लोगों की राय

इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


मैंने आपसे जो कुछ कहा, उसके बारे में मैं आपको मिसाल देना चाहता हूँ। चन्द रोज हुए, मध्यस्थ सरकार के हमारे इण्डस्ट्री (उद्योग) के मिनिस्टर ने एक कान्फरेंस बुलाई थी। उसमें देश भर से लेबर (श्रम) के मिनिस्टरों और प्रतिनिधियों को बुलाया था, साथ ही उद्योगपतियों को भी बुलाया था। इस कान्फरेंस में इस बात पर विचार किया गया कि उद्योगपतियों को क्या करना चाहिए तथा लेबर को क्या करना चाहिए। बहुत सोच-विचार के बाद सब ने मिलकर फैसला किया कि हमें तीन साल तक के लिए एक ट्रूस (सन्धि) करना चाहिए। दोनों ने कबूल किया कि तीन साल तक हम हड़ताल नहीं करेंगे। अब यह फैसला करने के बाद सब लोग घर चले गए। दो दिन के बाद लेबर के प्रतिनिधि बम्बई में पहुँचे और वहाँ उन्होंने रेजोल्यूशन (प्रस्ताव) पास किया कि बम्बई में एक रोज की हड़ताल की जाए। इस तरह दूसरे ही दिन उन्होंने अपना वायदा तोड़ दिया। अब इससे क्या फायदा हुआ? वे शायद समझते हैं कि ऐसा करने से वे सिद्ध कर देंगे कि वही मजदूरों के प्रति-निधि हैं। मगर ऐसा करने से यह सिद्ध कहाँ होता है? एक रोज छुट्टी मिले और लेबर से कहा जाए कि आपको तनख्वाह भी मिलेगी तो कौन काम करना चाहेगा? उससे क्या फायदा हुआ? लेकिन मुल्क को इससे कितना नुकसान हुआ? अब आप देखिए कि मजदूरों को कैसी गलत तालीम दी जाती है। अब इधर कहा जाता है, पांच तारीख को इधर भी हड़ताल करो। लेकिन कलकत्ता को इन हड़तालों का बहुत बुरा अनुभव हुआ है। आपको नहीं मालूम है एक दिन की छुट्टी मनाने में कितना नुकसान होता है और रुलिस पर कितना बोझ पड़ता है। उसमें कहीं कोई फिसाद न हो, यह पोलीस को देखना होता है। यह आपको समझना चाहिए कि उससे मजदूरों को कोई फायदा नहीं होता। फिर भी भोले-भाले लोग उसी रास्ते पर चल पड़ते हैं। वह समझते हैं कि हमारा हित इसी में है, इसलिए वे बहक जाते हैं। लेकिन उससे सब का बहुत नुकसान होता है। तो मैं आप लोगों से बड़ी अदब से प्रार्थना करना चाहता हूँ कि दो-चार साल काम करने दीजिए। हिन्दुस्तान आज जिस हालत में है, उस हालत में से वह निकल जाए, तो उसके बाद जितना जो कुछ आपको करना हो, कीजिए। लेकिन देश को कुछ ताकतवर बन जाने दीजिए। आजाद हिन्दुस्तान का तो अभी जन्म ही हुआ है। जब वह शक्तिशाली बन जाएगा, तो आपको जो कुछ करना हो कीजिएगा। लेकिन अभी वैसी बात कुछ न कीजिए। इसका मतलब यह नहीं है कि मजदूरों के साथ अन्याय किया जाए।
कुछ लोग कभी-कभी मुझ पर इल्जाम भी लगाते हैं कि वह तो राजाओं का पिट्ठू है। कुछ लोग मुझे धनिकों और जमींदारों का भी पिट्ठू कहते हैं। मगर मैं असल में सबका पिटठू हूँ, मैं मजदूरों का भी हूँ क्योंकि मैं मजदूरों का काम भी करता हूँ। लेकिन मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि आपमें से बहुत कम लोग जानते होंगे कि जब से मैंने गान्धी जी का साथ दिया, तब से मेरे पास कोई दमड़ी भी अपनी नहीं है। तब से एक धेला भी मैंने अपना बना कर नहीं रक्खा। क्योंकि यह उनके सिद्धान्त के खिलाफ है। तो मुझे मिलकीयत की कोई जरूरत नहीं है। हाँ, जैसे गान्धी जी भी धनिकों को समझाने की कोशिश करते हैं वैसा ही मैं भी करता हूँ। धनिकों के पास से धन लेकर मैं उसे अच्छे काम में लगा सकता हूँ। वही मैं करता हूँ। लेकिन आजकल जो एक रवैया चल रहा है कि लीडर बनना हो तो पब्लिक मीटिंग में जाकर कैपिटलिस्ट को दो-चार गाली दे दो, नहीं तो लीडर नहीं बन सकते। वह मुझे पसन्द नहीं। दूसरा एक रवैया यह चल रहा है कि दो-चार गाली राजाओं को भी दे दो। इस प्रकार का लीडर मैं नहीं हूँ। इस प्रकार की लीडरी मुझे नहीं आती है। मैं यह सब पसन्द नहीं करता क्योंकि इस तरह की बातों से हम जनता को अच्छी तालीम नहीं देते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book