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सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
नसीमा– अम्माजान, रसूल पाक ने अगर कोई बेइंसाफी की, तो वह यही है कि औरतों पर जियाद हराम कर दिया, वरना इस वक्त मैं वहब के पहलू में होती। देखिए, दुश्मन उन पर चारों तरफ से कितनी बेदर्दी से नेजे़ और तीर फेंक रहे हैं। किसी की हिम्मत नहीं है कि उनके सामने खम ठोककर आए। आह! देखिए, उनके हाथ कितनी तेजी से चल रहे हैं। जिस पर उनका एक हाथ पड़ जाता है, वह फिर नहीं उठता, दुश्मन भागे जाते हैं। हा बुजदिलो, नामर्दो! वह इधर चले आ रहे हैं, बदन खून से तर हैं, जिस पर भी जख्म लगे हैं।
[वहब आकर खेमे के सामने खड़ा हो जाता है।]
वहब– अम्माजान, मुझसे राजी हुई?
क़मर– बेटा, तुझ पर हजार जान से निसार हूं। तुमने बाप का नाम रोशन कर दिया, लेकिन मैं चाहती हूं कि जब तक तेरे हाथों में ताकत है, तब तक दुश्मनों को आराम न लेने दे।
वहब– (स्वगत) आह! हक़ पर जान देना भी उतना आसान नहीं है, जितना लोग खयाल करते हैं। (प्रकट) अम्मा, यही मेरा भी इरादा है, लेकिन नसीमा के आसुंओं की याद मुझे खींच लाई है।
[क़मर चली जाती है।]
नसीमा, तुम्हें आखिरी बार देखने की तमन्ना मैदान से खींच लाई। सनम का पुजारी सनम ही पर कुर्बान हो सकता है, दीन और ईमान, हक़ और इंसाफ, ये सब उसकी नजरों में खिलौने की तरह लगते हैं। मुहब्बत दुनिया की सबसे मजबूत बेड़ी है, सबसे सख्त जंजीर। (चौंककर) कोई पहलवान मैदान में आकर ललकार रहा है। हाय! लानत हो उन पर, जो हक को पामाल करके हजारों को नामुराद मरने पर मजबूर करते हैं। नसीमा, हमेशा के लिये रूखसत? मेरी तरफ एक बार मुहब्बत की निगाहों से देख लो, उनमें मुहब्बत का ऐसा जाम हो कि उसका नशा मेरे सिर से कयामत तक न उतरे।
नसीमा– मेरी जान आह! दिल निकला जाता है…।
[वहब मैदान की तरफ चला जाता है।]
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