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भूतनाथ - भाग 1

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : शारदा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1995
पृष्ठ :284
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4853
आईएसबीएन :81-85023-56-5

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भूतनाथ - भाग 1

खण्ड-एक

पहिला भाग

 

मेरे पिता ने तो मेरा नाम गदाधरसिंह रक्खा था और बहुत दिनों तक मैं इसी नाम से प्रसिद्ध भी था परन्तु समय पड़ने पर मैंने अपना नाम भूतनाथ रख लिया था और इस समय यही नाम बहुत प्रसिद्ध हो रहा है. आज मैं श्रीमान् महाराज सुरेन्द्रसिंह जी की आज्ञानुसार अपनी जीवनी लिखने बैठा हूँ, परन्तु मैं इस जीवनी को वास्तव में जीवन के ढंग और नियम पर न लिख कर उपन्यास के ढंग पर लिखूँगा, क्योंकि यद्यपि लोगों का कथन यही है, तेरी जीवनी से लोगों को नसीहत होगी परन्तु ऐबों और भयानक घटनाओं से भरी हुई मेरी नीरस जीवनी कदाचित लोगों को रुचिकर न हो, इस खयाल से जीवनी का रास्ता छोड़ इस लेख को उपन्यास के रूप में लाकर रस पैदा करना ही मुझे आवश्यक जान पड़ा. प्रेमी पाठक महाशय यही समझें कि किसी दूसरे ही आदमी ने भूतनाथ का हाल लिखा है, स्वयं भूतनाथ ने नहीं, अथवा इसका लेखक कोई और ही है.

जेठ का महीना और शुक्ल-पक्ष की चतुर्दशी का दिन है. यद्यपि रात पहर-भर से कुछ ज्यादे जा चुकी है और आँखों में ठण्ढक पहुँचाने वाले चन्द्रदेव भी दर्शन दे रहे हैं परन्तु दिन भर की धूप और लू की बदौलत गरम भई हुई जमीन, मकानों की छतें और दीवारें अभी तक अच्छी तरह ठण्डी नहीं हुईं, अब भी कभी-कभी सहारा दे देने वाले हवा के झपटे में गर्मी मालूम पड़ती है और बदन से पसीना निकल रहा है. बाग में सैर करने वाले शौकीनों को भी पंखे की जरूरत है, और जंगल में भटकने वाले मुसाफिरों को भी पेड़ों की आड़ बुरी मालूम पड़ती है.

ऐसे समय में मिर्जापुर से बाईस कोस दक्खिन की तरफ हट कर छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर जिस पर बड़े-बड़े घने पेड़ों की कमी तो नहीं है मगर इस समय पत्तों की कमी के सबब से जिसकी खूबसूरती नष्ट हो गई है, एक पत्थर की चट्टान पर हम ढाल-तलवार तथा तीर-कमान लगाए हुए दो आदमियों को बैठे देखते हैं जिनमें से एक औरत और दूसरा मर्द है. औरत की उम्र चौदह या पन्द्रह वर्ष की होगी मगर मर्द की उम्र बीस वर्ष से कम मालूम नहीं होती. यद्यपि इन दोनों की पोशाक मामूली सादी और बिल्कुल ही साधारण ढंग की है मगर सूरत-शक्ल से यही जान पड़ता है कि ये दोनों साधारण व्यक्ति नहीं हैं बल्कि किसी अमीर बहादुर और क्षत्री खानदान के होंनहार हैं. जिस तरह मर्द चपकन, पायजामा, कमरबन्द और मुड़ासा पहिरे हुए है उसी तरह औरत ने भी चपकन, पायजामा, कमरबन्द और मुड़ासे से अपनी सूरत मर्दाने ढंग की बना रक्खी है. यकायक सरसरी निगाह से देख कर कोई यह नहीं कह सकता कि यह औरत है, मगर हम खूब जानते हैं कि यह कमसिन औरत नौजवान लड़की है जिसकी खूबसूरती मर्दानी पोशाक पहिरने पर भी यकताई का दावा करती है, मगर जिसकी शर्मीली आँखें कहे देती हैं कि इसमें ढिठाई और दबंगता बिल्कुल नहीं हैं. इस समय ये दोनों परेशान और बद-हवास हैं, दिन-भर के चले और थके हुए हैं, चेहरे पर गर्द पड़ी है, सुस्त होकर पत्थर की चट्टान पर बैठ गए हैं. तथा रात्रि का समय भी है, इसलिए यहाँ पर इन दोनों की खूबसूरती तथा नखशिख का वर्णन करके हम श्रृंगार रस पैदा करना उचित नहीं समझ कर केवल इतना ही कह देना काफी समझते हैं कि ये दोनों सौ-दो-सौ खूबसूरतों में खूबसूरत हैं. इन दोनों की अवस्था इनकी बातचीत से जानी जायगी अस्तु आइए और छिप कर सुनिए कि इन दोनों में क्या बातें हो रही हैं.

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