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सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
शिमर– क्या आप लोगों की यही मर्जी है कि आज जंग मुल्तवी की जाय?
हुर– यहां जितने असहाय मौजूद है, सब अपनी राएं दे चुके, अमीरे-लश्कर भी चला गया। ऐसी हालात में मुहलत के सिवा और हो ही क्या सकता है। अगर आप अपनी जिम्मेदारी पर जंग करना चाहते हैं, तो शौक से कीजिए।
[हुर, हज्जाज बगैरह भी चले जाते हैं।]
शिमर– (दिल में) कौन कहता है कि हुसैन के साथ दग़ा की गई? यहां सब-के-सब के दोस्त हैं। इस फौ़ज में रहने से कहीं यह बेहतर था कि सब के सब हुसैन की फौज में होते। तब भी उनकी इतनी मदद न कर सकते। मुझे जरा ताज्जुब न होगा, अगर कल सब लोग हथियार रखकर हुसैन के कदमों पर गिर पड़े। जियाद को इस मुहलत की भी इत्तिला तो दे ही दूं।
[साद का क़ासिद मुहलत का पैग़ाम लेकर हुसैन के लश्कर की तरफ जाता है। शिमर अपने खेमे की तरफ़ जाता है।]
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