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सदाबहार >> कर्बला

कर्बला

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4828
आईएसबीएन :9788171828920

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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।


[सातों भाई गाते हुए मैदान में जाते हैं।]

जय भारत, जय भारत, जय मम प्राणपते!
भाल विशाल चमत्कृत सित हिमगिर राजे,
परसत बाल प्रभाकर हेम-प्रभा ब्राजे।
जय भारत…
ऋषि-मुनि पुण्य तपोनिधि तेज-पुंजधारी,
सब विधि अधम अविद्या भव-भय-तमहारी।
जय भारत…
जय जय वेद चतुर्मुख अखिल भेद ज्ञाता,
सुविमल शांति सुधा-निधि मुद मंगलदाता।
जय भारत…
जय जय विश्व-विदांवर जय विश्रुत नामी,
जय जय धर्म-धुरंधर जय श्रुति-पथगामी।
जय भारत…
अजित अजेय अलौकिक अतुलित बलधामा,
पूरन प्रेम-पयोनिधि शुभ गुन-गुन-ग्रामा।
जय भारत…
हे प्रिय पूज्य परम मन नमो-नमो देवा,
बिनवत अधम-पापि जन ग्रहन करहु सेवा।
जय भारत…


अब्बास– गज़ब जांबाज हैं। अब मुझ पर यह हकीकत खुली कि इस्लाम के दायरे के बाहर भी इस्लाम है। ये सचमुच मुसलमान हैं और रसूल पाक ऐसे आदमियों की शफ़ाअत न करें, मुमकिन नहीं।

हुसैन– कितनी दिलेरी से लड़ रहे हैं!

अब्बास– फौज़ में बेखौफ़ घुसे जाते हैं। ऐसी बेजिगरी से किसी के मौत के मुंह में जाते नहीं देखा।

अली अक०– ऐसे पांच सौ आदमी भी हमारे साथ होते, तो मैदान हमारा था।

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