विविध >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधरी
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नेशनल बुक ट्रस्ट की सतत् शिक्षा पुस्तकमाला सीरीज़ के अन्तर्गत एक रोचक पुस्तक
सन् 1917 के अंत में उन दिनों केभारत सचिव सैमुअल मांटेग्यू स्वराज के सिलसिले में भारत आए। वे रवीन्द्रनाथ से, उनके जोड़ासांको वाले घर में आकर मिले। उन्हीं दिनों बंगालमें कांग्रेस की महासभा हुई। कवि ने पहले दिन ''इंडियाज प्रेयर'' (भारत की प्रार्थना) नाम से एक कविता उस महासभा में पढ़ी - ''व्हेयर द माइंड इजविदाउट फीयर'' (जहां मन में कोई भय न हो) आदि। यह कवि का ''नैवेद्य'' काव्य संग्रह की ''चित जेथा भय शून्य'' कविता का अंग्रेजी अनुवाद था। इससेपहले सन् 1886 में कलकत्ता में कांग्रेस की महासभा में उन्होंने अपना लिखा गीत- ''आमरा मिलेछि आज मायेर डाके'' (मां की पुकार पर हम सब एकत्र हुएहैं) खुद गाकर सुनाया था। सन् 1890 में उन्होंने बंकिमचंद्र की कविता ''वंदेमातरम्'' की धुन खुद बनाकर उसे गाया भी।
इसके बाद शांतिनिकेतन में अपने विद्यालय के काम में वे पूरी तौर से जुट गए। उस बारशांतिनिकेतन में काफी गुजराती छात्र आए थे। मराठी, राजस्थानी, मलयाली छात्र वहां पहले से ही पढ़ रहे थे। नए छात्रों और उनके घरवालों से बातेकरके रवीन्द्रनाथ के मन में एक नई योजना ने जन्म लिया। गुजरातियों से उन्हें चंदे में कई हजार रूपए मिल गए। सातवें पौष मेले के दूसरे दिनविश्वभारती की नींव रखी गई। उसी विद्यालय के पहले छात्र, अपने बेटे रथीन्द्रनाथ, को अपनी सहायता के लिए उन्होंने कलकत्ता से वहां बुला लिया।
मैसूर सरकार के बुलावे पर कवि बंगलूर और मैसूर गए। उन्होंने दोनों ही जगह भाषणदिया। वहां से कुछ दिन आराम करने के लिए वे उटकमंड गए। उसके बाद सालेम, पालिघाट, श्रीरंगपट्टनम, तंजौर, तिरूचिनापल्ली, कुभकोणम, मदुरई आदि जगहोंमें उन्हें भाषण देने के लिए जाना पड़ा। थियोसापिस्टों के केन्द्र मदनपल्ली भी गए। उसके बाद अडियार। ऐनी बेसेंट के स्कूल में भी आचार्य के रूप मेंउन्होंने भाषण दिया। भाषण का विषय था - ''भारतीय संस्कृति का केन्द्र।''
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