आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
हिंदू धर्म वास्तव में कवियों का, चित्रकारों का, कलाकारों का धर्म है। इसमें हर बात को अलंकारिक चित्र रूप में वर्णन किया गया है। देवी-देवताओं के कथा-उपाख्यानों के बड़े-बड़े रोचक वर्णन जो पुराणों में भरे पड़े हैं, मोटी दृष्टि वालों को गपोड़े दिखाई पड़ते हैं। परंतु वास्तव में ऐसी बात नहीं है, हमारी प्राचीन शैली यह रही है कि किसी तथ्य को एक चित्र रूप में चित्रित करके अलंकारिक भाषा में उसका वर्णन किया जाए और उसमें एक महत्त्वपूर्ण रहस्य छिपा दिया जाय। उस उपाख्यान में से, शब्द चित्र में से, उस रहस्य को ढूँढ़ने का प्रयत्न श्रोता लोग करें और बुद्धि पर जोर देकर यह पता लगायें कि इस कलापूर्ण रचना में क्या महत्त्व सन्निहित है, इस पद्धति से शिक्षा देने वाले कलाकार रचयिता को भी मजा आता था और अपनी बुद्धि खर्च करके तथ्य को ढूँढ निकालने वाले श्रोता को भी अपनी खोज-सफलता पर हर्ष होता था। हर्षबुद्धि के साथ-साथ इस पद्धति में दी हुई शिक्षा अंतःस्थल में गहरी उतर जाती थी। उसे भुला देना इतना आसान न होता था, जितना कि आजकल की बाजारू शब्दावली को लोग इस कान से सुनकर उस कान से निकाल देते हैं। महाशक्ति के उपरोक्त तीन स्वरूपों को देवियों के सुंदर चित्र की तरह प्रकट करना ऐसा ही कलामय प्रयास है।
आज वस्तुस्थिति को समझाने की योग्यता का स्थान अंधविश्वास ने ग्रहण कर लिया है। अल्प बुद्धि के लोग समझते हैं कि सरस्वती, लक्ष्मी, काली कोई दिव्य स्त्रियाँ हैं, जिनके हाथ-पाँव तो हैं, पर अदृश्य रहती हैं, भक्तों को दर्शन देती है, माला जपने, अनुष्ठान करने, गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, चढ़ाने से प्रसन्न हो जाती हैं और भक्त के घर में चुटकी बजाने भर के अंदर एक क्षण में मनमानी संपदाएँ रख जाती हैं। इसी अंधविश्वास के आधार पर जो लोग प्रतिमा की पूजा तक ही अपना कर्तव्य समाप्त हुआ समझते हैं और जंत्र-मंत्र की शक्ति से देवी के प्रसन्न होने पर अनायास सब संपदाएँ घर में भर जाने की आशा करते हैं, उनके शेखचिल्ली के स्वान पूरे नहीं हो सकते। वास्तविकता को जानकर उचित मार्ग से प्रयत्न करने पर ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। उपरोक्त महाशक्तियों का प्रचंड वरदान आप प्राप्त कर सकते हैं, बशर्ते कि अंधविश्वास की अपेक्षा विवेक द्वारा उन्हें प्राप्त करने और प्रसन्न करने का प्रयत्न करें।
भगवती सरस्वती एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक लिए हुए चित्रित की गई है। पुस्तक का तात्पर्य स्पष्ट है, अच्छे साहित्य का अध्ययन किये बिना विचार शृंखला का परिमार्जित होना कठिन है। संसार के उच्च कोटि के विचारक और तत्त्वदर्शी अपने गंभीर ज्ञान को पुस्तक में जोड़े गये हैं या छोड़ गये हैं। उनके विचारों का अध्ययन करना एक प्रकार से उनकी समीपता प्राप्त करना, सत्संग का लाभ उठाना है। ज्ञान कोष को भरने के लिए अन्य लोगों के अनुभव और अन्वेषण का निरीक्षण आवश्यक है, यह कार्य पुस्तकों की सहायता से हो सकता है। ज्ञानी बनने के लिए अध्ययन प्रेमी होना अनिवार्य है। दूसरे हाथ में वीणा का होना प्रकट करता है कि आपके भावना तंतु झंकृत होते रहने चाहिए। विद्या शुष्क पांडित्य के लिए नहीं है, उसका सदुपयोग यह है कि वह अपने सात्त्विक प्रभावों से आपके अंतःकरण के तारों को झंकार दें। अध्ययन, मनन, निदिध्यासन द्वारा आप जिस निष्कर्ष पर पहुँचे, उस पर विश्वास करें, श्रद्धा करें और तदनुसार जीवन को ढालने का प्रयत्न करें। विश्वास और आचरणों में एकता रखें ज्ञान का वास्तविक लाभ उठायें। हंसवाहिनी शारदा की वीणा-पुस्तकप्रियता यह प्रकट करती है कि विद्या चाहने वाले, विद्वान् बनने की इच्छा करने वाले लोगों को चाहिए कि पुस्तकों का अध्ययन करना अपना दैनिक कार्यक्रम बनाएँ, नित्य पढ़ने की आदत डालें, जो ज्ञान प्राप्त करें, उससे अपनी हृदय वीणा को झंकृत करते हुए ज्ञान का श्रद्धा और आचरण के साथ संबंध जोड़ें। यही सरस्वती पूजा का सरल-सा किंतु अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण विधान है, जिसे कलाकार ने चित्र रूप में हमारे सामने उपस्थित किया है।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न