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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


मैं सिर झुकाए बैठी रही। सुरक्षा के नाम पर इस सर्कस पर शर्म आती रही। मेरी वज़ह से मुसाफिरों को काफी परेशानी हो रही थी। सबकी विस्मत निगाहें मुझ पर ही गड़ी हुई थीं। सभी लोग मुझे पहचान रहे थे। कोई-कोई मेरा ऑटोग्राफ लेने के लिए मेरे सामने आना चाहते थे मगर जहाज में पुलिस को चीरकर मुझ तक आना मुश्किल था।

नॉर्वे में उतरने के बाद भी मुझे हवाई अड्डे की तरफ नहीं जाने दिया गया। जहाज के पेट से निकालकर मुझे रन-वे की तरफ लाया गया, जहाँ पुलिस की गाड़ियों की कतार मेरा इंतज़ार कर रही थी। स्वीडन की सुरक्षा फौज ने मुझे नॉर्वे की सुरक्षा फौज के सुपुर्द कर दिया। पुलिसिया वर्दी में पुलिस ने पूरे हवाई अड्डे को घेर रखा था। मुझे हवाई अड्डे के ही एक गुप्त कक्ष में ले जाया गया! वहाँ अद्भुत कांड नज़र आया। हवाई अड्डे के अंदर मेरे दाखिल होने से पहले ही मेरा सूटकेस वहाँ रखा हुआ था। दुनिया में कहीं सुरक्षा का ऐसा तरीका भी हो सकता है, मैं हैरत-भरी निगाहों से देखती रही। बांग्लादेश में शांतिनगर में मेरे घर के सामने, सरकार ने दो राइफलधारी पुलिस वाले बिठा रखे थे। उसकी याद आते ही मैं दहशत से भर उठी। वे दोनों पुलिस वाले पड़े-पड़े सोते रहते थे। मेरे घर में कौन आया, कौन गया, वे दोनों कोई खबर नहीं रखते थे। मैं कब बाहर गई, कब लौटी, उन लोगों ने कभी पलटकर भी नहीं देखा। कभी-कभी तो मुझे यह शक होता था कि उन लोगों को वाकई क्या यह जानकारी है कि वे दोनों किसकी पहरेदारी कर रहे हैं? जैसी पहरेदारी वे दोनों कर रहे थे, उसे भला क्या कहते हैं?

बहरहाल, नॉर्वे में मुझे राइटर्स हाउस ले जाया गया। लेखक भवन! विशाल भवन! कभी यह इमारत किसी अमीर लेखक की रिहायशी कोठी थी। अब इसकी सारी जिम्मेदारी लेखक संगठन पर थी। लेखन संगठन किसी-किसी लेखक को चंद महीनों के लिए आमंत्रित करता था। यहाँ आइए, आराम से वैठकर लिखें। मेरे लिए वह भवन खोला गया। स्वीडन आने के वाद पहली बार सचमुच पेश करने लायक जगह मिली थी। बेडरूम ऐसा मानो कोई शहज़ादी आराम फरमा रही हो। विशाल ऊंची-ऊंची सीलिंग से झूलत हए लव-लब पर्द। खिड़कियों को ढके हुए पर्द! कमरे की छत पर 'सिस्टिन चैपेल' जैसी तस्वीरें अंकित की हुईं! समूची कोठी में भारी-भरकम सुनहरी नक्काशीदार फ्रेमों में जड़ी तस्वीरें! महीन-महीन नक्काशीदार-पुराने जमाने के असवाव! घुमावदार सीढ़ी! बिस्तर की गुनगुनी रजाई से निकलने का मन नहीं होता था। इस कोठी का आधा हिस्सा, इस वक्त नॉर्वे की सुरक्षा-फौज ने दखल कर रखा था। खैर, कार्यक्रम में साड़ी पहनूँगी, फिलहाल शर्ट-पेंट! स्वीडन के अजीबोगरीव ठहरे हुए जीवन से निकलना मेरे लिए ज़रूरी था। मैंने महसूस किया कि तिर-तिर काँपती-सिहरती खुशी मुझे छू-छूकर इठलाती रही।

यूजीन आ-आकर मेरी खोज-खबर लेता रहा। उसे मेरा सेक्रेटरी होना चाहिए था मगर वह मेरा अभिभावक बन बैठा था और इसी बात पर मुझे आपत्ति थी। नॉर्वे की सुरक्षा फौज ने मुझे ओस्लो शहर घुमा-फिराकर दिखाया।

पूरा ओस्लो शहर घूम लेने के बाद मैंने पुलिस से दरयाफ्त किया, “क्या बात है? शहर के अंदर नहीं चलोगे?"

“मतलब?"

मेरा ख़याल था, मैं किसी निर्जन शहर के करीब किसी कस्बे-गंज में घूम रही हूँ। लेकिन जहाँ मुश्किल से दस-बारह लोग आ-जा रहे थे, वही शहर की सबसे व्यस्त सड़क है, होती भी क्यों नहीं? समूचे देश की कुल जनसंख्या तीन मिलियन है। यूरोप में कदम रखते ही मैं बात-बात में 'मिलियन' शब्द का ज़िक्र सुनती थी। इस 'मिलियन' को समझने में मुझे वक्त लगा है। अपने देश में गिनती-गुणा मिलियन में नहीं की जाती। एक मिलियन अगर दस लाख होता है तो तीन मिलियन हुआ, तीस लाख! वहाँ दस-बारह लोगों के झुंड को भीड़ ही तो कहेंगे। देश का मानचित्र ख़ासा वड़ा है। बांग्लादेश का क्षेत्रफल एक सौ चौवालिस हज़ार वर्ग किलोमिटर है और नॉर्वे का कुल क्षेत्रफल तीन सौ चौबीस हजार, दो सौ बीस वर्ग किलोमीटर है। बांग्लादेश की जनसंख्या तेरह करोड़ से ज़्यादा है और नॉर्वे की जनसंख्या एक करोड़ भी नहीं है, बल्कि तीस या साढ़े तीस लाख है! सुरक्षा फौज के अधिकारी से पूछ-पूछकर, मैंने कई और तथ्यों की भी जानकारी हासिल की। नॉर्वे की जनसंख्या में पचास हज़ार पाकिस्तानी हैं। क्यों? पाकिस्तानी क्यों? सन् साठ के दशक में पश्चिमी यूरोप के देशों में कल-कारखानों में काम करने के लिए श्रमिकों की ज़रूरत पड़ी। श्रमिक अपेक्षाकृत गरीब देशों से लाए गए। नॉर्वे सारे मजदूर पाकिस्तान से लाया था। वे श्रमिक काम करते रहे, अब इन लोगों को श्रमिक की ज़रूरत नहीं है, लेकिन कल-कारखानों का काम ख़त्म हो जाने के बाद भी ये मज़दूर लौटकर अपने देश नहीं गए। अपने-अपने परिवार के साथ यहाँ शान से अपनी गृहस्थी वसा ली और यहीं वस गए। नॉर्वे में जैसे माइग्रेट हैं, जर्मनी में तुर्की, स्वीडन में फिन और इतालवी! फ्रांस में अल्जीयर, मोरक्को कांगो से आए हुए लोग! अव यही लोग समूचे देशों में अल्पसंख्यक वर्गों में सबसे बड़े हैं। यूरोप की पुरानी कॉलोनी से लोग-बाग नए जीवन की तलाश में यहाँ चले आए हैं। इसी तरह ब्रिटेन में भारतीय उपमहादेश के लोग, वल्जियम में कांगो के लोग, फ्रांस में उत्तरी अफ्रीका के लोग आ बसे हैं।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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