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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन


“चचा, जान...!” उसे इस प्रकार रोते देख अलादीन की आँखों से भी आँसू निकल आये।
“आ मेरे बच्चे...! मेरे सीने से लग जा। अब तो तू ही मेरे भाई की आखिरी निशानी है। तू ही हमारे खानदान का आखिरी चिराग है।” इतना । कहकर उसने सचमुच. अलादीन को अपने सीने से लगा लिया।
कुछ देर बाद वह सौदागर जैसा दिखने वाला आदमी कुछ सामान्य हुआ और कहने लगां-“मेरे बच्चे! अब शाम होने वाली है, इसलिये मैं जाता हूँ। इस समय मैं बहुत दुःखी हूँ इसलिये घर जाकर भाभी जान को भी दुःखी नहीं करना चाहता। कल तुम मुझे इसी समय यहीं पर मिलना, तब मैं तुम्हारे साथ घर पर चलूंगा। इस थैली को ले जाकर तुम भाभी जान को दे देना और उनसे मेरा सलाम कहकर कहना कि मैं कल उनसे मिलने आऊँगा।”
“लेकिन चंचा जान...!”
अलादीन अशर्फियां लेने में हिचकिचाने लगा, तो सौदागर ने जबरदस्ती वह थैली उसके हाथ में रख दी और बोला-“लेकिन-वेकिन मत करो बेटे! मैं कोई गैर थोड़े ही हूँ। तुम्हारे अब्बू का छोटा भाई हूँ, तुम्हारा चाचा हूँ। अगर आज तुम्हारे अंब्बू नहीं हैं तो क्या हुआ, मैं तो हूँ। तुम्हारा जितना अधिकार तुम्हारे अब्बू पर था, उतना ही अब मुझ पर समझो। अच्छा अब तुम घर जाओ, भाभी जान तुम्हारी राह देखती होंगी। अच्छा खुदा हाफिज।”
इतना कहकर वह सौदागर तेज-तेज कदम बढ़ाता हुआ एक ओर चला गया। अलादीन ठगा-सा खड़ा उसे जाता देखता रहा। जब वह उसकी नजरों से ओझल हो गया तो वह भी अपने घर की ओर चल दिया।
घर पहुँचकर अंलादीन ने देखा-उसकी माँ बर्तन साफ कर रही थी। उसने अपनी माँ को उस आदमी के अपने चाचा जान होने के बारे में बताया, और साथ ही माँ से भी पूछताछ करने लगा।
तभी उसकी माँ बोली-“यह...यह तू किस चचा जान की बात कर रहा है?” बर्तन साफ करते हुए उसकी माँ चौंक उठी।
“मैं सच कह रहा हूँ अम्मी! जब उन्होंने अब्बू के मरने की खबर सुनी। तो वे खूब रोये। फिर उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया और कहने लगे कि अब तुम ही हमारे खानदान की आखिरी निशानी हो। फिर उन्होंने आपको भी सलाम कहलवाया है...।” अलादीन ने बताया।
“मगर वे हमारे घर क्यों नहीं आये? आखिर मैं भी तो देखती कि स्वयं को तेरा चाचा बताने वाला व्यक्ति कौन है?” उसकी माँ ने शंकित स्वर में कहा।
“अरे अम्मी, वे इसलिये यहाँ नहीं आये क्योंकि इस समय वे बहुत गमगीन थे। वे अपने साथ आपको भी दिल नहीं दुःखाना चाहते थे। फिर उन्होंने मुझे ये...।”
इतना कहकर अलादीन ने अपनी अचकन की जेब में से अशर्फियों की थैली निकाली और अपनी माँ की ओर बढ़ाता हुआ बोला-“पाँच सौ अशर्फियों की थैली मुझे देकर कहा कि अपनी माँ को देना।”
उसकी माँ की आँखें आश्चर्य से फटने लगीं। उसने लगभग झपटकर उसके हाथ से थैली ले ली और अपने सामने पलट दी।

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