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अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

प्रकाश माहेश्वरी

प्रकाशक : आर्य बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6296
आईएसबीएन :81-7063-328-1

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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।

साहब पूर्ण गंभीर थे, ''आपकी रिटायरमेंट के महीने-भर पूर्व रामप्रसादजी मेरे पास आए थे और उन्होंने ही ऐसा करने के लिए मुझसे अनुरोध किया था।''

''म्...मगर क्यों?''

''बनवारीलालजी!'' साहब की आवाज़ भारी हो गई, ''आपकी आँखों पर तो ममता की पट्टी बँधी थी। आप कुछ देख नहीं पा रहे थे। मगर रामप्रसादजी ने सब भाँप लिया था।''

''क्या?''

''आपके बेटे-बहुओं में से एक भी आपकी सेवा नहीं करने वाला। सबके सब अपने-अपने हिस्से पर नज़रें गड़ाए थे।''

बनवारीलाल की आँखें आश्चर्य से फैल गईं।

साहब एक-एक शब्द तौलते गहराई से उन्हें घूर रहे थे, ''बनवारीलालजी, यदि इन फंड्स के पैसे भी रामप्रसादजी रिटायरमेंट के दिन ही दिलवा देते तो...''

''तो?'' बनवारीलाल का कलेजा मुँह को आ गया। वे तो इनका बँटवारा भी तीनों में...?

''फिर आज क्या करते आप? ऑ?''

सोचकर ही बनवारीलाल भीतर तक दहल उठे। क्या हालत होती उनकी आज? उनके नेत्र पुनः छलछला आए। वे व्यर्थ ही अपने मित्र को दोष देते रहे। मगर उसने तो...? उनका दिल अपने मित्र से मिलने को तड़प उठा। वे जाने के लिए तत्कण उठे। तभी उन्होंने देखा-रामप्रसाद ठीक उनके पीछे खड़े हैं। 'रामप्रसाद' कहते हुए वे उनके गले लग फूट-फूटकर रो पड़े। दोस्ती का फर्ज कैसे अनोखे अंदाज़ में निभाया था इस निर्मोही ने!

 

 

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    अनुक्रम

  1. पापा, आओ !
  2. आव नहीं? आदर नहीं...
  3. गुरु-दक्षिणा
  4. लतखोरीलाल की गफलत
  5. कर्मयोगी
  6. कालिख
  7. मैं पात-पात...
  8. मेरी परमानेंट नायिका
  9. प्रतिहिंसा
  10. अनोखा अंदाज़
  11. अंत का आरंभ
  12. लतखोरीलाल की उधारी

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