लोगों की राय

सदाबहार >> कर्बला

कर्बला

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :155
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4828
आईएसबीएन :9788171828920

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

448 पाठक हैं

मुस्लिम इतिहास पर आधारित मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया यह नाटक ‘कर्बला’ साहित्य में अपना विशेष महत्त्व रखता है।

सातवां दृश्य

[नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है– समय १२ बजे रात का।]

नसीमा– (दिल में) वह अब तक नहीं आए। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। खुदा करे, वह आते हों। दुनिया में रहते हुए हमारे ऊपर मुल्क की हालात का असर न पड़े। मुहल्ले में आग लगी हो तो अपना दरवाजा बंद करके बैठ रहना खतरे से नहीं बचा सकता। मैंने अपने तई इन झगड़ों से कितना बचाया था, यहां तक कि अब्बाजान और अम्मा जो यजीद की बैयत न कबूल करने के जुर्म में जलावतन कर दिए गए, तब भी मैं अपना दरवाजा बंद किए बैठी रही, पर कोई तदबीर कारगर न हुई। बैयत की बला फिर गले पड़ी। वहब मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार है। वह यजीद की बैयत भी कबूल कर लेता, चाहें उसके दिल को कितना ही सदमा हो। पर जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर अब मेरा दिन भी यजीद की बैयत की तरफ मायल नहीं होता, उससे नफ़रत होती है। मुसलिम कितनी बेदरदी से कत्ल किए गए हानी को जालिम ने किस बुरी तरह कत्ल कराया। यह सब देखकर अगर यजीद की बैयत कबूल कर लूं, तो शायद मेरा जमीर मुझे कभी मुआफ न करेगा। हमेशा पहलू में खलिश होती रहेगी। आह! इस खलिश को भी सह सकती हूँ, पर वहब की रूहानी कोफ्त अब नहीं सही जाती। मैंने उन पर बहुत जुलम किए। अब उनकी मुहब्बत की जंजीर को और न खींचूंगी। जिस दिन से अब्बा और अम्मा निकाले गए हैं, मैंने वहब को कभी दिल से खुश नहीं देखा। उनकी वह जिंदादिली गायब हो गई। यों वह अब भी मेरे साथ हंसते हैं, गाते हैं, पर मैं जानती हूं, यह मेरी दिलजुई है। मैं उन्हें जब अकेले बैठे देखती हूं, तो वह उदास और बेचैन नजर आते हैं…वह आ गए, चलूं दरवाजा खोल दूं।

[जाकर दरवाजा खोल देती है। वहब अंदर दाखिल होता है।]

नसीमा– तुम आ गए, वरना मैं खुद आती। तबियत बहुत घबरा रही थी। गुलाम कहां रह गया?

वहब– क़त्ल कर दिया गया। नसीमा, मैंने किसी को इतनी दिलेरी से जान लेते नहीं देखा। इतनी लापरवाही से कोई कुत्ते के सामने लुकमा भी न फेंकता होगा। मैं तो समझता हूं, वह कोई औलिया था।

नसीमा– हाय, मेरे वफ़ादार और गरीब सालिम! खुदा तुझे जन्नत नसीब करे। जालियों ने उसे क्यों क़त्ल किया?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book