सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
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मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
तीसरा दृश्य
[केरात-नदी के किनारे साद का लश्कर पड़ा हुआ है। केरात से दो मील के फासले पर कर्बला के मैदान में हुसैन का लश्कर है। केरात और हुसैन के लश्कर के बीच में साद ने एक लश्कर को नदी के पानी को रोकने के लिये पहरा को बैठा दिया है। प्रातःकाल का समय। शिमर और साद खेमे में बैठे हुए हैं।]
साद– मेरा दिल अभी तक हुसैन से जंग करने को तैयार नहीं होता। चाहता हूं, किसी तरीके से सुलह हो जाये, मगर तीन कासिदों में से एक भी मेरे खत का जवाब न ला सका। एक तो हज़रत हुसैन के पास जा ही न सका, दूसरा शर्म के मारे रास्ते ही से किसी तरह खिसक गया, और तीसरे से जाकर हुसैन की बैयत अख्तियार कर ली। अब और कासिदों को भेजते हुए डरता हूं कि इनका भी वही हाल न हो।
शिमर– ज़ियाद को ये बातें मालूम होंगी, तो आपसे सख्त नाराज होगा।
साद– मुझे बार-बार यही ख्याल आता है कि हुसैन यहां जंग के इरादे से नहीं, महज हम लोगों के बुलाने से आए हैं। उन्हें बुलाकर उनसे दग़ा करना इंसानियत के खिलाफ़ मालूम होता है।
शिमर– मुझे खौफ़ है कि आपके ताखीर से नाराज होकर, जियाद आपको वापस न बुला लें। फिर उनके गुस्से से खुदा ही बचाए। जियाद ने कितनी सख्त ताकीद की थी कि हुसैन के लश्कर को पानी का एक बूंद भी न मिले। वहां उनके आदमी दरिया से पानी ले जाते है, कुएं खोदते हैं। इधर से कोई रोक-टोक नहीं होती। क्या आप समझते हैं कि जियाद से ये बातें छिपी होंगी।
साद– मालूम नहीं, कौन उसके पास ये सब खबरें भेजता रहता है?
शिमर– उसने यहां अपने कितने गोंइदे बिठा रखे हैं, जो दम-दम की खबरें भेज देते हैं।
[एक कासिद का प्रवेश]
कासिद– अस्सलामअलेक बिन साद। अमीर का हुक्मनामा लाया हूं।
[साद को जियाद का खत देता है।]
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