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रवि कहानी

अमिताभ चौधरी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :85
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 474
आईएसबीएन :81-237-3061-6

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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक


उन्हीं दिनों पंजाब के जलियांवाला बाग में हुई मासूम लोगों की हत्याओं की खबरउन्हें मिली। सेना के सख्त कानून के कारण इस भयानक घटना की खबर तक छापने की अनुमति नहीं दी गई। इस खबर से रवीन्द्रनाथ बेहद दुःखी हुए। उन्होंने एकचिट्ठी में उस समय लिखा, ''इस दु:ख के ताप से मेरी छाती जल रही है।'' उन्होंने इसका विरोध करने की ठानी। उन्होंने चितरंजन दास से कहा, ''एकविरोध सभा बुलाइए, मैं उसका सभापतित्व करूंगा।'' मगर चितरंजन दास राजी नहीं हुए। उन्होंने गांधी जी को चिट्ठी लिखी, ''आइए हम दोनों मिलकर कानूनभंग करके पजाब में घुसें।'' गांधी जी भी इसके लिए तैयार नहीं हुए।

इस घटना का बोझ उनके दिल पर इस कदर बढ़ गया कि वे कई रात सो नहीं पाए। आखिरकार19 मई 1919 को उन्होंने बड़े लार्ड चेम्सफोर्ड को चिट्ठी लिखकर जता दिया कि वे अब ''सर'' नहीं बने रहना चाहते। उन्होंने ''सर'' की उपाधि लौटा दी।

उनकी लिखी वह चिट्ठी पढ़ने लायक है। कवि के मन की वेदना, उनका सारा गुस्सा उसचिट्ठी में नजर आता है। ऐसी ही एक चिट्ठी में उन्होंने लिखा था, ''मेरे दुःख का सीने पर इतना ज्यादा बोझ है जिसे ढोना अब कठिन हो गया है, इसलिएइस बोझ पर इस उपाधि का भी वजन ढोना अब मेरे लिए संभव नहीं है।''

रवीन्द्रनाथ सपरिवार शिलांग गए। वहां से गुवाहाटी होकर रेलगाड़ी से सिलहट पहुंचे। वहांउनका बहुत स्वागत हुआ। वहीं पर पहली बार मणिपुरी नाच देखकर वे बहुत प्रभावित हुए। अगरतला से शांतिनिकेतन लौटकर उन्होंने एक मणिपुरी नृत्य केगुरू को बुलाया। तभी से शांतिनिकेतन में मणिपुरी नाच सिखाना शुरू हुआ।

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