पौराणिक >> अभिज्ञान अभिज्ञाननरेन्द्र कोहली
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कृष्ण-सुदामा की मनोहारी कथा...
"क्यों? क्या हुआ?" कृष्ण ने पूछा।
"हुआ क्या, बातें! बातें!! बातें!!!" रुक्मिणी बोली, "मित्र को भोजन नहीं कराना, कहीं घूमने नहीं ले जाना, किसी से मिलाना भी नहीं। यहां तक कि हमें भी थोड़ीसी बातचीत का अवसर नहीं दिया। आपका रथ द्वारका से चलता है तो इन्द्रप्रस्थ पहुंचकर ही रुकता है; और बात आरम्भ होती है तो भक्ति योग, ज्ञानयोग से होती हुई, कर्मयोग तक पहुंचकर ही रहती है।"
"सुदामा!" कृष्ण हंस पड़े, "मैं तुमसे बातें करता रहा तो तुम्हारी भाभी को काफी देर तक चुप रहना पड़ा है।"
रुक्मिणी भी हंसी, "भाभी की वाचालता का बखान न करें। आपको पता भी है, सारी द्वारका में बवण्डर-सी यह सूचना घूम रही है कि श्रीकृष्ण के कोई मित्र आये हैं और श्रीकृष्ण उनके साथ वार्तालाप में ऐसे मग्न हैं कि सारा राज-चक्र रुक गया है। ऐसे तो आप अपनी नव-विवाहिता पत्नी को लाकर भी मग्न नहीं हुए थे।"
"भाभी! सारा दोष कृष्ण का ही नहीं है।" सुदामा के लिए बीचबचाव आवश्यक हो गया, "मैं भी कुछ ऐसा ही बातूनी हूं। गुरुकुल में भी मैं और कृष्ण ऐसे ही घण्टों बातें किया करते थे।
"वह तो ठीक है देवरजी!" रुक्मिणी का तेज तनिक भी कम नहीं हुआ था, "अब श्रीकृष्ण अकेले नहीं हैं। गुरुकुल के दिनों जैसे मुक्त भी नहीं हैं।" उन्होंने रुककर कृष्ण को देखा, "अब तनिक उठिये। ऋतु बड़ी सुहावनी है। बाहर खुली हवा में थोड़ी देर उद्यान में बैठिये। कुछ और लोग भी आपकी ज्ञान-चर्चा में सम्मिलित होना चाहते हैं।"
"चलो उठो मित्र!" कृष्ण ने दयनीय-सा चेहरा बनाया, "महारानी के सामने कभी किसी की चली है कि हमारी चलेगी। हम तो सदा उनके आदेशों का ही पालन करते आये हैं। एक ग्वाला, राजकुमारी के आदेशों का पालन करने के सिवा और कर ही क्या सकता है।"
"राजशिरोमणि! इस ग्वाले ने कब-कब मेरे आदेशों का पालन किया?" रुक्मिणी ने उन्हें वक्र दृष्टि से देखा।
"पहली बार तो तब किया था, जब महादेवी ने ब्राह्मण भेजकर आदेश दिया था कि विदर्भ की राजकुमारी का हरण कर लाऊं।"
"हां! हां!! आप तो पहले ही दिन से मेरे आज्ञाकारी हैं।" रुक्मिणी हंस पड़ीं, "और उसी आदेश का पालन करने के लिए नव-विवाहिता को सोई छोड़कर स्वयं सागर के तूफान में से यादवों के जलपोतों को बचाने चल दिये थे।"
"अब समझे सुदामा! नव-विवाहिता को लाकर मान न होने का प्रसंग?" कृष्ण मुस्कराये, "तब का उपालम्भ आज दिया जा रहा है।"
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