इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
|
|
स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
तो मैं आपसे कह रहा था कि
उड़ीसा में दो छोटी-छोटी स्टेटें थीं। एक सराय किला और दूसरी खरसबान। उनके
साथ ही मैंने उड़ीसा को जो २८ स्टेटें सुपुर्द कीं, उनमें ये दोनों भी थीं।
मैंने कहा कि भाई यह सब उड़ीसा का है। ये सब आप ले लीजिए। उसके बाद मेरे
पास बिहार से वहाँ के प्रधान मन्त्री का तार मुझे आया कि ये दोनों स्टेटें
बिहार में जानी चाहिए, क्योंकि वह तो बिहार की ही हैं। तो मैंने उनको खबर
दी कि भई, अब तो फैसला हो गया है, लेकिन आपको कुछ कहना हो तो मुझसे दिल्ली
में आकर मिलो। सो वह मेरे पास दिल्ली आए। मेरे साथ बात करते हुए उन्होंने
कहा कि यह जो फैसला हुआ, उसके बारे में हमने कुछ सुना नहीं था, कुछ जाना
नहीं था। आपने फैसला कर दिया और उसमें हमें तो बहुत नुकसान होगा। आप अपना
फैसला बदल दीजिए और ये दोनों स्टेटें बिहार को दे दीजिए। तो मैंने कहा, आप
भी अपने सूबे में कांग्रेस की हुकूमत चला रहे हैं, मैं भी तो कांग्रेस का
एक अदना सेवक हूं। आप इस तरह से काम करना चाहें कि आज हमने वहाँ के राजाओं
और मिनिस्टरों के साथ बैठकर फैसला किया और आपके कहने से हम और आप उसे अभी
बदल दें, तो इस तरह से काम नहीं चल सकता। हाँ, उसकी जाँच करनी चाहिए। कोई
कोर्ट का जज हम रखेंगे, जो इस सब की जाँच-पड़ताल करेगा। यदि आपकी बात सही
होगी, तो यह फैसला हम बदल देंगे। आज आप इसे आर्जी फैसला मान लीजिए, और
फिक्र न कीजिए। अब उसको समझा-बुझा कर मैंने भेज दिया।
चन्द दिनों के बाद उड़ीसा की
सरकार और बिहार की सरकार के अमलदार वहाँ पहुँच गए और वहाँ जंगल में
रहनेवाले जो आदिवासी लोग थे, वे तीर-कमान ले कर आ गए। कोई तीस-चालीस हजार
आदिवासी वहाँ जमा हो गए और उन्होंने वहाँ लड़ाई की। उन्होंने पुलिस के
सामने तीर फेंके। पाँच सात तीर पुलिस को लगे। जब तीस हजार ने दंगा किया तो
पुलिस ने गोली चलाई। उसमें तीस-चालीस आदमी मर गए। उन बेचारे गरीबों में से
४०-५० घायल हुए और बाकी बेचारे रोते-रोते भाग गए। इस पर दोनों प्रान्तों
की सरकारें मेरे पास बड़े-बड़े तार भेजती रहीं। (इधर अखबारों में यह झगड़ा
चलता रहा कि दोनों कांग्रेस की गवर्नमेंट हैं। अब हमें देखना चाहिए कि हम
कहाँ जा रहे हैं। हमारे प्रान्तीय झगड़े हमें कितना गिराएँगे। मैंने कहा कि
इसमें लड़ने की कोई बात नहीं है। हम एक जज को मुकर्रर करके सब बातों की
जाँच-पड़ताल कर अपना फैसला करेंगे। दोनों गवर्नमेंट अपना-अपना केस रख दें।
अगर कोई कहे कि आज ही फैसला कर दो, तो यह कैसे हो सकता है?
जब मैं कलकत्ता गया, तो
बंगालवाले मेरे पास एक बड़ा प्रतिनिधि-मण्डल लेकर आए कि बिहार और उड़ीसा का
यह जो झगड़ा चल रहा है, उसमें असली हक तो हमारा है। वह तो बंगाल को देना
चाहिए। मैं कहता हूँ कि भाई, स्वराज्य तो अभी मिला है और अभी तक हम अपने
देश को मजबूत भी नहीं बना पाए कि उसके पहले बाँटने का झगड़ा शुरू हो गया
है। तब इधर हमारे महाराष्ट्र भाई कहते हैं कि हमारा कर्नाटक हमें दे दो।
बरारवाले कहते हैं कि हमारा बरार तो अलग होना चाहिए। इस तरह से और और
बातें भी चलती हैं। मैं संगठन करने की कोशिश करता हूँ कि सम्पूर्ण
हिन्दुस्तान का एक संगठन करके खड़ा कर दूं और इधर इस तरह से काम चलता है।
|
- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950