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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


सबसे पहले सांसों को व्यवस्थित कर उसने खुद को सम्भाला फिर धीरे से अलादीन का तकिया हटाकर देखा, तो चाबियों का गुच्छा वहीं था। रईसा ने लगभग झपट कर वह गुच्छा उठा लिया और फौरन अलमारी के पास पहुँच गई। इधर-उधर नजर दौड़ाकर एक चाबी ताले में डाली, ताला नहीं खुला। फिर दूसरी डाली, इसी तरह तीन-चार बार कोशिश करने से गुच्छे की एक चाबी से ताला आसानी से खुल गया। ताला खोलने के बाद उसने बहुत आराम से अलमारी का दरवाजा खोला। अलमारी खुलते ही उसने देखा कि अलमारी. के अंदर एक खाने में रखा चिराग जगमगा रहा था। रईसा का चेहरा खिल गया। उसने झपटकर चिराग उठाकर अपने आंचल में छिपा लिया और अलमारी बंद करके ताला लगा दिया।
इतना काम करते-करते रईसा का दिल इतनी जोर-जोर से धड़कने लगा था कि उसे लगा कि उसका दिल एक झटके के साथ हलक से बाहर निकलकर गिर पड़ेगा, फिर भी उसने हिम्मत नहीं खोई और बिजली की-सी फुर्ती से अलादीन के हाथ से अंगूठी निकाली और हवा के झोंके की तरह कमरे से बाहर निकल गयी।
उसका काम पूरा हो चुका था। घबराहट से उसका चेहरा सफेद पड़ गया था। अपने कमरे में पहुँचकर वह ‘धम्म' से बिस्तर पर आ गिरी। सभी लोगों के नृत्य में मसरूफ होने की वजह से उसे किसी ने भी नहीं देखा। उसके हाथ-पैर अभी भी कांप रहे थे, लेकिन दिल मारे खुशी के बल्लियों उछल रहा था। उधर चाँदनी का नृत्य जोरों पर था। काफी रात बीत जाने पर नृत्य खत्म हुआ।
शहजादी उठकर अपने कमरे में आ गयी। उसने देखा अलादीन गहरी नींद में सो रहा है। अशरफ को उसने पालने में लिटाया और खुद कपड़े बदलकर अलादीन के बगल में जाकर लेट गयी।

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