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अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

प्रकाश माहेश्वरी

प्रकाशक : आर्य बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6296
आईएसबीएन :81-7063-328-1

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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।

यद्यपि दादाजी-दादीजी के जाने के बाद यहाँ उन पर होने वाले खर्च में बचत हो जाएगी। यानी बप्पा की आधी की आधी पगार। बरसों के दबाए

कई अरमान धीरे-धीरे पूरे होंगे। मगर दादाजी-दादीजी को वैसे उपेक्षा भरे माहौल में रख क्या वे सब यहाँ सुखी रह पाएँगे? इनसे सुख का एक कौर भी खाते बनेगा?

रेवती का हृदय भर आया।

बाहर ताँगेवाला भोंपू बजाकर गुहार मचा रहा था। दादाजी-दादीजी ने अंतिम बार तृषित नजरों से घर की ओर निहारा। जहाँ सम्मानपूर्वक पूरी जिंदगी बिता दी, अब उसी दरो-आंगन को छोड़कर जाना पड़ रहा था! वाह रे बुढ़ापे!!

एक-एक करके सब उनके चरण-स्पर्श करने लगे। रेवती...रंजन...टिंकू..। दादाजी-दादीजी निर्मल हृदय उन सबको आशीर्वाद देते गए। सबके पीछे माँ आईं...। अपनी सूती...पैबंद लगी साड़ी में।

माँ को देखते ही दादीजी की रुलाई फूट पड़ी। बेटी सरीखी बहू! पिछले जन्म में पता नहीं कितने पुण्य-कर्म किए होंगे, जो इतनी सेवामयी बहू मिली थी। शादी के बाद एक दिन भी तो बेचारी मनचाहा खा-पी-पहन नहीं सकी। हे प्रभो! अब इसके दिन भी फेर दे, यह भी कुछ सुख-चैन से रह ले...। आशीर्वाद देने के लिए दादीजी ने ज्यों ही हाथ बढ़ाया, माँ ने लपककर उन्हें बाँहों में भींच लिया, ''नहीं, अम्माजी...नहीं..., मैं नहीं जाने दूँगी तुम्हें उस नर्क में!''

सुनते ही ताँगे में सामान जमा रहे बप्पा ने पलटकर देखा।

...माँ दादीजी को हीरों की थैली-सा बाँहों में भर बेतहाशा चूमे जा रही थीं।

बप्पा की आँखों से हठात् गंगा-जमुना बह चली।

रेवती-रजन-टिंकू की आँखों से भी बादल बरस रहे थे।

सामने मंदिर में पंडितजी सस्वर गा रहे थे, '...आव नहीं आदर नहीं, नैनन नहीं सनेह...तुलसी तहाँ न जाइए चाहे कंचन बरसे मेह...'

 

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    अनुक्रम

  1. पापा, आओ !
  2. आव नहीं? आदर नहीं...
  3. गुरु-दक्षिणा
  4. लतखोरीलाल की गफलत
  5. कर्मयोगी
  6. कालिख
  7. मैं पात-पात...
  8. मेरी परमानेंट नायिका
  9. प्रतिहिंसा
  10. अनोखा अंदाज़
  11. अंत का आरंभ
  12. लतखोरीलाल की उधारी

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