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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


हंसवाहिनी महासरस्वती का उपासक हंस जैसा नीर-क्षीर विवेकी होना चाहिए। दूध में से पानी को निकाल देने की वृत्ति अपने अंदर धारण करने से सत्-असत् का विवेक होता है। संसार में सब माल बेतरतीब भरा पड़ा है, इस कटपीस की गठरी में अच्छे टुकडे भी हैं और खराब भी, यह लेने वाले की समझ के ऊपर है कि वह काम लायक बढ़िया चीज पसंद करता है या निकम्मी बेमतलब की उठा लाता है। सभी मजहबों में अच्छे विचार मौजूद हैं, समयानुसार हर प्रकार के तत्त्वों का प्रवेश हुआ है, आज की स्थिति के योग्य जिस धर्म में जो बात प्राप्त होती है, उसे ग्रहण कर लीजिये और जो बातें समय से पीछे की होने के कारण निरुपयोगी हो गई हैं, उन्हें निकाल दीजिए। कुछ घंटे पहले का दूध अब जमकर दही हो गया है। हलवाई इस दही में से जो पानी छाँटता है, उसे निकालकर फेंकता जाता है और जमा हुआ भाग ग्राहकों को बेचता जाता है। कुछ देर पहले जब यही दही दूध की शक्ल में था तब उसमें से

पानी छाँटकर फेंकने की जरूरत न थी, पर अब समय बदल जाने के कारण स्थिति दूसरी हो गई। पानी मिला दूध तो उस समय बिक सकता था, पर दही के साथ छंटा हुआ पानी नहीं बेचा जा सकता। प्राचीन धर्मग्रंथ, उपदेश, विचार, रीति-रिवाज, अपने समय के लिए बहुत उपयोगी, लाभदायक और आवश्यक थे, पर आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं तो उन्हीं बातों को स्वीकार कीजिए, जो आज की स्थिति में उपयोगी हैं। इस प्रकार यदि आप अपनी वृत्ति को हंस के समान नीर-क्षीर विवेक करने वाली रखेंगे, अंधविश्वास से अपने को सावधानी के साथ बचायेंगे तो बुद्धिमान् बनते जायेंगे, भगवती सरस्वती के कृपापात्र वाहन-हंस का पद प्राप्त करते जायेंगे।

बुद्धि वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि किसी एक ही बात पर दुराग्रह न किया जाए, अपनी ही बात को सबसे ऊँची रखने का हठ न किया जाए, वरन् खुले हृदय से जिज्ञासु की तरह-निष्पक्ष, सत्य शोधक की तरह बुद्धि संगत बात को स्वीकार करने एवं भूल को सुधारने के लिए तैयार रहेंगे तो अपने ज्ञान में दिन-दिन वृद्धि करते जायेंगे। 'हमारी बात ठीक और सबकी झूठी, यह विचार पद्धति जिन्होंने अपना रखी है, वे अपने ज्ञान और विवेक में कभी भी उन्नति न कर सकेंगे।

जो लोग अपना विवेक और अनुभव बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें चुनाव करने की और शिक्षा ग्रहण करने की पद्धति को अपनाना चाहिए। किसी वस्तु की उपयोगिता-अनुपयोगिता जानने का तरीका यह है कि उसके समतुल्य अन्य वस्तुएँ विचारार्थ सामने रखिये और उनमें से हर एक के गुण-अवगुणों पर विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए; तब उनमें से जो वस्तु अधिक उपयोगी सिद्ध हो उसे चुन लीजिए। बिना विचारे भावावेश में किसी बात के अंध अनुयायी हो जाना उचित नहीं, इससे मस्तिष्क की तेजस्विता जाग्रत नहीं होती और न सर्वोत्तम वस्तु के प्राप्त होने की ही संभावना रहती है। जो काम आपको करना है केवल उसके लाभों को ही मत गिनिये, ऐसा करेंगे तो धोखा खायेंगे। लाभ के साथ हानियों को भी सोचना-समझना है, कठिनाइयों पर भी दृष्टिपात करना है। सब पहलुओं पर विचार करने के उपरांत जो निर्णय करते हैं, जो चुनाव करते हैं वह मजबूत होगा और ऐसा होगा जिसके लिये शायद ही पश्चात्ताप करना पड़े।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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