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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


नोरबर्ट चला गया और मैं बगल के अकेले कमरे में बैठी-बैठी कागज पर आड़ी-तिरछी लकीरें खींचती रही। मैंने लिखा-हमबर्ग में एटलांटिक होटल की लॉबी में, एक दिन आधी रात को नोरबर्ट प्लम्बेक के लिए मेरा तन और मन कैसे तो चाह कर बैठा। एक जोड़ी नीली-नीली आँखों के लिए मेरी आँखों में प्यास जाग उठी। उन गोरी-गोरी उँगलियों के लिए मेरी उँगलियाँ और उसके होंठों की प्यास से मेरे होंठ धूसर मरुभूमि बन गए। शैम्पेन के गिलास कँपकँपाते रहे। पैकेट-पैकेट मार्लबोरो मुखाग्नि में स्वाहा होते रहे। उससे उठता हुआ धुआँ बालों, चिबुक को चूमते रहे। बाकी सारी बात, मैं नोरबर्ट की नीली आँखों का रूप-रस पान करती रही। उसकी आँखों का रूप, जितना-जितना पीती रही, उतना ही उसका रूप खिला पड़ रहा था, उतनी ही उन नीली-नीली आँखों से मोह झरता रहा। नोरबर्ट यह सब कुछ नहीं समझता। नोरबर्ट तो सिर्फ अपनी मर्सिडीज समझता है, अपना हवाई जहाज समझता है! वह नहीं समझता कि जिसका मन बारहों महीने सूखे की आग में सुलगता रहता है, उसके लिए रुपए-पैसे, धन-दौलत नितांत फूस-तिनके जैसे हैं।"

जो लोग यह जानते हैं कि मैं तारिका किस्म की कोई चीज़ हूँ। मेरे करीब आकर भी मेरी तरफ प्यार-भरी निगाहों से नहीं देखता था या आवेगपर्ण हाथ. मेरी तरफ नहीं बढ़ाता। वे लोग मेरी तरफ अपना हाथ शायद इसलिए नहीं बढ़ाते, क्योंकि वे लोग यह सोच लेते हैं कि उनका दुस्साहस देखकर, मैं कहीं नाराज न हो जाऊँ। मेरा चलना-फिरना उन्हीं लोगों में हैं, जो लोग मुझे तारिका के तौर पर पहचानते हैं। इससे बाहर, जहाँ मैं नितांत, अपरिचित हूँ, वहाँ मैं ऐरी-गैरी कोई क ख ग घ भर हूँ। मेरी तरफ मुग्ध निगाहों से निरखने के बजाय अक्सर मुझे धक्का देकर चले जाने का वाकया ही ज्यादा घटता है। दिन-रात आकाश पार विदेश भ्रमण, व्याख्यान, परस्कार, अभिनंदन! वहाँ लोगों की ठसाठस भीड! फिर भी मैं कितनी निपट अकेली हूँ! प्रेमहीनता में मेरे तमाम दिन दुर्दिन हो आए हैं।

अचानक एक दिन कैसर का फोन आया। फोन नंबर उसने मेरे घर से लिया था। घर वालों ने फोन पर मुझसे पूछ लिया था कि उसे फोन दिया जाए या नहीं। मैंने ही उन लोगों को फोन नंबर देने को कह दिया था। कैसर ने फोन पर मामूली ढंग से मेरी खैर-खबर पूछी। मैं कैसी हूँ? सब ठीक-ठाक है न? मैंने भी हल्के-फुल्के ढंग से देश का हाल-चाल पूछा और उसे चले आने को कहा। वह सचमुच आने को राजी हो गया। सूयान्ते वेइलर को भी मैंने इत्तला दे दी कि मेरे स्वीडन के विदेश मंत्रालय से कहकर, मेरे प्रेमी को यहाँ वीसा दिला दे। कैसर वीसा लेने, स्वीडन के दूतावास पहुँचा। उसे उसी पल वीसा मिल गया। मैंने उसे बताया कि उसे फौरन वीसा मिल जाने की खास वजह है। वह मेरा प्रेमी है, यह भी बहत बड़ा कारण है। अगर मैं कैसर को अपना प्रेमी न कहकर, अपना दोस्त या चचेरा भाई या मामा या काका कहती तो उसे वीसा हरगिज नहीं मिलता। स्वीडन देश प्यार का सम्मान करता है। इस देश में कोई भी इंसान विवाह कर ले या साथ-साथ रहने लगे, तो उसका एक ही आधार होता है-प्रेम! इस देश में प्रेमी या प्रेमिका का मोल, पिता, माँ, भाई-बहन से ज्यादा होता है। 'लिव टुगेदर' या साथ-साथ रहने वाले प्रेमी-प्रेमिका में अगर कभी विच्छेद हो जाता है तो दोनों की मदद से इकट्ठा की हुई संपत्ति, कानूनी तौर पर उन दोनों में बराबर-बराबर बाँट दी जाती है। इन सबमें नाते-रिश्तेदारों की कोई भूमिका नहीं होती। स्वीडन में कैसर की एक बहन भी रहती थी। अपनी उस बहन से मिलने के लिए उसने कई बार अनुमति माँगते हुए आवेदन किया था, मगर उसे अनुमति नहीं मिली। इस बार मिल गई। नहीं, मैंने अपने अब्बू, अम्मी, भाई, बहन के लिए कभी वीसा की.माँग नहीं की। सिर्फ कैसर के लिए की थी। उस कैसर ने कभी मेरी कोई खोज-खबर नहीं ली। जब मैं दो महीनों तक इस-उस घर के अंधेरे में छिपती फिर रही थी, वही कैसर स्वीडन आ पहँचा । उस कैसर के साथ. कहीं कुछ था, जो मुझसे मेल नहीं खाता था। उस शख्स के साथ कभी मेरा अदम्य प्यार था। अपने उसी प्रणयी-साथी को जब मैं अपने करीब ले आई तो देखा, वह इंसान तो ठीक-ठाक है, मगर अब, सिर्फ वह प्यार ही गायब है। अव सिर्फ प्यार का नाटक-भर रह गया है। वह बाकायदा शिथिल पड़ा रहा। मैंने पूछा भी-“क्या हुआ है तुम्हें?" जवाब मिला, “पेट में दर्द है।" लेकिन, अब मैं शांतिबाग और शांतिनगर की लड़की नहीं रही। अब मैं अनजाने, अद्भुत परिवेश में रहती हूँ, हर पल गोरे, सुदर्शन पुरुष मेरे अंगरक्षक हैं। साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उसने अचरज से फटी-फटी आँखों से देखा कि यहाँ मैं स्टार हूँ! तारिका हूँ। ना, उसने मुझे कोई मुबारकवाद नहीं दी। उसकी आँखों में कोई खुशी भी नहीं थी, बल्कि कैसर ने तो मेरी हर चीज से ईर्ष्या शुरू कर दी। उसे हर वक्त यही खटका लगा रहता था कि शायद मैं किसी खूबसूरत मर्द की मुहब्बत में न पड़ जाऊँ, खासकर रोनाल्ड की मुहब्बत में! कैसर की तंगदिली बढ़ती ही गई। धान कूटने वाली अगर स्वर्ग में भी पहुँच जाए तो वहाँ भी वह चावल ही कटती है। मर्द भी जहाँ जाता है, वहाँ उससे भी पहले उसकी ईर्ष्या पहुँच जाती है। यह सब देखकर मैं भड़क गई। भयंकर भड़क गई। अच्छा, मैं इस कदर गुस्से से पागल क्यों हो उठी? क्या इसलिए कि स्वीडन में और किसी पर यूँ नाराज नहीं हो सकती? किसी और पर चीख-चिल्ला नहीं सकती इसलिए? हाँ, मैं वही करती रही। मेरे मन में जितना गुस्सा, जितना क्षोभ था, सब कैसर पर ही बरसता रहा। उसने आते ही ऐलान किया, वह अपनी बहन के घर जाएगा। मैंने देखा, वह अपनी बहन और बहन के बच्चों के लिए बक्सा भर-भरकर भेंट लाया है। खैर, वह ला सकता है, लेकिन मुझे बुरी तरह अभिमान होता रहा। अद्भुत था वह अभिमान! मुझे हर पल यह लगता रहा कि मेरे लिए, कैसर के मन में कोई प्यार-मुहब्बत नहीं है। वह मेरे प्यार में खिंचा हुआ नहीं आया। वह मुझे इस्तेमाल करके स्वीडन में अपने नाते-रिश्तेदारों से मिलने आया है। मुझे यह भी लगा कि कैसर यहाँ हमेशा के लिए बस जाने के मंसूबे लेकर स्वीडन आया है। बांग्लादेश के लोग तो यही करते हैं। वे लोग छल-बल-कौशल से यूरोप के किसी धनी देश तक आ पहुँचते हैं और बस वहाँ की धरती से चिपटकर पड़े रहते हैं।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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