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कर्बला

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4828
आईएसबीएन :9788171828920

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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।


साद– (खत पढ़कर) तुम बाहर बैठो, इस जवाब दिया जायेगा। (कासिद चला जाता है) इसमें भी वही ताकीद है कि हुसैन को पानी मत लेने दो, जंग करने में एक लहमें की देर न करो। देखिए, लिखते हैं–

‘‘हुसैन से जंग करने के लिये अब कोई बहाना नहीं रहा। फौज की कमी की शिकायत थी, सो वह भी नहीं रही। अब मेरे पास २२ हजार सवार और पैदल मौजूद हैं।’’

शिमर– बेशक, उनका लिखना वाजिब है। मैं जाकर सख्त हुक्म देता हूं कि हुसैन के लश्कर की एक चिड़िया भी दरिया के किनारे न आने पाए। आप जंग का हुक्म दे दें।

साद– आपको मालूम है, २२ हजार आदमियों में कितने अजाब के खौफ़ से भाग गए, और रोज भागते जाते हैं।

शिमर– इसीलिये तो और भी जरूरी है कि जंग शुरू कर दी जाये, वरना रफ्ता-रफ्ता यह सारी फौज बादलों की तरह गायब हो जायेगी। पर मैंने सुना है, जियाद ने उन सब आदमियों को गिरफ्तार कर लिया है, और बहुत जल्द वे सब फौज में आ जायेंगे। पर यह हुक्म भी जारी कर दिया है कि जो आदमी फौज से भागेगा, उसकी जायदाद छीन ली जायेगी, और उसे खानदान के साथ जलावतन कर दिया जायेगा, इस हुक्म का लोगों पर अच्छा असर पड़ा है। अब उम्मीद नहीं कि भागने की कोई हिम्मत करे। मुझे यह भी खबर मिली है कि जियाद ने कई आदमियों को कत्ल करा दिया है।

[एक और कासिद का प्रवेश]

कासिद– अस्सलामअलेक बिन साद। हजरत हुसैन ने यह खत भेजा है, और उसका जवाब तलब किया है। (साद को खत देता है।)

साद– (खत पढ़कर) बाहर जाकर बैठो। अभी जवाब मिलेगा।

शिमर– (खत पर झुककर) इसमें क्या लिखा है?

साद– (खत को बंद करके) कुछ नहीं, यही लिखा है कि मैं तुमसे मिलना चाहता हूं।

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