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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


तो मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि पाँच चार साल तक के लिए आपस में लीडरशिप का यह झगड़ा छोड़ दो। और तब तक आपस में मिलजुल कर काम करो। यह पसन्द न हो तो अलग रहो, लेकिन जो काम कर रहे हैं, उन्हें काम करने दो। अभी कुछ लोग कहते हैं कि सरकार ने जो यह बिल पेश किया, उससे हमारी सिविल लिबरटी (नागरिक स्वाधीनता) चली गई। मुझे समझ में नहीं आया कि हम ने कितने आदमियों को पकड़ के बैठा लिया है, जो कहते हैं कि हमारी सिविल लिबरटी चली गई। सिविल लिबरटी कलकत्ता से चली गई, या किसी और सूबे से चली गई? और प्रान्तों में भी तो ऐसे ही बिलपेश किए गए हैं। किसी ने कोई ऐसी शिकायत नहीं की। क्योंकि यह बिल इस तरह से बनाया गया है कि उसका उलटा उपयोग नहीं हो सकता। अगर हमारे लोग इस बिल का ऐसा उपयोग करें कि अपने पोलि-टिकल अपोनेन्ट (राजनीतिक विरोधियों) को तंग करें, तब तो मिनिस्टर लोगों को भी जेलखाने में जाना पड़ेगा। उससे हमें डर क्यों होना चाहिए? लेकिन यहाँ तो उसको हथियार बना कर प्रधान मण्डल के ऊपर हल्ला करना उद्देश्य बन जाता है। लेकिन आज उनका टर्न (बारी) आया है, तो कल आपका टर्न भी आएगा। दुख यही है कि इस तरह देश का काम नहीं चलेगा।
जब आप जैसे कुछ लोग कहते हैं कि भाई, यह तो वही करते हैं, जो पुरानी गवर्नमेंट करती थी, तो यह सच्ची बात नहीं है। क्योंकि हम आपके प्रतिनिधि हैं और जिस चीज का उपयोग हमारे लोग हमें जहाँ तक करने दें, वहीं तक हम उसका उपयोग कर सकते हैं। लेकिन पुरानी गवर्नमेंट तो लोगों को जानती ही नहीं थी। लोग तो उनके पास जा भी नहीं सकते थे। इधर आज की सरकार में हमारे देश के लोगों को जितनी सत्ता चाहिए, उतनी देने में हमें कोर्ड झिझक नहीं है।
हम डेमोक्रेटिक रूल (प्रजातन्त्र शासन) को पसन्द करते हैं और डेमोक्रेसी का काम ही हमने लिया है। लेकिन हिन्दुस्तान में डेमोक्रेसी का असली जन्म तो अभी अभी हुआ है। अभी तक पुराना सिलसिला चलता आया है। पिछले दो सौ साल तो आटोक्रेसी (निरंकुश राज्य) चलती थी, उसके बाद पोलिटिशियन्स (राजनीतिज्ञों) के कारण जो फिसाद हुए, उस बीज में से हम मुश्किल से निकले। तब आपको यह समझना चाहिए कि जहाँ हम लोगों के हाथ में सत्ता है, वहाँ अगर उसका दुरुपयोग न हो, तो आपको जरा खामोश रहना चाहिए।
दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूँ कि कलकत्ता हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा शहर है। कलकत्ता हमारे नये इतिहास में एक बड़ा पार्ट (हिस्सा) अदा करता रहा है। हिन्दोस्तान की लीडरशिप भी बहुत दिनों तक इधर ही थी। मैं चाहता हूँ कि आज भी वैसा ही हो। लेकिन आज कलकत्ता गलत रास्ते पर चलता जाता है। कलकत्ता में जिस प्रकार की डिसिप्लिन (नियन्त्रण), जिस प्रकार की तालीम होनी चाहिए, वह नहीं है। हमको हमेशा डर रहता है कि कलकत्ते में कोई फिसाद तो नहीं हो गया।

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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