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आजाद हिन्द फौज की कहानी

एस. ए. अय्यर

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :97
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4594
आईएसबीएन :81-237-0256-4

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आजाद हिन्द फौज की रोचक कहानी....


2. बचपन और विद्यार्थी जीवन

उड़ीसा के प्रसिद्ध नगर कटक में 23 जनवरी 1897 को पिता जानकी नाथ और माता प्रभावती बोस के घर सुभाष का जन्म हुआ। वे उनकी नवीं संतान एवं छठे पुत्र थे। सुभाष के परिवार में कुछ परंपरागत मान्यताएं थी। सत्ताईसवीं पीढ़ी में उत्पन्न उनके पूर्वज दशरथ बोस ने दक्षिणी बंगाल (दक्षिण रहड़ी) में बोस उप-जाति की नींव डाली। उनके परिवार का एक सदस्य कलकत्ता के निकट महीनगर में निवास करने लगा। इसलिए वहां रहने वाले परिवार के सदस्य महीनगर के बोस कहलाये। उनके एक पूर्वज महिपति तत्कालीन बंगाल के राजा के वित्त और युद्ध मंत्री थे। एक और पूर्वज गोपी नाथ बाद के शासक के वित्त मंत्री एवं नौ सेना के कंमाडर थे। हर नाथ के चार पुत्र थे जिनमें सबसे छोटे पुत्र जानकी नाथ सुभाष चंद्र के पिता थे।

उनकी माता प्रभावती उत्तरी कलकत्ता में हथरोला के दत्त परिवार की कन्या थीं। उनका परिवार कन्याओं के लिए सुयोग्य वर चयन करने के लिए प्रसिद्ध था। प्रभावती के पिता ने जानकी नाथ की कठिन परीक्षा ली और इस परीक्षा में उनके सफल होने पर ही अपनी स्वीकृति दी।

जानकी नाथ की शिक्षा कलकत्ता और कटक में हुई और 1885 में उन्होंने कटक में वकालत आरंभ की। 1912 में जानकी नाथ बंगाल विधान सभा के सदस्य बने और उन्हें रायबहादर की उपाधि मिली। जिलाधीश से मतभेद हो जाने के कारण जानकी नाथ ने सरकारी वकील और जन अभियोक्ता के पदों से त्याग-पत्र दे दिया। तत्पश्चात उन्होंने सरकारी दमन नीति के विरोध में रायबहादुर की उपाधि भी त्याग दी। जानकी नाथ कटक की शिक्षा संस्थाओं एवं सामाजिक संस्थानों के कार्यों में सक्रिय रुचि लेते थे। वे मुक्तहस्त से दान देते थे। दान का अधिकांश भाग निर्धन और अभावग्रस्त विद्यार्थियों को जाता था। भारत की प्रमुख राजनैतिक संस्था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशनों में वे अवश्य भाग लेते थे। परंतु वे संस्था के सदस्यों के विचार-विमर्श में सक्रिय भाग नहीं लेते थे। जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन आरंभ किया तो जानकी नाथ बोस ने राष्ट्रीय शिक्षा और खादी के कार्यक्रमों में रचनात्मक सहयोग दिया। उनकी मनोवृत्ति धार्मिक थी। निर्धनों के

प्रति उनके हृदय में दयाभाव रहता था। स्वर्गवासी होने से पूर्व उन्होंने अपने आश्रितों और वृद्ध अनुचरों के लिए पर्याप्त साधनों की व्यवस्था कर दी थी।

विकासोन्मुख बालक सुभाष के लिए कटक का वातावरण बहुत अनुकूल था। उनका परिवार मध्यवर्गीय संपन्न परिवार था, परन्तु उनके माता-पिता बच्चों के लालन-पालन में सादा जीवन के सिद्धांत का पालन करते थे। परिवार में आठ भाई-बहन बड़े और पांच छोटे होने के कारण सचेतन सुभाष पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा। वे स्वयं को नगण्य और कभी-कभी अपने को एकाकी अनुभव करते थे। कभी-कभी उनको इतने बच्चों के बीच अस्तित्वहीनता की अनुभूति होती थी। ज्येष्ठ भाई-बहनों के समकक्ष पहुंचना उनके लिए एक चुनौती थी। वे अपने माता-पिता के अत्यधिक सान्निध्य के इच्छुक रहते थे। परंत उनके पिता स्वभाव से एकांतवासी थे और माता गृहस्थी के क्रियाकलापों में व्यस्त रहती थी।

एक बड़े परिवार में पालन-पोषण होने के कारण उनका मन तो निश्चय ही विशाल हो गया था परंतु उनके स्वभान में एकाकीपन आ गया और कुछ शर्मीले हो गये। उनकी स्वभावगत यह विशेषता जीवन-पर्यंत रही।

पांच वर्ष की आयु में सुभाष ने कटक में एक अंग्रेजी स्कूल में प्रवेश लिया। इस संस्था का संचालन यूरोपीय प्रणाली के अनुसार होता था। शनै:-शनैः सुभाष को दो विभिन्न संसारों का परिचय हुआ—एक तो उनके भारतीय घर और समाज में प्रतिबिंबित था दूसरे का प्रतिनिधित्व उनका स्कूल करता था, जिसका दृष्टिकोण इंग्लैंड के जीवन के समीप था। स्कूल में उनको जातीय भेदभाव का भी अनुभव हुआ क्योंकि वहां एंग्लो-इंडियन बच्चों को जो सुविधा उपलब्ध थी वह भारतीय विद्यार्थियों को प्राप्त नहीं थी। कुछ दिन पश्चात उन्हें एक भारतीय विद्यालय में प्रविष्ट किया गया जहां पर संस्था के प्रधान बेनीमाधव का प्रभाव उस अल्पायु में उन पर अत्यधिक पड़ा। यह विद्यालय भारतीय जीवन प्रणाली के अनुसार संचालित होता था। अब सुभाष अध्ययन में व्यस्त रहने लगे और खेल-कूद और अन्य शारीरिक व्यायाम त्यागने लगे। फलत: उनमें समय से पहले प्रौढ़ता आने लगी।

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