बहुभागीय पुस्तकें >> युद्ध और शान्ति - भाग 2 युद्ध और शान्ति - भाग 2गुरुदत्त
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युद्ध और शान्ति - भाग 2
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प्रथम परिच्छेद
युद्ध-काल में भरती किये गए सैनिकों की छटनी की जा रही थी। मथुरासिंह की
रेजिमेंट भी इनमें थी।
मथुरासिंह की रेजिमेंट इस समय अम्बाला छावनी में ठहरी हुई थी। वहीं उनके लिए आज्ञा पहुँची कि राजपूत एक सौ बीस को ‘डिसबैंड’ किया जाता है और यदि इस विषय में किसी को कुछ कहना हो तो वह सैनिक मुख्य कार्यालय, नई दिल्ली को अपना प्रार्थना-पत्र भेज सकता है। उसी आज्ञा में प्रार्थना-पत्र देने की अन्तिम तिथि की घोषणा भी थी।
उस रेजिमेंट में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं था, जो सेना का कार्य छोड़ना चाहता हो। सभी इस आशय का प्रार्थना-पत्र देने की इच्छा रखते थे कि वे सैनिक जाति के घटक होने से सैनिक कार्य को अपना जातीय कार्य समझते हैं। देश में स्वराज्य स्थापित हो गया। अब वे अपने देश की सेवा करने की इच्छा करते हैं।
लेफ्टिनेन्ट मथुरासिंह को पृथक् आज्ञा-पत्र आया। उसमें लिखा था कि अपने सभी कागज़ात लेकर वह कमाण्डर-इन-चीफ द्वारा नियुक्त विशेष अधिकारी श्री एस० एन० थापर के पास नई दिल्ली में उपस्थित हो जाए।
मथुरासिंह को दिल्ली जाता सुनकर रेजिमेंट के अधिकांश सैनिकों ने एक संयुक्त प्रार्थना-पत्र पर हस्ताक्षर करके उसको दे दिया। उस प्रार्थना–पत्र में उनकी रेजिमेंट के विसंयोजित न करने की प्रार्थना की गई थी। एक तो समय कम था और दूसरे सभी सैनिक नई दिल्ली कार्यालय में एक साथ उपस्थित भी नहीं हो सकते थे।
मथुरासिंह 25 अक्टूबर, 1947 की रात को अम्बाला से चलकर अगले दिन प्रातः दिल्ली पहुँचने वाला था। वह रेल में बैठा था। प्रातः-काल होने पर गाजियाबाद स्टेशन पर उसको प्रातः का समाचार-पत्र मिला। उसमें उसने एक समाचार पढ़ा। समाचार था-‘कश्मीर पर आक्रमण करने वाले कबाइलियों ने बारामूला में लूटमार मचा दी है। नगर का बहुत-सा भाग जल रहा है, श्रीनगर में इससे भगदड़ मच गई है।’
उक्त समाचार पढ़कर मथुरासिंह गम्भीर विचार में पड़ गया। वह समझता था कि वह आक्रमण कबाइलियों का नहीं हो सकता। उसके विचार में वह पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को आत्मसात करने के लिए एक प्रयास था। इस पर वह विचार करता था कि सेना को विसंयोजित करने की योजना स्थगित कर दी जाएगी और इस प्रकार उसको सेना से मुक्त नहीं किया जाएगा।
प्लेटफार्म पर खड़ा वह समाचार-पत्र के मुख्य-मुख्य समाचार पढ़-कर विचारमग्न खड़ा था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘‘हैलो, सिंह ! किधर जा रहे हो ?’’
मथुरासिंह के कंधे पर हाथ रखने वाला व्यक्ति कार्ल माइकल था। वह मथुरासिंह के बराबर वाले डिब्बे में यात्रा कर रहा था। माइकल को देख, मथुरासिंह को बहुत प्रसन्नता हुई। दोनों मित्र मिले और एक-दूसरे का कुशल-समाचार पूछने लगे। बातें करते हुए वे मथुरासिंह के डिब्बे में चल गये और वहाँ पर बैठ, चाय मँगवाई गई। माइकल ने पूछा, ‘‘कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो। ?’’
‘‘अम्बाला से आ रहा हूँ और दिल्ली जा रहा हूँ। हमारी रेजिमेंट विसंयोजित कर दी गई है। उसी सम्बन्ध में मैं यह यात्रा कर रहा हूँ।’’
‘‘ओह, मैं भी इसी कार्य के लिए जा रहा हूँ। मेरी रेजिमेंट इस समय पठानकोट में है।’’
‘‘परन्तु...।’’ मथुरासिंह कहते-कहते रुक गया।
‘‘परन्तु क्या ?’’
‘‘मेरे विचार से अब सेना-विसंयोजन की आवश्यकता नहीं होगी।’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया है।’’
‘‘यह पाकिस्तान का आक्रमण है क्या ? यदि है तो भी हमको कश्मीर से क्या ?’’
‘‘कश्मीर भारत देश का एक स्वाभाविक अंग है, उसे उसी प्रकार रहना चाहिये।’’
‘‘परन्तु वहाँ के महाराज ने कश्मीर को भारत के साथ विलय तो किया नहीं।’’
‘‘नहीं किया तो अब कर देगा। एक बलशाली राज्य को पड़ोस के दुर्बल राज्यों की रक्षा का उत्तरदायित्व अपने पर लेना चाहिये’’
‘‘यह पूराने ज़माने की बात है, इससे तो युद्ध हो जाते हैं।’’
‘‘दूसरे राज्य यह समझने लगते हैं कि हम अपने प़ड़ोसी राज्य के आभ्यन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।’’
‘‘कौन दूसरे ? जो स्वयं उस पर आक्रमण कर रहे हैं ?’’
माइकल जानता था कि मथुरासिंह की युक्ति के सामने परास्त होना पड़ता है। इसलिए वह चुप ही रहा। उसे चुप देख, मथुरासिंह ने बात बदलकर पूछा, ‘‘तुम्हारा विवाह हो गया हैं कि नहीं ?’’
‘‘ओह ! तुम्हे अभी इस विषय में विदित नहीं है ? हाँ ! तुम्हारे इंगलैड से लौटने के बाद तो हम आज ही प्रथम बार मिल रहे हैं।
‘‘बात ऐसी है कि तुम्हारे जाने के बाद मुझे बर्मा फ्रन्ट पर भेज दिया गया था। वहां से हमारी रेजिमेंट जापानियों से चार्ज लेने के लिए सिंहापुर जा पहुँची। इस प्रकार मैं डेढ़ वर्ष तक हिन्दुस्तान से अनुपस्थित रहकर, 1945 में यहाँ लौटा और छुट्टी लेकर अम्बाला गया तो मुझे विदित हुआ कि ऐलिन ने किसी सिविलियन अधिकारी से विवाह कर लिया था, और अब स्वराज्य मिलने पर वह पति तथा एक बच्चे के साथ इंगलैंड चली गई है।’’
‘‘इससे तो तुम्हें बहुत शोक हुआ होगा ?’’
‘‘हाँ, निराशा तो बहुत हुई थी, परन्तु अब एक अन्य स्थान पर यत्न कर रहा हूँ।’’
‘‘कहाँ ?’’
‘‘फिर किसी समय बताऊँगा। तुम दिल्ली में कहाँ ठहरोगे ?’’
‘‘अभी सोच नहीं पाया।’’
‘‘तो मेरे साथ ही ठहरो।’’
‘‘तुम कहाँ ठहरोगे ?’’
‘‘वाई० एम० सी० ए० होस्टल में।’’
‘‘मुझे वहाँ रहने देंगे ?’’
‘‘मैंने एक कमरा अपने लिए ले रखा है, एक तुम्हारे लिए ले दूँगा।’’
‘‘क्या किराया देना होगा ?’’
‘‘साठ रुपया मासिक।’’
‘‘मुझे महीना भर तो रहना नहीं होगा।’’
‘‘किसी थर्ड क्लास होटल में ठहरने पर भी चार दिन में साठ रुपये लग ही जायेंगे। यहाँ तो मास-भर रह सकोगे। न रहना हो तो ताला लगाकर चले जाना। महीने के भीतर ही यदि पुनः आना पड़ जाय तो उसका उपयोग कर सकते हो।’’
मथुरासिंह ने सुझाव स्वीकार कर लिया। फिर माइकल ने कहा।,
‘‘यहाँ पिछले छः मास से मैंने एक कमरा रखा हुआ है। महीने में एक-दो चक्कर तो लग ही जाते हैं, मेरा किराया वसूल हो जाता है।’’
बातों-बातों में दिल्ली स्टेशन आ गया और दोनों अपना सामान लेकर उतर गये। स्टेशन से टैक्सी में वे वाई० एम० सी. ए० जा पहुँचे। कमरा नम्बर इक्कीस माइकल के नाम पर था। वे अपना सामान उठा वहाँ गये तो मथुरासिंह ने देखा कि कमरा खुला है और उसमें कोई लड़की विराजमान है।
दोनों ही उसको देखकर झिझके। परन्तु माइकल ने तुरन्त स्वयं को संतुलित किया और उस लड़की से कहने लगा, ‘‘क्लैरा डार्लिग ! मेरे एक मित्र आये हैं ।’’
क्लैरा ने द्वार पर आकर गुडमार्निग किया। माइकल ने सिंह का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘ये मिस्टर सिंह हैं। मेरे मित्र और साथी।’’
क्लैरा ने सिर झुकाकर और मुस्कराकर मथुरासिंह का अभिवादन किया। दोनों मित्र जब भीतर पहुँचे तो माइकल ने सिंह को क्लैरा का परिचय देते हुए कहा, ‘‘ये हैं मिस क्लैरा क्वीवमौंट। मेरी मँगेतर और स्वराज्य सरकार के गवर्नर-जनरल के एक स्टेनोग्राफर की सुपुत्री।’’
दोनों ने परस्पर मिलने पर प्रसन्नता प्रकट की और फिर क्लैरा कहने लगी, ‘‘मुझे रात ही पता चल गया था कि आप आ रहे हैं।’’
‘‘हाँ मैं तो पठान कोट से आ रहा हूँ, किन्तु मेरे दोस्त अम्बाला से बैठे हैं। रास्ते में भेंट हो गई तो मैं इनको अपने साथ ले आया। यत्न करके इनको एक कमरा पृथक दिलवाना चाहिए। ये भी मेरी ही भाँति सरकारी कार्य से आये हैं।’’
‘‘इस समय दो-तीन कमरे खाली हैं, इनके लिए कमरे का प्रबन्ध किया जा सकता है।’’
‘‘अब तो तुम यह व्यवस्था कर दो। मैं तब तक नित्यकर्म से निवृत्त हो जाता हूँ।’’
क्लैरा मैट्रन से मिलने के लिए चली गई। उसके जाने पर माइकल बोला, ‘‘यह यत्न कर रही हैं कि मैं ब्रिटिश सेना में भरती होकर साथ ही इंगलैंड चला जाऊँ।’’
‘‘कब होगा तुम लोगों का विवाह ?’’
‘‘विवाह भी हो जावेगा। उसकी जल्दी न इसको है और न मुझे।’’
‘‘मैं तुमको इसके लिए बधाई देता हूँ। क्या मैं तुम दोनों को चाय पार्टी दे सकता हूँ ?’’
‘‘अभी नहीं। यह नहीं चाहती कि हमारे सम्बन्ध के विषय में अभी किसी को विदित हो।’’
‘‘वैसे तो विवाह मेरा भी हो गया है। हमारे ही गाँव की एक लड़की है, मेरी बचपन की जानी- पहचानी।’’
‘‘ओह तो वह भी तुम्हारे साथ अम्बाला में ही है ?’’
‘‘नहीं वह गाँव में ही है। महीने में एक-आध बार मैं वहाँ चला जाता हूँ।’’
इतने में फ्लोरा एक कमरे की चाबी लेकर आया और कहने लगी, ‘‘मैं चाबी ले आयी हूँ। मैट्रन तो वहाँ थी नहीं। चपरासी को कह दिया है और नाम भी बता आई हूँ। मैट्रन आवेगी तो नाम वगैरह लिख लेगी और इनको एक मास का किराया अग्रिम जमा करना होगा।’’
‘‘ठीक है।’’ अपना सामान उठाते हुए मथुरासिंह ने पूछा, ‘‘क्या नम्बर है कमरे का ?’’
‘‘उन्नीस, इसी पंक्ति में अन्तिम कमरा है।’’
मथुरासिंह गया तो क्लैरा ने कहा, ‘‘कमाण्डर-इन- चीफ ने वचन दिया है कि आपको पाकिस्तानी सेना में भरती कर लेंगे।
मथुरासिंह की रेजिमेंट इस समय अम्बाला छावनी में ठहरी हुई थी। वहीं उनके लिए आज्ञा पहुँची कि राजपूत एक सौ बीस को ‘डिसबैंड’ किया जाता है और यदि इस विषय में किसी को कुछ कहना हो तो वह सैनिक मुख्य कार्यालय, नई दिल्ली को अपना प्रार्थना-पत्र भेज सकता है। उसी आज्ञा में प्रार्थना-पत्र देने की अन्तिम तिथि की घोषणा भी थी।
उस रेजिमेंट में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं था, जो सेना का कार्य छोड़ना चाहता हो। सभी इस आशय का प्रार्थना-पत्र देने की इच्छा रखते थे कि वे सैनिक जाति के घटक होने से सैनिक कार्य को अपना जातीय कार्य समझते हैं। देश में स्वराज्य स्थापित हो गया। अब वे अपने देश की सेवा करने की इच्छा करते हैं।
लेफ्टिनेन्ट मथुरासिंह को पृथक् आज्ञा-पत्र आया। उसमें लिखा था कि अपने सभी कागज़ात लेकर वह कमाण्डर-इन-चीफ द्वारा नियुक्त विशेष अधिकारी श्री एस० एन० थापर के पास नई दिल्ली में उपस्थित हो जाए।
मथुरासिंह को दिल्ली जाता सुनकर रेजिमेंट के अधिकांश सैनिकों ने एक संयुक्त प्रार्थना-पत्र पर हस्ताक्षर करके उसको दे दिया। उस प्रार्थना–पत्र में उनकी रेजिमेंट के विसंयोजित न करने की प्रार्थना की गई थी। एक तो समय कम था और दूसरे सभी सैनिक नई दिल्ली कार्यालय में एक साथ उपस्थित भी नहीं हो सकते थे।
मथुरासिंह 25 अक्टूबर, 1947 की रात को अम्बाला से चलकर अगले दिन प्रातः दिल्ली पहुँचने वाला था। वह रेल में बैठा था। प्रातः-काल होने पर गाजियाबाद स्टेशन पर उसको प्रातः का समाचार-पत्र मिला। उसमें उसने एक समाचार पढ़ा। समाचार था-‘कश्मीर पर आक्रमण करने वाले कबाइलियों ने बारामूला में लूटमार मचा दी है। नगर का बहुत-सा भाग जल रहा है, श्रीनगर में इससे भगदड़ मच गई है।’
उक्त समाचार पढ़कर मथुरासिंह गम्भीर विचार में पड़ गया। वह समझता था कि वह आक्रमण कबाइलियों का नहीं हो सकता। उसके विचार में वह पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को आत्मसात करने के लिए एक प्रयास था। इस पर वह विचार करता था कि सेना को विसंयोजित करने की योजना स्थगित कर दी जाएगी और इस प्रकार उसको सेना से मुक्त नहीं किया जाएगा।
प्लेटफार्म पर खड़ा वह समाचार-पत्र के मुख्य-मुख्य समाचार पढ़-कर विचारमग्न खड़ा था कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘‘हैलो, सिंह ! किधर जा रहे हो ?’’
मथुरासिंह के कंधे पर हाथ रखने वाला व्यक्ति कार्ल माइकल था। वह मथुरासिंह के बराबर वाले डिब्बे में यात्रा कर रहा था। माइकल को देख, मथुरासिंह को बहुत प्रसन्नता हुई। दोनों मित्र मिले और एक-दूसरे का कुशल-समाचार पूछने लगे। बातें करते हुए वे मथुरासिंह के डिब्बे में चल गये और वहाँ पर बैठ, चाय मँगवाई गई। माइकल ने पूछा, ‘‘कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो। ?’’
‘‘अम्बाला से आ रहा हूँ और दिल्ली जा रहा हूँ। हमारी रेजिमेंट विसंयोजित कर दी गई है। उसी सम्बन्ध में मैं यह यात्रा कर रहा हूँ।’’
‘‘ओह, मैं भी इसी कार्य के लिए जा रहा हूँ। मेरी रेजिमेंट इस समय पठानकोट में है।’’
‘‘परन्तु...।’’ मथुरासिंह कहते-कहते रुक गया।
‘‘परन्तु क्या ?’’
‘‘मेरे विचार से अब सेना-विसंयोजन की आवश्यकता नहीं होगी।’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया है।’’
‘‘यह पाकिस्तान का आक्रमण है क्या ? यदि है तो भी हमको कश्मीर से क्या ?’’
‘‘कश्मीर भारत देश का एक स्वाभाविक अंग है, उसे उसी प्रकार रहना चाहिये।’’
‘‘परन्तु वहाँ के महाराज ने कश्मीर को भारत के साथ विलय तो किया नहीं।’’
‘‘नहीं किया तो अब कर देगा। एक बलशाली राज्य को पड़ोस के दुर्बल राज्यों की रक्षा का उत्तरदायित्व अपने पर लेना चाहिये’’
‘‘यह पूराने ज़माने की बात है, इससे तो युद्ध हो जाते हैं।’’
‘‘दूसरे राज्य यह समझने लगते हैं कि हम अपने प़ड़ोसी राज्य के आभ्यन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।’’
‘‘कौन दूसरे ? जो स्वयं उस पर आक्रमण कर रहे हैं ?’’
माइकल जानता था कि मथुरासिंह की युक्ति के सामने परास्त होना पड़ता है। इसलिए वह चुप ही रहा। उसे चुप देख, मथुरासिंह ने बात बदलकर पूछा, ‘‘तुम्हारा विवाह हो गया हैं कि नहीं ?’’
‘‘ओह ! तुम्हे अभी इस विषय में विदित नहीं है ? हाँ ! तुम्हारे इंगलैड से लौटने के बाद तो हम आज ही प्रथम बार मिल रहे हैं।
‘‘बात ऐसी है कि तुम्हारे जाने के बाद मुझे बर्मा फ्रन्ट पर भेज दिया गया था। वहां से हमारी रेजिमेंट जापानियों से चार्ज लेने के लिए सिंहापुर जा पहुँची। इस प्रकार मैं डेढ़ वर्ष तक हिन्दुस्तान से अनुपस्थित रहकर, 1945 में यहाँ लौटा और छुट्टी लेकर अम्बाला गया तो मुझे विदित हुआ कि ऐलिन ने किसी सिविलियन अधिकारी से विवाह कर लिया था, और अब स्वराज्य मिलने पर वह पति तथा एक बच्चे के साथ इंगलैंड चली गई है।’’
‘‘इससे तो तुम्हें बहुत शोक हुआ होगा ?’’
‘‘हाँ, निराशा तो बहुत हुई थी, परन्तु अब एक अन्य स्थान पर यत्न कर रहा हूँ।’’
‘‘कहाँ ?’’
‘‘फिर किसी समय बताऊँगा। तुम दिल्ली में कहाँ ठहरोगे ?’’
‘‘अभी सोच नहीं पाया।’’
‘‘तो मेरे साथ ही ठहरो।’’
‘‘तुम कहाँ ठहरोगे ?’’
‘‘वाई० एम० सी० ए० होस्टल में।’’
‘‘मुझे वहाँ रहने देंगे ?’’
‘‘मैंने एक कमरा अपने लिए ले रखा है, एक तुम्हारे लिए ले दूँगा।’’
‘‘क्या किराया देना होगा ?’’
‘‘साठ रुपया मासिक।’’
‘‘मुझे महीना भर तो रहना नहीं होगा।’’
‘‘किसी थर्ड क्लास होटल में ठहरने पर भी चार दिन में साठ रुपये लग ही जायेंगे। यहाँ तो मास-भर रह सकोगे। न रहना हो तो ताला लगाकर चले जाना। महीने के भीतर ही यदि पुनः आना पड़ जाय तो उसका उपयोग कर सकते हो।’’
मथुरासिंह ने सुझाव स्वीकार कर लिया। फिर माइकल ने कहा।,
‘‘यहाँ पिछले छः मास से मैंने एक कमरा रखा हुआ है। महीने में एक-दो चक्कर तो लग ही जाते हैं, मेरा किराया वसूल हो जाता है।’’
बातों-बातों में दिल्ली स्टेशन आ गया और दोनों अपना सामान लेकर उतर गये। स्टेशन से टैक्सी में वे वाई० एम० सी. ए० जा पहुँचे। कमरा नम्बर इक्कीस माइकल के नाम पर था। वे अपना सामान उठा वहाँ गये तो मथुरासिंह ने देखा कि कमरा खुला है और उसमें कोई लड़की विराजमान है।
दोनों ही उसको देखकर झिझके। परन्तु माइकल ने तुरन्त स्वयं को संतुलित किया और उस लड़की से कहने लगा, ‘‘क्लैरा डार्लिग ! मेरे एक मित्र आये हैं ।’’
क्लैरा ने द्वार पर आकर गुडमार्निग किया। माइकल ने सिंह का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘ये मिस्टर सिंह हैं। मेरे मित्र और साथी।’’
क्लैरा ने सिर झुकाकर और मुस्कराकर मथुरासिंह का अभिवादन किया। दोनों मित्र जब भीतर पहुँचे तो माइकल ने सिंह को क्लैरा का परिचय देते हुए कहा, ‘‘ये हैं मिस क्लैरा क्वीवमौंट। मेरी मँगेतर और स्वराज्य सरकार के गवर्नर-जनरल के एक स्टेनोग्राफर की सुपुत्री।’’
दोनों ने परस्पर मिलने पर प्रसन्नता प्रकट की और फिर क्लैरा कहने लगी, ‘‘मुझे रात ही पता चल गया था कि आप आ रहे हैं।’’
‘‘हाँ मैं तो पठान कोट से आ रहा हूँ, किन्तु मेरे दोस्त अम्बाला से बैठे हैं। रास्ते में भेंट हो गई तो मैं इनको अपने साथ ले आया। यत्न करके इनको एक कमरा पृथक दिलवाना चाहिए। ये भी मेरी ही भाँति सरकारी कार्य से आये हैं।’’
‘‘इस समय दो-तीन कमरे खाली हैं, इनके लिए कमरे का प्रबन्ध किया जा सकता है।’’
‘‘अब तो तुम यह व्यवस्था कर दो। मैं तब तक नित्यकर्म से निवृत्त हो जाता हूँ।’’
क्लैरा मैट्रन से मिलने के लिए चली गई। उसके जाने पर माइकल बोला, ‘‘यह यत्न कर रही हैं कि मैं ब्रिटिश सेना में भरती होकर साथ ही इंगलैंड चला जाऊँ।’’
‘‘कब होगा तुम लोगों का विवाह ?’’
‘‘विवाह भी हो जावेगा। उसकी जल्दी न इसको है और न मुझे।’’
‘‘मैं तुमको इसके लिए बधाई देता हूँ। क्या मैं तुम दोनों को चाय पार्टी दे सकता हूँ ?’’
‘‘अभी नहीं। यह नहीं चाहती कि हमारे सम्बन्ध के विषय में अभी किसी को विदित हो।’’
‘‘वैसे तो विवाह मेरा भी हो गया है। हमारे ही गाँव की एक लड़की है, मेरी बचपन की जानी- पहचानी।’’
‘‘ओह तो वह भी तुम्हारे साथ अम्बाला में ही है ?’’
‘‘नहीं वह गाँव में ही है। महीने में एक-आध बार मैं वहाँ चला जाता हूँ।’’
इतने में फ्लोरा एक कमरे की चाबी लेकर आया और कहने लगी, ‘‘मैं चाबी ले आयी हूँ। मैट्रन तो वहाँ थी नहीं। चपरासी को कह दिया है और नाम भी बता आई हूँ। मैट्रन आवेगी तो नाम वगैरह लिख लेगी और इनको एक मास का किराया अग्रिम जमा करना होगा।’’
‘‘ठीक है।’’ अपना सामान उठाते हुए मथुरासिंह ने पूछा, ‘‘क्या नम्बर है कमरे का ?’’
‘‘उन्नीस, इसी पंक्ति में अन्तिम कमरा है।’’
मथुरासिंह गया तो क्लैरा ने कहा, ‘‘कमाण्डर-इन- चीफ ने वचन दिया है कि आपको पाकिस्तानी सेना में भरती कर लेंगे।
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