लोगों की राय

नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल

अभिज्ञान शाकुन्तल

कालिदास

प्रकाशक : राजपाल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6162
आईएसबीएन :9788170287735

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

333 पाठक हैं

विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...


लगता है, अब हम आकाश के उस भाग पर उतर आये हैं, जिस पर बादल चला करते हैं।

मातलि : यह आपने किस प्रकार जाना?

राजा : देखिये-
आपके रथ का चक्र जलकणों से भीग गया है, इसी से यह जाना जा सकता है कि हम जल भरे मेघों के ऊपर से चले जा रहे हैं।
क्योंकि-
बिजली की चमक से हमारे रथ के घोड़े भी चमक उठते हैं और रथ के पहियों के अरों के बीच में निकल-निकलकर चातक इधर-उधर उड़ते फिर रहे हैं।

मातलि : आयुष्मन्! अब तो आप कुछ ही क्षणों में अपने राज्य की भूमि पर उतर जायेंगे।

राजा : (नीचे की ओर देखकर) मातलि! हम लोग जिस वेग से उतर रहे हैं उसमें यह नीचे का मनुष्य लोक कितना विचित्र-सा दिखाई पड़ रहा है? है न यही बात?

मातलि : कैसे?

राजा : देखो-
इस समय ऐसा लगने लगा है कि मानो धरती पर्वतों की ऊंची-ऊंची चोटियों से नीचे को उतर रही हो! वृक्षों की शाखायें, जो पत्तों में छिपी हुई थीं अब वे भी दिखाई पड़ने लगी हैं।
और वह देखिये, दूर से पतली रेखा-सी दिखाई देने वाली नदियां अब चौड़ी होती जा रही हैं और यह पृथ्वी इस प्रकार हमारी ओर उठी-सी चली आती लगती है कि मानो कोई उसको ऊपर को उछाल रहा हो।

मातलि : आपकी यह उपमा ठीक ही है। वास्तव में यही बात है। बड़ा विचित्र सा दृश्य है यह। (आदर से देखकर) वाह, वाह! यह पृथ्वी कितनी रमणीय लग रही है, इस समय।

राजा : मातलि! जरा बताओ तो सही कि पूर्व और पश्चिम के समुद्र तक विस्तार वाला, सुनहरी धारा बहाने वाले संध्याकाल के मेघों की भित्ति के समान लम्बा-चौड़ा दिखाई देने वाला यह कौन-सा पर्वत है?

मातलि : आयुष्मान! यह तो किन्नरों का वह निवासस्थल है जहां पर तपस्या करने वालों को  शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है, यह वही हेमकूट नाम का पहाड़ है।
देखिये-
यहां देवता और दानवों के पिता स्वयम्भू मरीचि के पुत्र प्रजापति कश्यप अपनी पत्नी के साथ बैठे तपस्या कर रहे हैं।

राजा : यह तो मेरे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है। हाथ में आया सौभाग्य छोड़ना नहीं चाहिए।

मातलि : क्या?

राजा : मैं भगवान कश्यप की प्रदक्षिणा करता हूं, उसके बाद ही यहां से आगे बढ़ेंगे।

मातलि : यह तो आपने उचित ही सोचा है।

[दोनों उतरने का नाटक करते हैं।]

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book