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			 सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
जुहाक– पीर मुगां (साकी) 
यजीद– लाना हाथ। हमारा पीर साकी है, जिसके दस्तेकरम से हमें यह नियामत मयस्सर हुई है। अच्छा, कौन मेरे ख़याल के जवाब देता है, दोखज कहां है? 
शम्स– किसी सूदखोर की तोंद में। 
यजीज– बिलकुल ग़लत। 
रूमी– खलीफ़ा के गुस्से में। 
यजीद– (मुस्कराकर) इनाम के क़ाबिल जवाब है, मगर गलत। 
कीस– किसी मुल्ला की नमाज में, जो जमीन पर माथा रगड़ते ताकता रहता है कि कहीं से रोटियां आ रही है या नहीं। 
यजीद– वल्ला, खूब जवाब है, मगर ग़लत। 
जुहाक– किसी नाजनीन के रूठने में। 
यजीद– ठीक-ठीक, बिल्कुल ठीक। लाना हाथ। दिल खुश हो गया– (वेश्याओं से) नरगिस, इस जवाब की दाद तो, जुहरा, शेखजी के हाथों में बोसा दो। वह गीत गाओ, जिसमें शराब की बू हो, शराब का नशा हो, शराब की गर्मी हो। 
नरगिस– आज खलीफ़ा से कोई बड़ा इनाम लूंगी। (गाती है) 
खैर हो, भर दे मेरा पैमाना आज।
नाज करता झूमता मस्ताना बार,
अब आता है, सूए-मैखाना आज।
बोसए-लब हुस्न के सदके में दे,
ओ बुते तरसा हमें तरसा न आज।
इश्के-चश्मे-मस्त का देखो असर,
पांव पड़ता है मेरा मस्ताना आज।
मेरे सीरो की इलाही खैर हो,
है बहुत मुजतर दिले दीवाना आज।
मुहतसिब काडर नहीं, ‘बिस्मिल’ तुम्हें,
सूए-मसजिद जाते ही रंदाना आज।
						
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