बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
"मैं लंकापति रावण हूं, मैथिली! तुम्हारा हरण करने आया हूं।" सीता के मुख से स्वर नहीं निकला। कंठ अवरुद्ध हो गया, आंखें पथरा गयी, शरीर अक्षम हो गया-केवल मस्तिष्क कार्य कर रहा था, वह भी मात्र दृष्टा का-सामने वह व्यक्ति खड़ा था, जिसका आतंक संपूर्ण जंबूद्वीप में फैला हुआ था। यह सारा षड्यंत्र उसी का रचा हुआ था, और अब वह सीता का अपहरण कर रहा था। रावण ने झपटकर सीता को उनकी कटि से पकड़कर उठा लिया और अपने कंधे पर डालकर कुटिया की पिछली दिशा में, आश्रम के प्रवेशद्वार के ठीक विपरीत मार्ग की ओर भागा। सीता का स्तंभन टूटा। उनके मुख से चीत्कार फूटा और हाथ-पैर छूटने के लिए संघर्ष करने लगे। उन्होंने रावण की दाढ़ी नोंच डाली। सिर के केश पूरी शक्ति से उखाड़ने का प्रयत्न किया। जहां-तहां नखों तथा दांतों से नोच-काट डाला, किंतु रावण की गति में विघ्न नहीं पड़ा। वह भागता ही चला गया।
हाथ-पैरों के साथ सीता का मस्तिष्क भी सक्रिय हो उठा था-राम और लक्ष्मण जिस दिशा में गए थे, रावण उसकी विपरीत दिशा में भाग रहा था। मार्ग में संयोग से राम-लक्ष्मण के मिल जाने की कोई संभावना नहीं थी। अब यदि कोई सीता का सहायक हो सकता था, तो वह केवल आर्य जटायु ही थे। रावण उन्हीं की कुटिया की दिशा में बढ़ रहा था।...
सीता की इच्छा हुई वे पूरी शक्ति से चीत्कार करें-शायद आसपास कोई हो और उनका स्वर सुनकर आ जाए। यदि कोई आ जाए, तो रावण से चाहे उनकी रक्षा वह न कर सके, किंतु राम को समाचार तो दे ही सकेगा...किंतु रावण ने उन्हें इस प्रकार पकड़ रखा था कि उसका बायां हाथ उनके मुंह पर था। न वह हाथ हटता था और न वह चीत्कार कर सकती थीं। ऐसा ही तब हुआ था, जब विराध ने उनका अपहरण करने का प्रयत्न किया था। शारीरिक शक्ति में कम होने के कारण शस्त्र-विद्या भी व्यर्थ जा रही थी।...फिर भी उनका प्रयत्न निरंतर चल रहा था; किंतु इतना तो स्पष्ट ही था कि रावण की पकड़ से छूट पाना संभव नहीं था। प्रयत्न संघर्ष के लिए ही था।...संभव था, मार्ग में जटायु मिल जाएं। यद्यपि वृद्ध जटायु, रावण से लड़ने के लिए, उपयुक्त योद्धा नहीं थे, किंतु इस समय तो सीता की एकमात्र आशा उन्हीं पर टिकी हुई थी।
अपनी कुटिया के बाहर बैठे जटायु ने देखा, एक विशालकाय सांवला पुरुष एक स्त्री को बलात् उठाए लिए भागा जा रहा था। जटायु ने आंखों पर हथेली रखकर देखना चाहा, क्या सचमुच, वही हो रहा है, जो वे देख रहे हैं; या यह उनकी वृद्ध आंखों का भ्रम मात्र है, किंतु उनकी आंखें अभी ऐसी तो नहीं हुई कि शून्य में काल्पनिक दृश्य देखा करें, अन्यथा खर के साथ हुए युद्ध में वे भाग कैसे लेते; पर बहुत दिनों से इस वन में इस प्रकार की घटनाएं नहीं होतीं। राम के आने के साथ ही यहां प्रायः शांति हो गयी थी। वे द्वार से उठकर, पगडंडी के बीच आ खड़े हुए।
वह पुरुष उन्हीं की दिशा में बढ़ रहा था...उसकी भी दृष्टि सहसा जटायु पर पड़ी और वह अचकचाकर रुक गया। कदाचित उसकी पकड़ भी ढीली पड़ गयी और सीता को अवसर मिल गया।
"तात जटायु।" सीता अपनी पूरी शक्ति से चिल्लाई।
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