मनोरंजक कथाएँ >> नन्हा सेनानी नन्हा सेनानीरामगोपाल वर्मा
|
10 पाठकों को प्रिय 344 पाठक हैं |
इसमें 11 बाल कहानियों का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नन्हा सेनानी
भूपेन्द्र एक आठ वर्ष का बालक था। वह बनारस में रहता था। उसके तीन बड़े
भाई थे। उनके नाम थे शतीन्द्र, रवीन्द्र, जितेन्द्र। वह अपने भाइयों के
साथ रहता था। उसके भाई क्या करते थे, वह नहीं जानता था। वे कभी-कभी तो रात
में घर भी नहीं आते थे। उसकी माँ ने भी उसे कुछ नहीं बताया था। वह तो खेल
में लगा रहता था। जब उसे उसके बड़े भाई नहीं दिखाई देते तो वह माँ से
पूछता, ‘माँ, माँ बड़े भैया कहाँ गए हैं ?’
माँ उसे समझाती, अभी आ जाएँगे। तू दूध पी ले और सो जा। वह सोने लगता तो उसके दूसरे भैया की याद आ जाती। वह फिर पूछता, ‘माँ, माँ जीतेन्द्र भैया भी नहीं आए ?’ कई दिन से मैं उनके साथ भी नहीं खेला। माँ, जीतेन्द्र भैया मुझे बहुत प्यार करते हैं। खेलते-खेलते खुद हार जाते हैं और मुझे जिता देते हैं। माँ, अच्छे हैं न जीतेन्द्र भैया !, माँ उसे बहलाती। उसे लोरियाँ सुनाती। अपने आँसू पोंछती और रात को उसे जल्दी सुला देती। भूपेन्द्र दिन भर खेलता रहता। रात होते ही उसे अपने भाइयों की याद आती। माँ उसे बताना नहीं चाहती थी।
अभी वह छोटा है। इस बार भूपेन्द्र ने ज़िद पकड़ ली। वह बोला, ‘माँ आज तुम्हें बताना ही होगा कि तीनों भैया कहाँ गए हैं। तुम नहीं बताओगी, तो मैं दूध नहीं पीऊँगा । कल से रोटी भी नहीं खाऊँगा।’ माँ ने उसके मुँह पर अपना हाथ रखा। उसे रोना आ गया। अपनी रुलाई को दबाकर माँ ने कहा, ‘अच्छा, बताती हूँ। तू दूध तो पी। तेरे तीनों भैया भारत माता की सेवा करने गए हैं।’ भूपेन्द्र तुरन्त बोल पड़ा, ‘पर हमारी माता तो तुम हो।’ माँ ने समझाया, ‘मुझसे भी बड़ी माँ, भारत माता है।’
माँ उसे समझाती, अभी आ जाएँगे। तू दूध पी ले और सो जा। वह सोने लगता तो उसके दूसरे भैया की याद आ जाती। वह फिर पूछता, ‘माँ, माँ जीतेन्द्र भैया भी नहीं आए ?’ कई दिन से मैं उनके साथ भी नहीं खेला। माँ, जीतेन्द्र भैया मुझे बहुत प्यार करते हैं। खेलते-खेलते खुद हार जाते हैं और मुझे जिता देते हैं। माँ, अच्छे हैं न जीतेन्द्र भैया !, माँ उसे बहलाती। उसे लोरियाँ सुनाती। अपने आँसू पोंछती और रात को उसे जल्दी सुला देती। भूपेन्द्र दिन भर खेलता रहता। रात होते ही उसे अपने भाइयों की याद आती। माँ उसे बताना नहीं चाहती थी।
अभी वह छोटा है। इस बार भूपेन्द्र ने ज़िद पकड़ ली। वह बोला, ‘माँ आज तुम्हें बताना ही होगा कि तीनों भैया कहाँ गए हैं। तुम नहीं बताओगी, तो मैं दूध नहीं पीऊँगा । कल से रोटी भी नहीं खाऊँगा।’ माँ ने उसके मुँह पर अपना हाथ रखा। उसे रोना आ गया। अपनी रुलाई को दबाकर माँ ने कहा, ‘अच्छा, बताती हूँ। तू दूध तो पी। तेरे तीनों भैया भारत माता की सेवा करने गए हैं।’ भूपेन्द्र तुरन्त बोल पड़ा, ‘पर हमारी माता तो तुम हो।’ माँ ने समझाया, ‘मुझसे भी बड़ी माँ, भारत माता है।’
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book