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सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
एक– वह हुसैन दौड़े चले आते हैं। भागों, नहीं तो जान न बचेगी।
हुसैन– हुर की लाश से लिपटकर
हो होश में आ लाश पै हम आए हैं भाई।
[हुर आंखें खोलकर देखते हैं, और अपना सिर उनकी गोद में रख देते हैं।]
हुर– या हजरत, आपके कदमों पर निसार हो गया, जिंदगी ठिकाने लगी।
जर्रा था यह सब महरे-मुनौवर हुआ आका़।
हुसैन– हाय! मेरा जांबाज रफीक़ दुनिया से रुखसत हो गया। यह वह दिलावर था, जिसने हक पर अपने रुतबा और दौलत को निसार कर दिया, जिसने दीन के लिये दुनिया को लात मार दी। ये हक पर जान देने वाले हैं, जिन्होंने इस्लाम के नाम को रोशन किया है, और हमेशा रोशन रखेंगे। जा मुहम्मद के प्यारे, जन्नत तेरे लिए हाथ फैलाये हुए है। जा, और हयात अब्दी के लुत्फ उठा। मेरे नाना से यह दीजियो कि हुसैन भी जल्द ही तुम्हारी खिदमत में हाजिर होने वाला है, और तुम्हारे कुन्बे को साथ लिए हुए। काबिल ताजीम हैं वे माताएं, जो ऐसे बेटे पैदा करती हैं!
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