आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
हर कोई सुखी रहना चाहता है। प्रचुर मात्रा में वैभव और ऐश्वर्य प्राप्त करना चाहता है। पर यह भूल जाता है कि इन्हें प्राप्त करने का स्वस्थ आधार पुण्य ही है। अतीत के शुभ कर्म ही कालांतर में ऐश्वर्य और वैभव बनकर सामने आते हैं। किसी समय जिनने शुभ कर्मों पर, पुण्य-परमार्थों पर अधिक श्रम किया था, वे आज उसका प्रतिफल सुख-सामग्री के रूप में उपलब्ध कर रहे हैं। कई व्यक्ति अनीति से भी धन कमाते या बड़े बनते देखे जाते हैं, पर वह दृष्टि-भ्रम ही है।
अनीति का परिणाम तो राजदंड, ईश्वरीय दंड, अपयश और दुःख ही हो सकता है। इसके विपरीत जिन्हें इससे लाभ मिल रहा है उनके बारे में यह विचित्र संयोग ही बन पड़ा है कि एक ओर वे पाप कर्म करके अपने भविष्य को बिगाड़ने में लगे हुए हैं और दूसरी ओर पूर्व संचित शुभ कर्मों का उदय होने से सुख-सफलता भी मिल रही है। एक ओर पाप कर्मों को करना, दूसरी ओर पूर्वकृत शुभ कर्मों के सत्परिणामों का उदय होना यह एक ऐसा विचित्र संयोग है कि मनुष्य भ्रम में पड़ जाता है और समझने लगता है कि पाप कर्मों में से ही यह लाभ कमा लिया गया। यदि वस्तुतः ऐसा ही होता तो सभी दुष्ट कर्म करने वाले फलते-फूलते और सुख-सौभाग्य प्राप्त करते। पापियों में से कुछ थोड़े ही ऐसे होते हैं, जो लाभदायक स्थिति में रहते हैं, अधिकांश तो दुःख-दारिद्र्य में ही पड़े रहते हैं।
यह एक बहुत बड़ा और नितांत भ्रम ही है कि पाप कर्मों द्वारा सुख-साधन जुटाये जा सकते हैं। संयोगवश यदि पूर्वकृत सुकृतो का फल पाप कर्म करने के साथ ही मिलने भी लगे तो भी उन दुष्कृत्यों के कारण मन में इतनी अधिक जलन होती है कि उस लाभ से होने वाली प्रसन्नता उसके सामने बहुत ही तुच्छ सिद्ध होती है। ऐसे लोग कुछ कमाई कर लेने पर भी पश्चात्ताप और संताप की आग में ही जलते रहते हैं।
सुख-संपत्ति का, श्री-समृद्धि का, वैभव-ऐश्वर्य का, एकमात्र आधार पुण्य है। जिन्हें सुख-साधनों की इच्छा हो उन्हें सत्कर्म करने चाहिए। यह सत्कर्म करने की प्रवृत्ति मात्र अध्यात्म विचारधारा से ही उत्पन्न होती है और किसी प्रकार नहीं। इसलिए यह सुनिश्चित तथ्य मान ही लेना होगा कि यदि किसी को वस्तुतः सुखी रहने की आकांक्षा हो, यदि कोई इसका ठोस और वास्तविक आधार प्राप्त करना चाहता हो तो उसे सन्मार्ग ही अपनाना होगा। सद्भावों को ही धारण करना होगा, सत्कर्मों को ही करना होगा और यह तभी संभव है, जब मनःक्षेत्र में अध्यात्म विचारधारा की सुदृढ़ स्थापना हो। विचारों से ही क्रिया उत्पन्न होती है। प्रेरणा से ही प्रवाह बनता है। पुण्यपरमार्थ की दिशा में विचार और प्रेरणा देने का कार्य आध्यात्मिकता पर ही निर्भर है। यही सुख की एकमात्र कुंजी है, जिसने इसे जाना और माना उसका सुख सुरक्षित है, उसके लिए दुःख-दैन्य का कोई कारण शेष नहीं रह जाता।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न