लेकिन हमारे जो भाई मुस्लिम
लीग के लीडर थे, उन लोगों ने यह बात सोची कि हमें तो अलग ही होना है और
इसी में मुसलमानों का कल्याण है, मुसलमानों की रक्षा है। और वे कहते रहे
कि हमें 'सैपरेट इलेक्शन' (पृथक निर्वाचन) से कोई फायदा नहीं, उससे हमारी
कोई रक्षा नहीं होती। यदि हमको कोई वेटेज (अधिक सीटें) दिया, तो उससे भी
हमारा कोई काम नहीं होता। इसी तरह से, हमको और छोटी-मोटी चीज़े दी जाएँ, तो
उनसे भी हमें कोई फायदा नहीं होता। हमको तो हमारा अलग हिस्सा चाहिए।
हिन्दुस्तान के लीगी मुसलमान यही बात कह कर घूमने लगे और उनका काफी प्रचार
हुआ। जो नौजवान मुसलमान कालेजों में पढ़ते थे, उन पर भी इन बातों का प्रभाव
हुआ और उन लोगों ने मान लिया कि यही बात सही है। हमें कबूल करना चाहिए कि
बहुत से मुसलमानों के दिल में यह ख्वाहिश पैदा हुई कि अगर हमारा राज्य अलग
हो जाएगा, तो हम स्वर्ग में चले जायँगे। हम उनकी ख्वाहिश को रोक नहीं सके,
दबा नहीं सके और हमारे बीच एक बहुत बड़ी दीवार उठ खड़ी हुई।
कांग्रेस का यह सिद्धान्त था
कि हम इतनी सदियों से एक साथ रहे, चाहे किसी तरह भी रहे। आखिर बहुत से
मुसलमान, अस्सी फी सदी बल्कि नब्बे फीसदी मुसलमान, असल में तो हमारे में
से ही गए थे और उन्होंने धर्मान्तर कर लिया था। धर्मान्तर करने से कल्चर
कैसे बदल गई? दो नेशन्स कैसे बन गई? यदि गान्धी जी का लड़का मुसलमान हो गया
तो वह दूसरी नेशन का कैसे हो गया? और चन्द दिनों के बाद वह फिर हिन्दू बन
गया, तो क्या उसने नेशन बदल ली? नेशन बार-बार थोड़े ही बदली जाती है? इस
तरह से क्या जाति ही बदल जाती है? तो हमने समझाने की बहुत कोशिश की। मगर
किसी ने नहीं सुना और जब हम समझे कि मुल्क बरबाद हो रहा है। उसके बाद वे
१६ अगस्त, १९४६ को कलकत्ता में एक डायरेक्ट ऐक्शन डे रखा गया और कहा गया
कि हम तो सीधी चोट लगाएँगे और कोई काम नहीं करेंगे, जब तक हिन्दुस्तान के
टुकड़े न हो जाएँ। उस दिन कलकत्ता में बहुत सी खून-खराबी हुई, बरबादी हुई।
तब हमने सोचा कि इस तरह से सारे मुल्क का हाल हो जाए, उससे तो अच्छा है कि
अलग कर दो। वह अपना घर सम्भालें और हम अपना संभाल लें। हमने सोच लिया कि
अगर यही हाल रहा तो जो परदेसी-हुकूमत हमारे बीच में पड़ी है, वह हटनेवाली
नहीं है। हमारा जिन्दगी का काम ही यही था कि जिस किसी तरह से परदेसियों की
हुकूमत को इधर से हटा दें, पीछे देखेंगे कि क्या होता है। तो हमने कबूल कर
लिया कि ठीक है भाई, आप अलग अपना हिस्सा ले लो।
उसका यह मतलब नहीं कि हम दिल
से राजी थे। लेकिन हम समझ गए कि हिस्सा-बाँट चाहे कितनी भी बुरी हो, लेकिन
जब उनको समझाना मुश्किल है, तो उनको लेने दो। सो हमने दे दिया। जब दे
दिया, तो हम यह समझे थे कि अब मुल्क में पूरी शान्ति होगी और हम अपना काम
करेंगे। हमारे दिल में भी यही ख्वाहिश थी, और आज भी है कि वह जो अपना घर
अलग बनाकर बैठे हैं, वे तगड़े हो जाएँ, अच्छे हो जाएँ और अपना कार्य करें।
वे अपने मुल्क को उठाएँ और जैसी उनके दिल में ख्वाहिश थी, वैसा ही स्वर्ग
वे अपने पाकिस्तान को बना दें। इसी से हमको खुशी होगी। क्योंकि आखिर तो वह
हमारा भाई है। गलत समझ से उसने जो काम किया है, उससे भी वह तगड़ा हो जाए,
सुखी हो जाए, तो आखिर वह हमारा पड़ोसी है, हमारा भाई है। वह सुखी होगा, तो
अच्छा है। लेकिन हमने यह कभी नहीं सोचा था और हमें कभी ऐसी उम्मीद भी नहीं
थी कि अलग होने के बाद भी वह हमें चैन से नहीं बैठने देंगे। अब वे बार-बार
कहते हैं कि आप लोग हमको चैन से बैठने नही देते हैं, और पाकिस्तान को तबाह
करने के लिए, उसको बरबाद करने के लिए, हिन्दुस्तान में शरकत
(कौन्स्पिरेसी) हो रही है। तो मैं उन लोगों को बार-बार कहता हूँ कि
पाकिस्तान का अगर कोई दुश्मन है, तो वह पाकिस्तान के भीतर है, बाहर कोई
नहीं। आप अपने को संभाल लो, हमारे यहाँ पाकिस्तान का कोई बुरा नहीं चाहता।
हम तो आप का भला ही चाहते हैं।
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