सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
कई आ०– हम जांच कर चुके।
मुस०– तो तुम्हें किसकी बैयत मंजूर है?
शोर– हुसैन की! रसूल के नवासे की।
मुस०– उनके बारे में तुमने उन बातों की जांच कर ली? तुम्हें यकीन है कि हुसैन उस बुराइयों से पाक है?
कई आ०– हमने जांच कर ली। हुसैन में कोई बुराई नहीं। हम हुसैन को अपना खलीफा तस्लीम करते है। जियाद ने हमें गुमराह कर दिया था।
एक आदमी– पहले जियाद को कत्ल कर दो।
दु० आ०– बेशक, उसी ने गुमराह किया था।
मुस०– नहीं तुम्हें रसूल का वास्ता है। मोमिन पर मोमिन का खून हराम है।
[सब आदमी वहीं बैठ जाते हैं, और मुसलिम के हाथों पर हुसैन की बैयत करते हैं।]
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