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सदाबहार >> कर्बला

कर्बला

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4828
आईएसबीएन :9788171828920

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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।

सातवाँ दृश्य

[समय ८ बजे रात। हुसैन एक कुर्सी पर मैदान में बैठे हुए हैं। उनके दोस्त और अजीज सब फ़र्श पर बैठे हुए हैं। शमा जल रही है।]

हुसैन– शुक्र है, खुदाए-पाक का, जिसने हमें ईमान की रोशनी अता की, ताकि हम नेक को क़बूल करें, और बद से बचें। मेरे सामने इस वक्त मेरे बेटे और भतीजे, भाई और भांजे, दोस्त और रफी़क सब जमा हैं। मैं सबके लिए खुदा से दुआ करता हूँ। मुझे इसका फख्र है कि उसने मुझे ऐसे सआदतमंद अजीज और ऐसे जाँ निसार दोस्त अता किए। अपनी दोस्ती का हक़ पूरी तरह अदा कर दिया, आपने साबित कर दिया कि हक़ के सामने आप जान और माल की कोई हक़ीकत नहीं समझते। इस्लाम की तारीख में आपका नाम हमेशा रोशन रहेगा। मेरा दिल खयाल से पाश-पाश हुआ जाता है कि कल मेरे बायस वे लोग, जिन्हें जिंदा हिम्मत चाहिए, जिनका हक है जिंदा रहना, जिनको अभी जिंदगी में बहुत करना बाकी है, शहीद हो जायेंगे। मुझे सच्ची खुशी होगी, अगर तुम लोग मेरे दिल का बोझ हल्का कर दोगे। मैं बड़ी खुशी के हरएक को इजाजत देता हूं कि उसका जहां जी चाहे, चला जाये। मेरा किसी पर कोई हक़ नहीं है। नहीं मैं तुमसे इल्तमास करता हूं इसे क़बूल करो। तुमसे किसी को दुश्मनी नहीं हुई है, जहां जाओगे, लोग तुम्हारी इज्जत करेंगे। तुम जिंदा शहीद हो जाओगे, जो मरकर शहादत का दर्जा पाने से इज्जत की बात नहीं। दुश्मन को सिर्फ मेरे खून की प्यास है, मैं ही उसके रास्ते का पत्थर हूं। अगर हक़ और इंसाफ को सिर्फ मेरे खून से आसूदगी हो जाये, तो उसके लिए और खून क्यों बहाया जाये? साद से एक शव की मुहलत मांगने में यही मेरा खयाल था। यह देखो में यह शमा ठंडी किए देता हूं, जिसमें किसी को हिजाब न हो।

[सब लोग रोने लगते हैं, और कोई अपनी जगह से नहीं हिलता।]

अब्बास– या हजरत, अगर आप हमें मारकर भगाएं, तो भी हम नहीं जा सकते। खुदा वह दिन न दिखाए कि हम आपसे जुदा हों। आपकी सफलता के साए में पल-भर अब हम सोच ही नहीं सकते कि आपके बगैर हम क्या करेंगे, कैसे रहेंगे।

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