सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
मरवान– (खत पढ़कर) आह! मुआबिया, तुमने बेवक्त वफ़ात पाई। तुम्हारा नाम तारीख में हमेशा रोशन रहेगा। तुम्हारी नेकियों को याद करके लोग बहुत दिनों तक रोएंगे। यजीद ने खिलाफत अपने हाथ में ले ली, यह बहुत ही मुनासिब हुआ। मेरे ख़याल में हुसैन को इसी वक्त बुलाना चाहिए।
वलीद– तुम्हारे खयाल में बैयत ले लेंगे?
मरवान– गैरमुमकिन। उनसे बैयत लेना उन्हें कत्ल करने को कहना है। मगर अभी मुआबिया के मरने की खबर मशहूर न होनी चाहिए।
वलीद– इस मामले पर गौर करो।
मरवान– गौर की जरूरत नहीं, मैं आपकी जगह होता, तो बैयत का जिक्र ही न करता। फौरन कत्ल कर डालता। हुसैन के जिंदा रहते हुए यजीद को कभी इतमीनान नहीं हो सकता। यह भी याद रखिए कि मुआबिया के मरने की खबर फैल गई, तो न हमारी जान सलामत रहेगी, न आपकी। हुसैन से आपका कितना ही दोस्ताना हो, लेकिन वही हुसैन आपका जानी दुश्मन हो जायेगा।
वलीद– तुम्हें उम्मीद है कि वह इस वक्त यहाँ आएंगे। उन्हें शुबहा हो जायेगा।
मरवान– आपके ऊपर हुसैन का इतना भरोसा है, तो इस वक्त भी आएंगे। मगर आपकी तलवार तेज और खून गर्म रहना चाहिए। यही कारगुजारी का मौका है। अगर हम लोगों ने इस मौके पर यजीद की मदद की, तो कोई शक नहीं कि हमारे इक़बाल का सितारा रोशन हो जायेगा।
वलीद– मरवान, मैं यजीद का गुलाम नहीं, खलीफ़ा का नौकर हूं, और खलीफ़ा वही है, जिसे क़ौम चुनकर मसनद पर बिठा दे। मैं अपने दीन और ईमान का खून करने से यह कही बेहतर समझता हूं कि कुरान पाक की नकल करके जिंदगी बसर करूं।
मरवान– या अमीर, मैं आपको यजीद के गुस्से से होशियार किए देता हूं। मेरी और आपकी भलाई इसी मैं है कि यजीद का हुक्म बजा लाएं। हमारा काम उनको बंदगी करना है, आप दुविधा में न पड़ें। इसी वक्त हुसैन को बुला भेजें।
(गुलाम को पुकारता है)
गुलाम– या अमीर, क्या हुक्म है?
मरवान– जाकर हुसैन बिन अली को बुला ला। दौड़ते जाना और कहना कि अमीर आपके इंतजार में बैठे हैं।
(गुलाम चला जाता है)
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