लोगों की राय

सदाबहार >> कर्बला

कर्बला

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4828
आईएसबीएन :9788171828920

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

448 पाठक हैं

मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।

चौथा दृश्य

[स्थान– काबा, मरदाना बैठक। हुसैन, जुबेर, अब्बास मुसलिम अली असगर आदि बैठे दिखाई देते हैं।]

हुसैन– यह पांचवी सफ़ारत है। एक हज़ार से ज्यादा खतूत आ चुके हैं। उन पर दस्तखत करने वालों की तादाद पन्द्रह हजार से कम नहीं है।

मुस०– और सभी बड़े-बड़े कबीलों के सरदार है। सुलेमान, हारिस, हज्जाज, शिमर, मुख्तार, हानी, ये मामूली आदमी नहीं हैं।

जुबेर– मैं तो अर्ज कर चुका कि मुसल्ल ईराक आपकी बैयत कबूल करने के लिये बेकरार है।

हुसैन– मुझे तो अभी तक उनकी बातों पर एतबार नहीं होता। खुदा जाने, क्यों मेरे दिल में उनकी तरफ से दग़ा का शुबहा घुसा हुआ है। मुझे हबीब की बातें नहीं भूलती, जो उसने चलते-चलते कही थी।

मुस०– गुस्ताखी तो है, पर आपका उन पर शक करना बेजा है। आखिर आप उनकी वफ़ादारी का और क्या सबूत चाहते हैं? वे कसमें खाते हैं, वादे करते हैं, साफ़ लिखते हैं कि आपकी मदद के लिये बीस हज़ार सूरमा तैयार बैठे हैं। अब और क्या चाहिए?

जुबेर– कम-से-कम मैं तो ऐसे सबूत पाकर पल की भी देर न करता।

अब्बास– मुझे तो इन कूफ़ियों पर उस वक्त भी एतबार न आएगा, अगर उनके बीसों हजार आदमी यहाँ आकर आपकी बैयत की कसम खा लें। अगर वह कुरान शरीफ़ हाथ में लेकर कसमें खायें, तो भी मैं उनसे दूर भागूं।

[तारिक आता है।]

तारिक– अस्सलाम अलेक या हुसैन।

हुसैन– खुदा तुम पर रहमत करे। कहां से आ रहे हो?

तारिक– कूफ़ा के मजमूलों ने अपनी फ़रियाद सुनाने के लिये आपकी खिदमत में भेजा है। आफ़ताब डूबते चला था, और आफ़ताब डूबते आया हूं, और आफ़ताब निकलने के पहले यहां से जाना है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book