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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


गैबी के अख़बारों के स्तूप में, हर अखबार के पहले पन्ने पर सिर्फ मेरी तस्वीर! मेरी ख़बर! अख़बारों का यह स्तूप काफी दिनों से जमा होता रहा था।

उन अख़बारों पर हाथ से छूते हुए मैंने उससे पूछा, “इनमें से कुछेक अख़बार क्या मैं ले सकती हूँ?"

“तुम यह सब लेकर क्या करेगी? इसके अलावा तुम तो यह सब भाषा पढ़ भी नहीं सकतीं?"

"भले पढ़ न पाऊँ, अपने पास सहेजकर रख तो सकती हूँ।"

"कितना जमा करोगी? ये तो हज़ारों-हज़ारों की संख्या में हैं।"

नहीं, उसके कहने का मतलब था, यह सव इकट्ठा करना मुझे शोभा नहीं देता। यह सव निहायत तुच्छ चीजें हैं। मेरा तो बड़ा-सा ऑफिस होगा। सेक्रेटरी होंगे। साहित्यिक एजेंट होंगे।

गैवी मेरी जो तस्वीर दिखाता है, उसमें मैं अपने को पहचान नहीं पाती। मेरे मन में काफी अजीबो-गरीब सपने पलते हैं, मगर ऐसा कोई सपना नहीं था। मुझे यहाँ रहना ही कितने दिन है? देश की स्थिति ठीक-ठाक होते ही मैं अपने देश लौट जाऊँगी। उन कट्टरवादियों की मुझे चढ़ाने की झख कम होने में आखिर कितने दिन लगेंगे? मैंने तो विदेश मंत्री, गैवी, ङ इन सबसे पहले दिन ही कह दिया था कि शायद दो-तीन महीनों में ही मेरे देश की परिस्थिति ठीक हो जाएगी।

"इसलिए कि स्वीडिश पेन क्लब तुम्हारा अभिभावक है?"

"मैं अभिभावक-टावक नहीं मानती!" मैंने हँसकर जवाब दिया।

"सुनो, तुम यहाँ अपना व्यक्तिगत ठिकाना क्यों इस्तेमाल करते हो? कोई दफ्तर नहीं है? स्वीडिश पेन क्लब का अपना कोई दफ्तर नहीं है?" गैवी के घर के सोफे पर आराम से बैठते हुए मैंने पूछा था।

"सुनो, तुम ये अख़बार मुझे दे दो! मैं देखूगी।"

“यह सब लेकर तुम क्या करोगी? इन्हें मेरे पास ही रहने दो। तुम आराम करो।"

जिल ने भी यही बात कही। उसका भी यही कहना था कि यह सब मैं कुछ नहीं समझूगी। गैबी को ही समझने दो। अस्तु, गैबी जो मेरे लिए इतना कुछ कर रहा है, उसकी कोई तुलना नहीं है! जैसा गैबी कहता है, मुझे उसी तरह चलना चाहिए।

क्रिश्चन बेस भी मुझसे मिलने आयी थीं। मुझे खबर मिली कि वह होटल म ठहरी हैं। पुलिस से कह गयी हैं कि ठीक छह बजे मैं रेस्तराँ में पहुँच जाऊँ। उस रेस्तराँ में गैबी और उसकी पत्नी भी मेरे साथ गए। रेस्तराँ में क्रिश्चन और फच लेखिका, इरेन फ्रेइन मेरी राह देख रही थीं। जाहिर यह किया गया मानो दिन-भर में इतनी व्यस्त थी कि क्रिश्चन से मेरी मुलाकात नहीं हो सकती थी। हुँः खाक़ व्यस्त थी मैं! निकम्मी ही तो बैठी थी।

क्रिश्चन ने मुझे चौंकाते हए मेरा जन्मदिन मनाया! बड़ा-सा केक मँगाया गया। 'एपारशनल' स्टॉकहोम का सबसे महँगा रेस्तराँ था। यहाँ जो-सो लोग खाना नहीं खा सकते। यहाँ बेहद दौलतमंद-अमीर लोग आते हैं। क्रिश्चन फ्रांस से यहाँ, मेरा जन्मदिन मनाने आयी थी। रेस्तराँ से निकलकर वह टैक्सी लेकर अपने होटल की तरफ रवाना हो गयी। वह मेरे लिए ढेरों उपहार भी लायी थी। कार्टियर की कलम! शनल का शैनेल फाइव! क्रिश्चन डिओर की खुशबू! बहरहाल, गैबी ने क्रिश्चन के साथ मेरी इतनी ही मुलाक़ात मंजूर की थी। मेरे बारे में क्रिश्चन सीधे-सीधे मुझसे बात नहीं कर रही थी। वह गैबी से बातें करती रही। क्रिश्चन और भी दो दिन यहाँ रुकी थी, लेकिन रेस्तराँ के बाहर मेरी उससे फिर मुलाक़ात नहीं हुई। मैंने सोचा था कि क्रिश्चन को गाड़ी से उसके होटल तक पहुँचा दूंगी, लेकिन, ऐसा नहीं हो पाया।

गैवी ने कहा, “ना! क्रिश्चन वेस, टैक्सी लेकर, अपने होटल तक जा सकती हैं।"

"क्यों? मैं भी तो उन्हें वहाँ तक छोड़ सकती हूँ।"

"ना!"

"क्यों?"

"मुश्किल है!"

"क्या मुश्किल है?"

गैवी ने बेहद धीमी आवाज़ में अपनी मुश्किल बतायी और साथ ही क्रिश्चन की तरफ हाथ मिलाकर हँसते हुए अलविदा कहा। इन सव वर्तावों का अनुवाद मुझे नहीं आता।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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