बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
सीता को पहचानने में जटायु को क्षण-भर भी नहीं लगा। उनकी शिथिलता विलीन हो गयी, असमंजस समाप्त हो गया। वे अपनी अवस्था भूल गए, पिछले दिनों युद्ध में खाए अपने घावों का ध्यान उन्हें नहीं रहा। तनकर खड़े हो गए, "कौन है दुष्ट तू?"
और फिर जैसे उनकी स्मरणशक्ति की धूल झड़ गयी। बहुत दिनों के पश्चात देख रहे थे, किंतु वे भूल नहीं कर सकते थे-यह अवश्य ही रावण था, "दुष्ट! निर्लज्ज! पापी!" जटायु दांत पीस-पीसकर कह रहे थे। उनकी मुट्ठियां भिचभिंच जा रही थीं। वे भूल गए कि उनके सम्मुख रावण खड़ा है, जिसका नाम सुनते ही विश्व के बड़े-बड़े योद्धाओं के हाथों से शस्त्र छूटकर गिर जाते हैं। उनकी आंखों के सम्मुख मुक्त होने के लिए छटपटाती हुई सीता थीं; और एक दुष्ट राक्षस था, जो सीता को छोड़ नहीं रहा था। "अपना जीवन चाहता है तो सीता को छोड़ दे, दुष्ट।" जटायु झपटकर उसकी ओर बढ़े।
रावण को निश्चय करने में निमिष भर से अधिक समय नहीं लगा। उसने झपटते हुए जटायु के सम्मुख से तनिक एक ओर हटकर, किनारे से प्रबल धक्का दिया। उसका अनुमान ठीक था...जटायु अपनी रक्षा के लिए प्रस्तुत नहीं थे। वे असावधानी में भूमि पर जा गिरे।
किंतु वृद्ध जटायु ने चमत्कारिक स्फूर्ति का परिचय दिया। अगले ही क्षण वे उठकर खड़े हो गए और पुनः रावण की ओर झपटे। रावण उनके आगे-आगे भागता जा रहा था। सीता अब भी उन्हें सहायतार्थ पुकार रही थीं और छूटने के लिए पूरी शक्ति से हाथ-पैर चला रही थीं...जटायु की दृष्टि रावण के लक्ष्य पर पड़ी तो उनका सारा रक्त जैसे जम गया...वृक्षों के झुरमुट के पीछे, रावण का गधे सरीखे घोड़ों से जुता हुआ रथ तैयार खड़ा था। रावण एक बार रथ तक पहुंच गया तो फिर उसे पकड़ना असंभव हो जाएगा। वह चारों ओर से बंद इस रथ में सीता को बंदी कर, पवन गति से रथ हांककर ले जाएगा और कोई देख भी नहीं पाएगा कि रथ में कौन है। जटायु अपने प्राणों का सारा बल लगाकर भागे। इस गति से शायद कभी वे अपनी युवावस्था में भी नहीं भागे थे...रावण रथारूढ़ हो ही रहा था कि जटायु ने उसे जकड़ लिया। और कुछ न सूझा तो पूरी शक्ति से अपने दांत उसकी टांग में गड़ा दिए...शस्त्र का अभाव उन्हें जीवन-भर कभी इतना नहीं खला था। एक ओर सीता रावण की पकड़ से निकल जाने के लिए छटपटा रही थीं और दूसरी ओर से वृद्ध जटायु ने उसकी टांग में दांत गड़ा दिये थे...रावण ने दाहिने हाथ का भरपूर मुक्का जटायु के मुख पर मारा।...जटायु दूसरी बार गिरे और सीता ने देखा, उनकी नाक से रक्त बह आया था। सीता के कंठ से चीख निकल गयी। किंतु इस बार रावण थमा नहीं, वह भूमि पर गिरे हुए जटायु को पैरों, घुटनों और मुक्कों से निरन्तर पीटता चला गया। किंतु जटायु ने भी संघर्ष नहीं छोड़ा। आघात-पर-आघात सहकर भी वे हताश नहीं हुए। जाने कैसे उन्होंने रावण की दाहिनी भुजा पकड ली और फिर उससे चिपक गए।...रावण ने झटकने के लिए भुजा उठाई, तो वे उसके साथ उठते गए और उसके कंठ में बांहें डाल, अपने पूरे बल से उसके साथ लटककर, पुनः अपने दांत उसके कंधे पर गड़ा दिए।
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