव्य

ऐसी घनी उदासियाँ बहते जिगर के छाले
किस जुर्म की सजा में दिल दर्द के हवाले।

आदमी होना हँसी मजाक नहीं
और कुछ इससे दर्दनाक नहीं।

अभी अभी उसने बतलाया दर्द कई हैं भारी-भारी
रोटी और पेट का रिश्ता दिल का और नजर का रिश्ता।

सहते सहते गम से यारी हो गयी
सारी दुनिया ही हमारी हो गई।

तेरे मैखाने सरेआम से खाली खाली
सुरूर और ही उस कुदरती शराब का है।

दिल दर्द सुना करता दिल दर्द कहा करता
अहसास का समुन्दर चुपचाप बहा करता।

करिश्मा है सबसे अच्छा
आदमी का खिलखिलाना।

यह बहाना वह बहाना
मौत का भी क्या ठिकाना।

रुक गई थी थोड़ा सुस्ताने अभी
फिर चलेगी दर्द की बारात।

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