सदाबहार >> कर्बला कर्बलाप्रेमचंद
|
448 पाठक हैं |
मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।
वहब– आह! मेरे ही कारण उस गरीब की जान गई। जामा मसजिद में हजारों आदमी जमा थे। खबर है, और तहकीक खबर है कि हज़रत हुसैन मक्के से बैयत लेने आ रहे हैं। जालिमों के होश उड़े हुए हैं। जो पहले बच रहे थे, उनसे अब यजीद की खिलाफत का हलफ़ लिया जा रहा है। जियाद ने जब मुझसे हलफ़ लेने को कहा, तो मैं राजी हो गया। इनकार करता तो उसी वक्त कैदखाने में डाल दिया जाता। जियाद ने खुश होकर मेरी तारीफ की, और यजीद के हामियों की सफ़ में ऊंचे दर्जे पर बिठाया, जागरीर में इजाफ़ा किया, और कोई मंसब भी देना चाहते हैं। उसकी मंशा यह भी है कि सब हामियों को एक सफ़ में बिठाकर एकबारगी सबसे हलफ़ ले लिया जाये इसीलिये मुझे देर हो रही थी। इसी असना में सालिम पहुंचा, और मुझे यजीदवालों की सफ़ में बैठे देखकर मुझसे बदजबानी करने लगा। मुझे दग़ाबाज जमानासाज बेशर्म, खुदा जाने, क्या-क्या कहा, और उसी जोश में यजीद और जियाद दोनों ही को शान में बेअदबी की। मुझे ताना देता हुआ बोला, मैं आज तुम्हारे नमक की कैद से आजाद हो गया। मुझे कत्ल होना मंजूर हैं मगर ऐसे आदमी की गुलामी मंजूर नहीं, जो खुद दूसरों का गुलाम है। जियाद ने हुक्म दिया– इस बदमाश की गर्दन मार दो और, जल्लादों ने वहीं सहन में उसको कल्ल कर डाला। हाय! मेरी आंखों के सामने उसकी जान ली गई, और मैं उसके हक़ में जबान तक न खोल सका, उसकी तड़पती हुई लाश मेरी आंखों के सामने घसीटकर कुत्तों के आगे डाल दी गई, और मेरे खून में जोश न आया। आफियत बड़े मंहगे दामों में मिलती है।
नसीमा– बेशक, महंगे दाम हैं। तुमने अभी बैयत तो नहीं ली?
वहब– अभी नहीं, बहुत देर हो गई, लोगों की तादाद बढ़ती जाती थी आखिर आज हलफ़ लेना मुल्तवी किया गया। कल फिर सबकी तलबी है।
नसीमा– तुम इन जालिमों को बैयत हर्गिज न लेना।
वहब– नहीं नसीमा, अब उसका मौका निकल गया।
नसीमा– मैं तुमसे मिन्नत करती हूं हर्गिज न लेना।
वहब– तुम मेरी दिलजूई के लिए अपने ऊपर जब्र कर रही हो।
|