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मनोरंजक कथाएँ >> अलादीन औऱ जादुई चिराग

अलादीन औऱ जादुई चिराग

ए.एच.डब्यू. सावन

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4779
आईएसबीएन :81-310-0200-4

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अलादीन की रोचक एवं मनोरंजक कहानी का वर्णन

अलादीन और जादुई चिराग


यह किस्सा एक गरीब दर्जी मुस्तफा के घर से शुरू होता है जो कि बगदाद के एक छोटे-से गाँव में रहता था। मुस्तफा वैसे तो सिलाई का अच्छा कारीगर था, लेकिन गाँव में दुकान होने के कारण वह इतना ही कमा पाता था कि किसी प्रकार अपने परिवार की गाड़ी खींच सके। शहर में दुकान लेने की उसकी हैसियत नहीं थी। उसके परिवार में उसे मिलाकर सिर्फ तीन ही लोग थे। एक वह खुद, एक उसकी पत्नी और एक बेटा अलादीन।
मुस्तफा अपने बेटे को अच्छी तालीम देकर बड़ा आदमी बनाना चाहता था, जिससे उसका बुढ़ापा आराम से गुजर सके। उसका बेटा कुछ ऐसा करे जिससे उसके खानदान का नाम रोशन हो, मगर किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था जिससे मुस्तफा एकदम अन्जान था।
इधर अलादीन का तो यह हाल था कि वह पढ़ने-लिखने के नाम से ही. बिदकता था। वह किताबों को हाथ तक नहीं लगाता था। उसे तो बस खाना-पीना और यार-दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करना ही भाता था। उसे अपनी तथा अपने खानदान की कोई चिन्ता नहीं थी, न ही वह अपने मां-बाप की परवाह करता था।
उसकी इस आदत से मुस्तफा बहुत दुःखी रहा करता था। उसे यही फिक्र खाये जाती थी कि-‘उसके बाद अलादीन का क्या होगा? कौन परिवार की जिम्मेदारी सम्भालेगा?” अलादीन को समझाते-समझाते तो वह थक चुका था। उसकी बात एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता था। जब मुस्तफा ने देखा कि अलादीन सुधरने वाला नहीं है, तो हारकर उसने उसे अपने साथ दुकान पर बैठा लिया। उसने सोचा-'अगर वह कपड़े सीना सीख लेगा तो हाथ में कारीगरी होने से कम-से-कम भूखा तो नहीं मरेगा। मगर यहाँ भी वह सफल न हो सका। अलादीन को सिलाई का काम सीखने में ज़रा भी दिल नहीं लगता था, वह मौका पाते ही दुकान से भाग जाता और दोस्तों के साथ मटरगश्ती करने लगता।
बेटे की इन आदतों ने मुस्तफा को अन्दर तक तोड़कर रख दिया। वह बात-बात में झुंझलाने लगा तथा गुस्सा करके अन्दर-ही-अन्दर कुढ़ने लगा। इससे वह बीमार पड़ गया और एक बार जो बिस्तर पर पड़ा तो फिर वह उठ नहीं पाया।
मुस्तफा की पत्नी उसकी बीमारी की वजह अच्छी तरह जानती थी। वह भी यहीं चाहती थी कि किसी तरह अलादीन सुधर जाये।' उसने भी उसे हर तरह से समझाने की कोशिश की, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।
इसी प्रकार अपने बेटे अलादीन के दुःख में जलते-जलते एक दिन मुस्तफा दर्जी अल्लाह को प्यारा हो गया।
बाप के मरने के बाद भी अलादीन पर कोई फर्क नहीं पड़ा और उसकी मटरगश्ती बराबर चालू रही। समय बड़ा बलवान होता है, समय के चलते अलादीन तेजी से जवान हो रहा था, लेकिन उसकी हरकतों में कोई कमी नहीं आयी थी। बड़े होने पर भी वह बचकानी हरकतों से बाज नहीं आता था।

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