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अभिज्ञान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4429
आईएसबीएन :9788170282358

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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...


और सहसा उनका सिर कृष्ण के सम्मुख कृतज्ञता से झुक गया। यदि सचमुच ही चलते समय कृष्ण ने स्वर्ण मद्राओं की एक थैली उन्हें थमा दी होती तो सुदामा शायद बहुत प्रसन्न हुए होते, पर यह ख्याति तब सच हो गयी होती और उनका याचक रूप...।

जैसे उस यात्री ने सोचा और समझा है, वैसे ही तो अन्य लोग भी समझते होंगे ...और सुदामा स्वयं को भूल, कृष्ण के विषय में सोचले लगे ...कृष्ण के पास ऐसे ही कितने लोग जाते होंगे। मांगने के कैसे-कैसे हथकंडे अपनाते होंगे, कितनी-कितनी तरह से उसे घेरते होंगें, किस-किस ढंग से चाटुकारिता नहीं करते होंगे ...कितना ठीक सोचना था कृष्ण का, जब उसने कहा था कि हमारे विद्वान् उत्पादन के स्थान पर याचना में विश्वास करते हैं...।

सुदामा की विचित्र दशा हो रही थी। जितनी देर तक वे सिद्धान्तों की बात सोचते, उन्हें अपने भीतर एक सम्पन्नता की-सी अनुभूति होती रहती। वे कृष्ण से कितनी सम्पदा लेकर लौटे हैं। वे एक प्रकार की आत्मतृप्ति में सांस लेते हैं। दूसरी ओर जैसे बीच-बीच में वे उस धरातल से नीचे आ गिरते हैं। तब उनके सामने, अपने जीवन की व्यावहारिक कठिनाइयां प्रकट होने लगती हैं और उन्हें लगता है कि कृष्ण ने उन्हें बातों में ही बहला दिया है...घर लौटकर अब वे किस मुख से कहेंगे कि कृष्ण उनके मित्र हैं...।

झुटपुटा घना हो रहा था। दोपहर के समय एक कुएं के निकट रुककर उन्होंने भोजन कर थोड़ा आराम किया था और तब से लगातार चलते ही जा रहे थे। सुदामा को लगा, अब कहीं टिक जाना चाहिए। द्वारका जाते समय मार्ग में ठहरने के अनुभव उन्हें याद थे। वे अब भी किसी पेड़ के नीचे सो सकते थे; पर दो रातें द्वारका में कृष्ण के महल में सोने के पश्चात. अब वक्ष के नीचे लेटना. सदामा के लिए कठिन हो रहा था। अब तो उन्हें कोई ढंग का स्थान खोजना ही होगा-चाहे थोड़ा विरोध ही सहना पड़े। कर्म...उन्हें कृष्ण याद आ गया।

आगे चलकर मार्ग के साथ लगता हुआ जो पहला गाँव पड़ा, सुदामा उसी की ओर मुड़ गये। लगता था, गाँव अभी सोया नहीं है। वैसे भी चहल-पहल कुछ अधिक लग रही थी।

गाँव का छोटा-सा हाट पार कर, सुदामा कुछ आगे बढ़े तो सामने से आते हुए दो व्यक्ति उन्हें देखकर रुक गये, "किसके यहां जाना है भैया?"

"यात्री हूं।" सुदामा बोले, "रात को टिकने का ठिकाना चाहिए।"

"गाँव में रुकना हो तो चौपाल में टिक जाओ।" उनमें से एक बोला, "पर आज बहुत-से व्यापारी टिके हुए हैं चौपाल में। असुविधा लगे तो गाँव के बाहर मन्दिर में टिक जाओ।"

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    अनुक्रम

  1. अभिज्ञान

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