कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँप्रकाश माहेश्वरी
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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।
साहब पूर्ण गंभीर थे, ''आपकी रिटायरमेंट के महीने-भर पूर्व रामप्रसादजी मेरे पास आए थे और उन्होंने ही ऐसा करने के लिए मुझसे अनुरोध किया था।''
''म्...मगर क्यों?''
''बनवारीलालजी!'' साहब की आवाज़ भारी हो गई, ''आपकी आँखों पर तो ममता की पट्टी बँधी थी। आप कुछ देख नहीं पा रहे थे। मगर रामप्रसादजी ने सब भाँप लिया था।''
''क्या?''
''आपके बेटे-बहुओं में से एक भी आपकी सेवा नहीं करने वाला। सबके सब अपने-अपने हिस्से पर नज़रें गड़ाए थे।''
बनवारीलाल की आँखें आश्चर्य से फैल गईं।
साहब एक-एक शब्द तौलते गहराई से उन्हें घूर रहे थे, ''बनवारीलालजी, यदि इन फंड्स के पैसे भी रामप्रसादजी रिटायरमेंट के दिन ही दिलवा देते तो...''
''तो?'' बनवारीलाल का कलेजा मुँह को आ गया। वे तो इनका बँटवारा भी तीनों में...?
''फिर आज क्या करते आप? ऑ?''
सोचकर ही बनवारीलाल भीतर तक दहल उठे। क्या हालत होती उनकी आज? उनके नेत्र पुनः छलछला आए। वे व्यर्थ ही अपने मित्र को दोष देते रहे। मगर उसने तो...? उनका दिल अपने मित्र से मिलने को तड़प उठा। वे जाने के लिए तत्कण उठे। तभी उन्होंने देखा-रामप्रसाद ठीक उनके पीछे खड़े हैं। 'रामप्रसाद' कहते हुए वे उनके गले लग फूट-फूटकर रो पड़े। दोस्ती का फर्ज कैसे अनोखे अंदाज़ में निभाया था इस निर्मोही ने!
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