बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
''राम ठीक कह रहे हैं।'' सीता बोलीं, ''किंतु सौमित्र को क्या हो गया? एकदम मौंन धारण किए बैठे हैं। कदाचित् एक स्त्री के प्रेम-निवेदन के उत्तर में सैनिक अभियानों की बात इनके करुणापूर्ण हृदय को अच्छी नहीं लगी।''
''नहीं।'' लक्ष्मण औचक ही मुस्करा पड़े, ''किंतु मैं यह अवश्य सोच रहा हूं कि शूर्पणखा का प्रेम-निवेदन क्या सचमुच इतना संकटपूर्ण है?''
''मेरा अनुभव तो यही कहता है, सौमित्र!'' जटायु बोले, ''वैसे आसपास के ग्रामों तथा आश्रमों के युवकों को तो सतर्क कर ही दो; ओर अगले दो-एक दिनों में शूर्पणखा की उग्रता स्वयं परख लो।''
''यह ठीक है।'' राम बोले, ''इसमें कोई आपत्ति नहीं हो सकती।''
''तो कल प्रातः मैं सूचना भिजवा दूंगा।'' मुखर बोला।
''सौमित्र। तुम शस्त्र-वितरण भी आरंभ करवा देना। तात जटायु की आशंका अकारण नहीं होगी।'' राम ने कहा।
''और कल यदि वह, पुनः आयी तो उसका प्रस्ताव कौन स्वीकार करेगा-सौमित्र या मुखर?'' सीता मुस्कराईं, ''मुझे भय है, कहीं उसके लिए तुम दोनों परस्पर कलह न कर बैठो।''
''यह स्वयंवर शूर्पणखा पर ही छोड दो, ''राम बोले, ''दोनों को उसके सामने खड़ा कर देना, जिसे वह पसंद कर ले।''
''शूर्पणखा परिहास का विषय नहीं है, पुत्री!'' जटायु बोले, ''अच्छा। मैं अब चल रहा हूं, किंतु मेरी बात को भुलाना मत।''
जटायु चले गए। भोजन के पश्चात् लक्ष्मण और मुखर भी अपने-अपने कुटीरों में चले गए। अपनीं कुटिया में आकर राम को लगा, सीता सहज रूप से सोने की तैयारी नहीं कर रहीं-जैसे उनके मन में कोई बात हो।
क्या बात है, सीते?"
सीता अनिश्चित-सा भाव लिए, राम को देखती रही, फिर आकर उनके निकट बैठ गयीं। उनका हाथ अपने हाथों में लिया और उसे थपथपाती रहीं। फिर उसे अपनी दोनों हथेलियों में स्नेह से दबाकर, बहुत कोमल स्वर में पूछा, ''प्रिये! शूर्पणखा बहुत सुन्दर है क्या?''
राम अट्टहास कर उठे। सीता हंसते हुए राम को देखती रही, फिर खीझकर बोलीं, ''मैं स्त्री नहीं हूं क्या? या मुझे अपने पति से प्रेम नहीं है? कभी प्रेम आशंकाविहीन भी हुआ है?''
''नहीं सीते।'' राम बोले, ''प्रश्न यह नहीं है। प्रश्न यह है कि क्या अपनी पत्नी से सुंदर स्त्री के मिलते ही पति अपनी पत्नी को छोड जाएगा? अपनी पत्नी के प्रति पति की ईमानदारी क्या तभी तक है जब तक उसको उससे अधिक सुंदर कोई अन्य स्त्री नहीं मिल जाती?''
''आप ठीक कहते हैं।'' सीता का स्वर आश्वस्त था, ''कितु कभी-कभी बहुत स्थिर मन भी आशंकित हो उठता है।''
''किंतु तुम्हारे आशंकित होने का कोई कारण नहीं है।'' राम मुस्कराए, ''सबसे अधिक आशंकित तो तात जटायु हैं।''
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