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बर्फ की रानी

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5019
आईएसबीएन :9788174830180

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Barf Ki Rani a hindi book by Srikant Vyas - बर्फ की रानी - श्रीकान्त व्यास

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

बर्फ़ की रानी

एक जादूगर था। वह बहुत दुष्ट था। बिल्कुल राक्षस ही समझो। दूसरों को तंग करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। उसने एक ऐसा जादुई आईना तैयार किया, जिसमें हर अच्छी और सुन्दर चीज भद्दी और बदसूरत दिखाई देती थी। आमतौर से तो उसमें अच्छी चीजें दिखाई ही नहीं देती थीं। खराब और बदसूरत चीज़ें उसमें खूब अच्छी मालूम पड़ती थीं।
इस जादुई आइने में अगर कोई सुन्दर आदमी देखता तो उसकी शक्ल बिल्कुल बिगड़ जाती थी। कभी सिर गायब, तो कभी पेट गायब। हाथ पैर इस तरह मुड़े हुए और टूटे हुए-से लगते थे कि कोई उसको पहचान नहीं सकता था। जादूगर यह देखकर दुष्टतापूर्वक हंसता था और मन ही मन बड़ा खुश होता था।

जादूगर ने अपने बहुत-से चेले पाल रखे थे। वे भी एक से एक बढ़कर दुष्ट थे। वे उस जादुई आईने को लेकर घूमते थे और लोगों को उनकी बदली हुई शक्लें दिखाकर चिढ़ाया करते थे।

एक बार उसके शिष्यों को एक नयी चाल सूझी। उन्होंने सोचा कि देवतागण और स्वर्ग की अप्सराएं वगैरह अपने को बहुत सुन्दर मानती हैं। चलो उन्हें भी उनकी असली शक्ल इस आइने में दिखाई जाए। यह सोचकर वे जादू के बल से आईना उठाकर आसमान में उड़ने लगे। वे उढ़ते चले गए। यहां तक कि इतनी ऊंचाई पर जा पहुँचे कि उनके हाथ से वह जादुई आईना छूट गया और ज़मीन पर जा गिरा। गिरते ही उसके इतने चोटे-छोटे टुकड़े हो गए कि वे हवा में उड़ने लगे। संसार के लिए यह और भी बुरी बात हुई। उस शैतान आईने के ज़र्रे कुछ लोगों की आँखों में पड़े और वे हर अच्छी चीज को बुरी समझने लगे। उस शैतान आईने के टुकड़े कुछ लोगों के दिल में भी जा बैठे।। यह और भी बुरा हुआ। लोगों के दिलों से दया, ममता प्रेम, स्नेह—सब कुछ उड़ गया और वे पत्थर दिल हो गए, बिलकुल बर्फ़ जैसे ठंडे और कड़े। उस शीशे के कुछ बड़े टुकड़े इकट्ठा करके लोगों ने इनके चश्मे बना लिए और उन्हें अपनी आंखों पर लगाकर वे अपने पड़ोसियों और मिलने-जुलने वालों, सबको बुरा समझने लगे।

जादूगर यह देखकर खूब प्रसन्न हुआ और खिल-खिलाकर हंसता रहा। अब भी उस शैतान आईने के टुकड़े हवा में तैर रहे हैं। इनका क्या असर होता है। इसे हम आगे की कहानी में पढ़ेंगे।
एक बड़ा शहर था, जहाँ बहुत से लोग रहते थे। वह इतना घना बसा हुआ था और लोगों के पास इतने छोटे-छोटे मकान थे कि वे एक बगीचा तक नहीं लगा सकते थे। ऐसी ही घनी बस्ती में दो छोटे बच्चे रहते थे। एक लड़का और एक लड़की। दोनों भाई-बहन नहीं थे, लेकिन दोनों में भाई-बहन जैसा ही प्यार था। उनके घर इतने पास-पास थे कि वे अपने घर की खिड़की पार करके दूसरे की खिड़की में जा सकते थे। खिड़की के पास लकड़ी के बड़े-बड़े डिब्बों में उनके घर के लोगों ने कुछ पौधे लगा रखे थे, जिनमें गुलाब भी थे।

जाड़े के दिनों में दोनों का मिलना-जुलना बन्द हो जाता था, क्योंकि इतनी बर्फ़ गिरती थी कि खिड़कियों के शीशों पर भी बर्फ़ की मोटी तह जम जाती थी। वे एक-दूसरे को देख भी नहीं पाते थे। ऐसे मौके पर वे किसी सिक्के को अंगीठी पर ख़ूब गर्म करते थे और फिर उसे खिड़की के शीशे पर चिपका देते थे। इससे गर्मी पाकर उतनी जगह की बर्फ़ गल जाती थी और एक छोटा-सा छेद बन जाता था। उसी छेद से दोनों एक-दूसरे को देखते थे। लड़के का नाम था किटी और लड़की का नाम था गेर्डा।

कभी-कभी लड़के की दादी दोनों को कहानियां, खासकर बर्फ़ की रानी की कहानियां सुनाती थी।
एक दिन शाम को बाहर बर्फ़ गिर रहा थी। लड़का अपने कमरे में ही था। उसने एक छेद से झांककर बाहर देखा। बाहर पौधों के डिब्बों में बर्फ़ गिर रही थी। अचानक बर्फ़ के एक गोले पर उसकी नज़र जम गई। उसने देखा कि बर्फ़ का वह गोला बढ़ते-बढ़ते रूई के एक ढेर की तरह हो गया। यही नहीं, थोड़ी देर में लगा कि वहां सफेद वस्त्र पहने एक रानी बैठी है। जिसने तारों का मुकुट पहन रखा है। लड़का उसे देखता ही रह गया। क्या यही बर्फ़ की रानी है ? अचानक रानी ने उसको अपनी ओर आने का इशारा किया। लड़का डर गया और खिड़की से नीचे उतर आया। अचानक उसने देखा कि एक बड़ी-सी सफेद चिड़िया उसकी खिड़की के पास से उड़ गई है और बर्फ़ की रानी गयाब हो गई।

इसके कई दिन बाद की बात है। लड़का गेर्डा के पास बैठा था। दोनों एक किताब के पन्ने उलट रहे थे, जिसमें चिड़ियों और जंगली जानवरों के चित्र थे। तभी जैसे ही गिरजे की घंटी ने बारह बजाए लड़का कहने लगा, ‘‘लगता है मेरी आंखों में कुछ गिर गया है और मेरे सीने में दर्द हो रहा है।’’ गेर्डा ने उसकी आंखें देखीं, लेकिन उसे कुछ नहीं दिखाई दिया। असल में उसकी आंखों में उसी शैतान आइने का कोई बारीक टुकड़ा आ गिरा था। थोड़ी ही देर में वह गेर्डा से झगड़ने लगा और बोला, ‘‘तुम इस तरह रोती क्यों हो ? और तुम्हारा चेहरा कितना भद्दा मालूम पड़ता है —छिः !’’ असल में गेर्डा हंस रही थी, लेकिन लड़के को उलटा ही दिखाई देता था।
वह फिर बोला, ‘‘ये गुलाब के पौधे कितने भद्दे हैं ? और यह डिब्बा भी सड़ गया है। उसने डिब्बे को ठोकर मार दी और फूल नोच डाले। लड़की चिल्लाई, ‘‘अरे तुम यह क्या कर रहे हो।’’ लेकिन वह नहीं माना और उसे धक्का देकर भाग गया। उस शैतान आईने के टुकड़े से अब वह बहुत शरारती और झगड़ालू हो गया था।
वह दादी को मुंह चिढ़ाता, किताबें फाड़ डालता था और पड़ोसियों को तंग करता था। वह गेर्डा को भी बहुत-बहुत रुलाया करता था, क्योंकि उसके दिल में भी शैतानी आईने के टुकड़े चले गए थे।

जाड़े के दिनों में एक दिन वह गरम कपड़े पहनकर और हाथों में दस्ताने पहनकर मुहल्ले के शरारती लड़कों के साथ खेलने निकल गया। वे लोग बर्फ़ पर फिसलने का खेल खेल रहे थे। उधर से जब लोगों की गाड़ियाँ गुजरती थीं तो लड़के अपनी फिसलने वाली स्लेजों को उनके पीछे बांध देते थे और दूर तक फिसलते चले जाते थे।
किटी ने भी एक गाड़ी के पीछे अपनी स्लेज बांध दी और फिसलना शुरू कर दिया। उस गाड़ी में एक आदमी सफेद लबादा ओढ़े और मोटी सफेद टोपी लगाए बैठा था। वह आदमी बार-बार मुड़कर किटी को अपने पीछे आने का इशारा करता था और किटी उसके पीछे-पीछे फिसलता जा रहा था। गाड़ी शहर की सड़कों को पार करती हुई थोड़ी देर में शहर के बाहर आ गई। किटी कुछ घबराया। उसने अपनी स्लेज को गाड़ी से छुड़ाने की कोशिश की। लोकिन उसकी कोशिश बेकार गई। किटी ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली और अगर निकलती भी तो वहां सुनता कौन !
बर्फ़ तेज़ी से गिर रही थी। इतने में किटी ने देखा कि गाड़ीवान की टोपी और लबादा ग़ायब हो गया और गाड़ीवान की जगह सफेद वस्त्र पहने एक सुंदर देवी आ बैठी। किटी ने फौरन पहचान लिया, यह बर्फ़ की रानी थी !

बर्फ़ की रानी ने किटी को अपनी गाड़ी में बिठा लिया और उसे अपनी सफ़ेद चद्दर से ढककर बोली, ‘‘तुम्हें बहुत जाड़ा लग रहा है न !’’ लेकिन उसकी चद्दर में तो और भी ठंडक थी। बर्फ़ की रानी ने जब प्यार से उसका माथा चूमा तो उसे लगा जैसे उसका माता बर्फ़ से छू गया हो।

वह आसमान में उड़ने लगी। किटी ने सुना, बादल रानी के स्वागत में कोई गीत गा रहे थे। अब वे लोग बादलों के भी ऊपर उड़े जा रहे थे। बर्फ़ की रानी उसे बादलों के देश में ले आई थी।
उधर गेर्डा उसकी याद में बड़ी दुःखी थी। लड़कों से उसे मालूम हुआ कि किसी गाड़ी के साथ किटी स्लेज में घिसटता हुआ न मालूम कहां चला गया। लड़कों की आंखों में आंसू आ गए और गेर्डा तो फूट-फूट कर रोने लगी। कुछ दिनों बाद जाड़ा खत्म हो गया। बसन्त ऋतु आई। जब बसन्त ऋतु की सुहावनी धूप गेर्डा की खिड़की में आई, तो उसे अपने साथी की बड़ी याद आई। एक दिन वह अपने लाल जूते पहनकर नदी किनारे जा पहुंची और नदी से पूछने लगी, ‘‘क्या तुम मेरे भाई को बहा ले गई हो ? मैं तुम्हें अपने ये नये नये जूते दूंगी, तुम मेरा भाई ला दो !’’

इसके जवाब में नदी की लहरें अजीब तरह से हिलने लगीं। गेर्डा ने अपने जूते पानी में फेंक दिए। लेकिन लहरे जूतों को बहाकर फिर से नदी किनारे छोड़ गईं। गेर्डा को लगा कि शायद उसने जूते ज्यादा दूर नहीं फेंके, इसलिए ये वापस लौट आए हैं। उसने देखा कि पास ही सरपत की झाड़ी के पास एक नाव खड़ी थी। वह नाव पर चढ़ गई और वहां से उसने जोर लगाकर जूते पानी में फेंक दिए। लेकिन ऐसा करते समय नाव को एक झटका लगा और उसकी रस्सी खुल गई और नाव नदी में बहने लगी। गेर्डा बड़ी घबराई। लेकिन नाव को रोकने का कोई चारा ही नहीं था। वह बड़ी तेज़ी से बही जा रही थी। गेर्डा डरकर चिल्लाने लगी। लेकिन किसी ने उसकी आवाज़ नहीं सुनी। नाव बहती रही। गेर्डा ने सोचा कि शायद यह नाव उसे किटी के पास ले जायेगी। नाव बहती-बहती ऐसी जगह जा पहुँची, जहां नदी-किनारे एक छोटी-सी झोंपड़ी बनी थी, जिसकी एक खिड़की नीली थी और दूसरी लाल। झोंपड़ी के दरवाजे पर लकड़ी के दो सिपाही खड़े थे। जैसे ही गेर्डा की नाव झोंपड़ी के पास पहुंची, सिपाहियों ने उसे सलाम किया। गेर्डा ने सोचा शायद ये जिन्दा हैं। वह मदद के लिए उन्हें पुकारने लगी। लेकिन सिपाही चुपचाप खड़े रहे। उसकी आवाज़ सुनकर झोंपड़ी में से एक बुढ़िया निकली। वह एक लाठी के सहारे चल रही थी। उसने अपनी लाठी से नाव को किनारे की ओर खींचते हुए कहा, ‘‘हाय, बेचारी लड़की ! तुम कितनी दूर पानी में बह आई !’’ फिर उसने गेर्डा को उठाकर किनारे उतार लिया। गेर्डा किनारे पर पहुंचकर बहुत खुश हुई। लेकिन साथ ही इस विचित्र बुढ़िया को देखकर उसे डर लग रहा था।

बुढ़िया के पूछने पर गेर्डा ने सारा किस्सा कह सुनाया और फिर पूछा, ‘‘क्या तुमने मेरे भाई किटी को देखा है ?’’
बुढ़िया बोला, ‘‘नहीं, मैंने उसे नहीं देखा। लेकिन अगर वह नदी में बह रहा है, तो जरूर यहां आ पहुंचेगा।
तुम घबराओ मत। तब तक तुम यहीं रहो और आराम से यहां के फूल सूघों। यहां आसपास बड़ा अच्छा बगीचा है, जिसमें ऐसे फूल लगते हैं जैसे तुमने कभी नहीं देखे होंगे।’’
फिर बुढ़िया उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी झोंपड़ी में ले गई। अन्दर जाकर उसने दरवाजा बन्द कर लिया। असल में यह बुढ़िया एक जादूगरनी थी। लेकि यह दुष्ट नहीं थी। गेर्डा के बाल संवारते-संवारते वह उस पर जादू कर रही थी। वह उसे अपने पास ही रखना चाहती थी।
धीरे-धीरे गेर्डा किटी को भूलने लगी।

फिर बुढ़िया उसे अपना बगीचा दिखाने ले गई। उस बाग में तरह-तरह के फूल खिले हुए थे। वह दिन-भर उनके बीच खेलती रही। शाम को जब वह थक गई, तब उसके सोने के लिए एक छोटा-सा और खूब मुलायम बिस्तर लगाया गया। गेर्डा जैसे ही उस पर लेटी कि उसे गहरी नींद आ गई और वह मीठे सपने देखने लगी। इस तरह धीरे-धीरे उसके दिन बीतने लगे। वह उस बाग के हर फूल को जानती थी। लेकिन उसे लगता था। कि कोई एक फूल इसमें से गायब है। वह कौन-सा फूल है, यह उसे याद नहीं आता था। एक दिन उस बुढ़िया के हैट पर उसकी नजर गई और उसे फौरन याद आया कि इस बाग में गुलाब के फूल नहीं है। इसलिए यह इतना सूना-सूना-सा लगता है। असल में बात यही थी कि उस बुढ़िया ने जादू के ज़ोर से बाग के सारे गुलाब के पौधों को गायब कर दिया था। उसे डर था कि अगर गेर्डा गुलाब देखेगी तो उसे किटी की याद आ जाएगी। लेकिन वह अपने हैट पर बने हुए गुलाब के चित्र को मिटाना भूल गई थी।
‘‘यह क्या, इस बाग में गुलाब का एक भी फूल नहीं है ?’’ गेर्डा बोली। उसे अपने गुलाब इतने याद आए कि वह बगीचे में बैठकर रोने लगी। उसके आंसू टपक रहे थे। वहं पहले गुलाब का एक सुन्दर –सा पौधा लगा था,

जिसे बुढ़िया ने अपने जादू के जोर से गायब कर दिया था। गेर्डा के गरम-गरम आंसू जब उस जगह टपके तो वहां फिर से गुलाब का पौधा निकल आया। उस पर बहुत ही सुंदर फूल खिले थे। गेर्डा ने गुलाब के फूल को चूम लिया। उसे पिछली सारी बातें याद हो आयीं। उसने गुलाब के फूल से पूछा, ‘‘क्यों, क्या किटी मर गया ?’’
गुलाब के फूल बोले, ‘‘नहीं, अभी वह मरा नहीं है। हम तो अब तक जमीन में ही थे, जहां मरे हुए लोग रहते हैं। वहां हमें किटी नहीं मिला ?’’

लेकिन जब गेर्डा ने उनसे किटी का पता पूछा, तो उनमें से कोई उसका पता नहीं बता सका।
गेर्डा उस बाग में बेचैन होकर इधर-उधर भटकने लगी। इतने में एक कौवा कांव-कांव करता हुआ आया और गेर्डा के सामने आ बैठा। गेर्डा ने उससे किटी के बारे में पूछा तो वह बड़ी देर तक चुप रहा और गर्दन हिलाता रहा। फिर अचानक बोला, ‘‘ओह, हाँ , याद आया। शायद वह किटी ही था लेकिन अब वह राजकुमारी के पास रहता है। वह ज़रूर तुम्हें भूल गया होगा। इस देश में एक राजकुमारी रहती है। वह बड़ी चालाक है। वह दुनिया-भर के अखबार पढ़ती है, और सारी खबरें उसे मालूम रहती हैं। एक दिन उसने सोचा कि अब मुझे शादी करनी चाहिए। वह अपने लिए ऐसा लड़का खोजने लगी, जो बहुत बुद्धिमान हो, जिसे अच्छी तरह बात करना आता हो।’’
‘‘ठीक है, लेकिन क्या मेरा किटी तुम्हें वहां दिखाई दिया ?’’

कौवा बोला, ठहरो बता रहा हूँ। हां तो, वहां एक दिन एक लड़का आया। वह देखने में बड़ा सुंदर था, बिलकुल तुम्हारी तरह वह सीधा अन्दर घुस गया। हालांकि वह फटे और गन्दे कपड़े पहने था। लेकिन कोई उसे रोक नहीं सका। वह सीधा राजकुमारी के पास जा पहुंचा। उसने राजकुमारी से कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मन जीतने नहीं आया हूँ, बल्कि तुम्हारी बुद्धिमानी की बातें सुनने आया हूं।’’

‘‘हां हां, वह मेरा किटी ही होगा। वह बड़ा बहादुर है। क्या तुम मुझे राजकुमरी के महल में ले जा सकते हो !’’
कौवा बोला यह इतना आसान काम नहीं है। पहले मैं अपनी कौवी से इसके बारे में बात कर लूं, क्योंकि तुम्हारी जैसी छोटी बच्ची को महल में ले जाने की इजाजत पाना बड़ा मुश्किल है। अच्छा, तुम यहीं बैठो। मैं ज़रा अपनी कौवी से बात कर आऊँ।’’ यह कहकर कौवा उड़ गया।
थोड़ी देर बाद फिर कांव-कांव करता हुआ वह लौट आया और बोला, ‘‘मेरी कौवी ने तुमको सलाम भेजा है, और लो यह रोटी का टुकड़ा भी दिया है। इसे खा लो, तुम्हें भूख लगी होगी। तुम रोओ मत। मेरी कौवी तुम्हें पिछवाड़े के दरवाजे से महल में पहुंचा देगी। आओ, चलो मेरे साथ।’’


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