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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


कनाडा में टोरेन्टो के नेशनल लाइब्रेरी ऑडिटोरियम में मेरा व्याख्यान जारी था। ऑडिटोरियम के अंदर, एक भी कुर्सी खाली नहीं थी। लोग दीवालों से सटे खड़े थे। मेरे व्याख्यान के आयोजक, पश्चिम के गोरे लोग, जाहिर है दर्शक-श्रोता भी पश्चिमी गोरे! वादामी या काला रंग अगर कहीं था, वे लोग या तो अमेरिकी या अफ्रीकी थे या यरोपीयन अफ्रीकी! फ्रांस में गोरे फ्रेंच के साथ थोडा-बहत अल्जीरियन, ट्यूनीशियन, मोरक्कन लोग मौजूद रहते हैं। अफ्रीका के उत्तरांचल को मगरिव का देश कहा जाता है। उन सब देशों के बहुतेरे वाशिन्दों ने कट्टरवादियों के अत्याचार से त्रस्त होकर, यूरोप में शरण ली है, खासकर फ्रांस में। उन लोगों में भी कट्टरवाद-विरोधी धारदार आवाजें सुनाई देती हैं! खुमैनी के अत्याचार की वजह से, वहुतेरे लड़के-लड़कियाँ भी ईरान छोड़कर निर्वासन में चले गए और उन लोगों ने भी इस्लाम के बदन से ढीलमढाल लवादा खींचकर उतार दिया है। गोरे लोगों को कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट या यहूदियों के चेहरों के बीच झलकते हुए, ये सव चेहरे देखकर मैं प्रगाढ़ विस्मय से भर जाती हूँ और प्रेरित भी हुई हूँ। हाँ, उस कनाडा में, टोरेन्टी के विग्लिओटेक की दीवरों से चिपके खड़े कुछेक चेहरे वादमी ज़रूर थे, लेकिन मुझे अंदाज़ा हो गया कि वे सव चेहरे उत्तरी अफ्रीका के नहीं थे। वे चेहरे भारतीय उपमहादेशों के हैं, बांग्लादेश के हैं। मेरे व्याख्यान के अंत में, दर्शकों की तरफ से सवाल पूछे जाने के लिए, माइक्रोफोन आगे बढ़ा दिया गया। प्रश्नोत्तर के अंतिम दौर में मुझे अचरज में डालते हुए, एक नहीं, दो-दो बंगालियों ने कहा कि मेरी रचनाएँ उन्हें वेहद प्रिय हैं। वे लोग हमेशा से ही मेरा समर्थन करते आए हैं। मैं नारी-मक्ति के लिए जो आंदोलन कर रही हूँ, वह चिर-स्मरणीय रहेगा। मैं उन लोगों की गौरव हूँ! वगैरह-वगैरह! इतना सब कहने के बाद, उन दोनों ने अनुरोध किया कि मैं उन पर मेहरवानी करूँ और उन दोनों के साथ एक तस्वीर खिंचवाने की अनुमति दूँ। मुझसे मिलने के इस यादगार क्षण को, वे लोग फ्रेम में मढ़ाकर रखेंगे। कनाडा के सुरक्षा-प्रहरियों ने एक वाक्य में उनका अनुरोध ख़ारिज कर दिया। आयोजकों ने भी घोषणा कर दी कि सुरक्षा कारणों से ही, मेरे करीब आने की भी सख्त मनाही है। कनाडा के अनगिनत सुरक्षा-प्रहरी मुझे चारों तरफ से घेरे रहे। मेरी छाया तक के दायरे में, किसी को भी प्रवेशाधिकार नहीं था, लेकिन व्यूह तोड़कर मैं आ खड़ी हुई। अपने लोगों के लिए मेरे मन में ऐसा आवंग उमड़ आया कि सुरक्षा-प्रहरियों के निपेध की अवमानना करते हुए, मैंने ऐलान किया-"वांग्लादेश मेरा देश है। वे लोग मेरे देश के लोग हैं, मेरे आत्मीय जैसे! वे लोग मेरे समर्थक हैं। उन्हें मेरे करीब आने दें! मैं उन लोगों से बातें करूँगी। वे लोग तस्वीर खिंचवाना चाहते हैं, खिंचवा लें!"

मेरी उत्कृष्ठ इच्छा के आगे सुरक्षा कर्मियों ने सिर झुका दिया। अंत में, जो वंगाली उस सभा में आए थे, उन्हें मेरे साथ तस्वीर उतरवाने की अनुमति दे दी गई। सभी लोग लगभग टूट पड़े। यह देखकर मुझे बेहद भला लगा था। इतने सारे बंगाली मुझे प्यार करते हैं। मेरे आदर्शों और विश्वासों को मूल्यवान मानते हैं। यह सहसा नहीं घटता। लम्बे वर्षों से खुद बंग्लादेश में भी ऐसा नहीं घटा। आम लोग पहले मेरा समर्थन करते थे, बाद में उन लोगों ने भी अपने को समेट लिया था-"मैं इस्लाम-विरोधी हूँ! बी.जे.पी. से रुपए लेकर मैंने 'लज्जा' लिखी। मैं रॉ की जासूस हूँ। मैं मर्द-विरोधी हूँ! मैं नष्ट लड़की हूँ! मैंने ढेरों विवाह किए है! मैं दुश्चरित्र हूँ।"-बांग्लादेश के प्रचार-माध्यम इन सब झूठे प्रचारों का इतनी निष्ठा से पालन करते रहे कि मैंने देखा कि मेरे देश के आम लोग भी कितनी तेज़ी से मुझसे विमुख हो गए, मुझसे दूर खिसक गए, जो कभी मेरी सबसे बड़ी ताकत थे। जब राष्ट्र के विभिन्न यंत्र मुझे नोंच-नोंचकर खा रहे थे और मंझोले स्तर के लेखक-कवि मेरे प्रति ईर्ष्यालु हो उठे थे। आम लोग मेरे साथ थे। कनाडा के चंद देशी लोगों ने मुझे बेहद पुलकित, उत्तजित और आनंदित कर गई, लेकिन जब ये लोग मेरे करीव आते हैं, मंच के इर्द-गिर्द पहुँच जाते हैं, मुझे कभी दाँए-बाँए खड़ी करके, न कोई बात, न चीत, न संवाद, न शुभेच्छा, न कुशलता का आदान-प्रदान, बस, पागलों की तरह कैमरों के वटन दवाने लगते हैं। मेरे साथ किसी को खड़ा करके तस्वीरें उतारी गईं। वाकायदा हंगामा-धमाल ! हलचल! मुझे ठीक-ठीक समझ में नहीं आता कि यह हो क्या रहा है?

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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