कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँप्रकाश माहेश्वरी
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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।
लतखोरी की इच्छा हुई वे जूते वहीं अपने सिर पर दे मारे। वह हाथ जोड़ रोने लगा, ''यार टिल्लू मेरे दोस्त...मेरे भाई, मेरे हमदम...एक बात सुनेगा?''
टिल्लू घबराया-यह घनचक्कर अब कौन सी नई स्कीम बना रहा है? लतखोरी ने जूते उसके हाथ में दे दिए, ''ये जूते प्लीज लालाजी को वापस कर आएगा?''
''तेरा दिमाग ठीक है?'' टिल्लू करेंट लगे सा उछला, ''लालाजी इन्हीं जूतों से मेरी खोपड़ी गंजी कर देंगे।''
''फिर मैं क्या करूँ?''
''फेंक इनको...'' और उसने जूते फेंक दिए।
लतखोरी वहीं सिर पकड़कर बैठ गया। घबराहट अभी तक उसकी कम नहीं हुई थी। बार-बार अपने भाग्य को सराहता। कितने सही वक्त पर लालाजी उसे दिख गए थे! यदि एक सेकेंड की भी देरी हुई होती तो ललाइन मार-मारकर वह गत बनाती कि ज़िंदगी भर याद रहती।
'गत बनाने' से उसे ध्यान आया शाम को पिताजी को जब मालूम पड़ेगा कि वह मरने वाले लाला के घर गया ही नहीं और जिंदे लाला की शवयात्रा निकालने पहुँच गया, तो वे खाल खींच लेंगे।
यही डर टिल्लू को भी सता रहा था। खबर उसके घर भी पहुँचेगी। लेकिन वे दोनों करें क्या? लतखोरी को अभी भी याद नहीं आ रहा था-माँ ने कौन से लालाजी के मरने का बोला था? हारकर टिल्लू ने जेब से सिक्का निकाला। पिछले ही हफ्ते टी.वी. पर 'शोले' फिल्म आई थी। अमिताभ सिक्का उछालकर निर्णय करता है। उन्होंने भी उछाला...हेड आए तो हाथीवाले लाला गए टेल आए तो टालवाले लाला...हेड आया। मतलब हाथीवाले लाला ऊपर और दोनों हाथीवाले लाला के घर की ओर रवाना हुए। हाथीवाले लाला के लड़के सोहनलाल एक राजनीतिक पार्टी में थे। घोटालों के आरोपों में वे अंदर हो गए थे। उस दिन उनके मुकदमे का फैसला था। सुबूतों के अभाव में वे बाइज्जत बरी हो गए थे। उनके समर्थक उन्हें खुली जीप में बाजे गाजे के साथ घर लाए थे। जीप 'फूलमालाओं' से सजाई गई थी। समर्थकों से भरी एक अन्य 'ट्रैक्टर ट्राली' भी मालाओं से सजी हुई थी। उनके घर के आगे समर्थकों की भारी भीड़ थी। उतने लोगों को देख लतखोरी व टिल्लू को भरोसा हो गया कि हाथीवाले लाला ही मरे हैं। 'उठाने वाले लोग आ गए हैं' यह सोच वे जल्दी-जल्दी पग बढ़ाने लगे। थोड़ा और निकट आने पर उन्हें फूलमालाओं से सजी 'ट्रेक्टर ट्रॉली' नज़र आ गई! अब तो संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। हाथीवाले लाला हाथी जैसे भारी थे। उनके वजन से बाँस की अर्थी तो टूटती ही, उठाने वालों के कंधे भी टूट जाते। 'इसी वास्ते तो शवयात्रा के लिए ट्रेक्टर-ट्रॉली का इंतजाम किया है...'
उन्हें समझते देर नहीं लगी। तभी भीड़ में उन्हें सोहनलाल नज़र आया।
''अरे! ये घपलेबाज कब छूटा?''
''जेलवालों ने छोड़ा होगा, बेचारे का बाप मर गया न।''
''हाँ, यही बात होगी।''
जेल में रहते हुए सोहनलाल का शरीर काफी झटक गया था, दाढ़ी भी बढ़ी हुई थी। 'बाप की मौत का स्वभाविक सदमा लगा है मोटू को', दोनों ने सोचा।
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- पापा, आओ !
- आव नहीं? आदर नहीं...
- गुरु-दक्षिणा
- लतखोरीलाल की गफलत
- कर्मयोगी
- कालिख
- मैं पात-पात...
- मेरी परमानेंट नायिका
- प्रतिहिंसा
- अनोखा अंदाज़
- अंत का आरंभ
- लतखोरीलाल की उधारी