कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँप्रकाश माहेश्वरी
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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।
मेरा सारा रोमांटिक मूड हवा हो गया। उसे समझाने का बहुतेरा यत्न किया। मगर वह कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं थी। इत्तेफ़ाक से उसी वक्त उसके भैया लेने आ गए थे। मुँह फुलाए वह उनके साथ नैहर रवाना हो गई। हारकर मैंने 'नायिका' का नाम बदल दिया। कहानी पूरी हो गई थी, लिखकर अखबार को भेज दी।
कुछ दिनों बाद छप गई, रोमांटिक कहानी थी। कहानी में जगह-जगह नायिका की सुंदरता का मदहोश करने वाला बेहद लुभावना, दिलकश वर्णन था। पढ़ने वाले को नशा छा जाता। कुँवारों के तो मन में हिल्लोरें उठने लगतीं-मेरे सपनों की नायिका ऐसी हो, ऐसी हो, बस ऐसी ही हो!
मगर मेरी पत्नी का पारा एकदम चढ़ गया। कहानी की नायिका का नाम, मेरी खूबसूरत 'मौसेरी साली' के नाम पर था!
पढ़ते ही मेरी पत्नी भन्ना उठी। पहली ही गाड़ी पकड़ दनदनाती हुई आ गई। कमरे में घुस मुझपर बरस पड़ी, ''आपको कुछ लाज-शरम भी है या नहीं?''
''क्यों? अब मैंने क्या किया?'' मैं घबराया।
''छिः-छिः...मुझे तो सोचते हुए भी मितली आती है। आप मेरी बहन को इस कदर घूर-घूर कर देखते थे?''
''नहीं-नहीं, कसम से। मैंने उनको नज़र उठाकर भी नहीं देखा।''
''फिर उनकी सुंदरता का ऐसा नख-शिख वर्णन कैसे कर दिया? एकदम हूबहू?''
मैंने सिर पकड़ लिया। अब किसी लड़की की सुंदरता का वर्णन करने के लिए उसे घूरकर देखने की क्या जरूरत? मैंने फुसलाने वाले अंदाज़ में कहा, ''सभी सुंदर लड़कियों के वर्णन एक जैसे होते हैं। नाम चाहे जिसका रख दो, चाहे श्रीदेवी का, चाहे तुम्हारा...? क्या फ़र्क पड़ता है?''
"...?"
श्रीदेवी से अपनी तुलना किए जाते ही उसकी बाछें खिल गईं। उसने लजाकर नैन झुका लिए।
मैंने तत्कण 'भाभीवाला' किस्सा सुनाते हुए कहा, ''...इसी लफड़े के कारण मैंने ये नाम खोजे थे, मगर तुम समझी...''
वह भी समझ गई। अब हर कहानी के लिए कब तक ऐसे नाम खोजना, जो किसी रिश्तेदार के न हों? 'मालती, चमेली' उसके नैहर की तरफ भी नहीं हैं। उसकी स्वीकृति मिलते ही, मालती-चमेली पुनः मेरी परमानेंट नायिका...म् माफ करना, मेरी कहानियों की परमानेंट नायिका बन गईं।
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