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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


अपने सामने इतनी सारी अशर्फियां देख उसकी आँखें चुधिया गईं। एकाएक उसकी हालत सकते की सी हो गयी। अपने जीवन में इतनी अशर्फियां उसने एक साथ पहली बार देखी थीं।
फिर उसने अलादीन की ओर देखा और कहने लगी-“बेटा! मुझे तो
यह सब कुछ एक सपने की तरह लग रहा है। उस आदमी पर कुछ शक भी हो रहा है। तेरे अब्बू ने तेरे किसी चचा का जिक्र मुझसे कभी नहीं किया। हाँ-एक बार इतना जरूर बताया था कि उनके एक छोटा भाई था जरूर, लेकिन वह तो बचपन में ही मर गया था।”
“क्या पता अम्मी! मेरे चचा यही हों। अब्बू ने उन्हें घर से निकालकर मरा हुआ सोच लिया होगा और फिर आप ये भी तो सोचिये कि भला कोई गैर के लिये आँसू बहाता है क्या! बिना किसी रिश्ते या जान-पहचान के किसी को पाँच सौ अशर्फियां देता है क्या? मुझे तो लगता है कि ये मेरे चचा जान. ही हैं।”
“हो सकता है बेटा! तू ठीक कह रहा है। लेकिन कल तू उन्हें हमारे घर जरूर लेकर आना।”
“ठीक है अम्मी।”
अलादीन इतना कहकर उन अशर्फियों को समेटकर थैली में भरने लगा।
अगले दिन!
अलादीन वक्त से बहुत पहले ही उस जगह पर पहुँच गया जहाँ कल उसकी उसके चचा से मुलाकात हुई थी और जिन्हें आज़ आना था। वैसे तो वह आज भी अपने साथियों के साथ कंचे खेल रहा था, लेकिन आज खेल में उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था। उसकी निगाहें बार-बार गली के मोड़। पर लगी हुई थीं। तेजी से समय गुज़रने के साथ-साथ ही अलादीन की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी। लेकिन उसके चचा जान तो क्या, अभी तक तो उनकी परछाई भी उसे नज़र नहीं आयी थी।
अचानक!
उसने महसूस किया, जैसे किसी ने उसके कन्धे पर हाथ रख दिया हो, बेध्यानी में किसी साथी का हाथ जान वह उसे वैसे ही नज़रें मिला झटकना चाहती था कि एकाएक वह चौंक पड़ा। उसके चचा ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे चौंका दिया, उस समय वह गली के मोड़ पर नज़रें गड़ाये अपने कंचे गिन रहा था।
“बेटा अलादीन!”
"अरे चचा! आप कब और किधर से आये? मैंने तो आपको आते हुए बिल्कुल भी नहीं देखा।”
“अरे बेटा! मैं इधर से ही तो आ रहा हूँ।” चचा ने गली के मोड़ की ओर इशारा करते हुए बताया। तुम खेल में मग्न थे, इसलिये शायद मुझे नहीं देख पाये।”
“लेकिन चचा जान...!”
“अब लेकिन-वेक्रिन छोड़ो और यह लो...मिठाई खाओ।" उन्होंने मिठाई का एक छोटा डिब्बा अलादीन की ओर बढ़ाकर उससे पूछा-“तुमने अपनी अम्मी यानि हमारी भाभी जान की हमारा सलाम बोला था या नहीं?”
“जी हाँ।” अलादीन मिठाई खाते हुए बोला-“अम्मी ने आपको याद किया है और घर पर बुलाया है। अब आप मेरे साथ चलिये। मैं आप ही को लेने आया हूँ। वे आपका घर पर इन्तज़ार कर रही होंगी।”
"मैं तुम्हारे घर जरूर आऊँगा बेटा! लेकिन अभी नहीं। अभी तुम घर ज़ाओ और अपनी अम्मी से अपने चचा जान के खाने की अच्छी-अच्छी चीजें बनवाओ। मैं शाम को ठीक समय पर वहाँ पहुँच जाऊँगा। मुझे अभी अपने कुछ जरूरी काम निपटाने हैं।”
“ठीक है चचा जान! जैसी आपकी मर्जी। आप भी तो मिठाई खाइये न चचा जान।”
“मेरे बेटे! यह सब तुम्हारे लिये हैं तुम ही खाओ और अपने इन साथियों को खिलाओ।”
उस सौदागर ने अलादीन को सौ अशर्फियां और दीं और अपने रास्ते चल दिया। अंशर्फियां लेकर अलादीन ने खेलना बंद कर दिया और सीधा अपने घर की ओर चला गया।

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