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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


आध्यात्मिक जीवन का सबसे बड़ा लाभ आत्मोद्धार माना गया है। अध्यात्मवादी का किसी भी दिशा में किया हुआ पुरुषार्थ परमार्थ का ही दूसरा रूप होता है। वह प्रत्येक कार्य को परमात्मा का कार्य और परिणाम को उसका प्रसाद मानता है। पुरुषार्थ द्वारा परमार्थ-लग्न व्यक्ति के ईर्ष्या, द्वेष, माया, मोह, लोभ, स्वार्थ, तृष्णा, वासना आदि के संस्कार नष्ट हो जाते हैं और उनके स्थान पर त्याग, तपस्या, संतोष, परोपकार आदि के शुभ संस्कार विकसित होने लगते हैं। अध्यात्म मार्ग के पुण्य पथिक के हृदय से तुच्छता, दीनता, हीनता, दैन्य तथा दासता के अवगुण वैसे ही निकलते जाते हैं-जैसे शरद ऋतु में जलाशयों का जल मलातीत हो जाता है। स्वाधीनता, निर्भयताभाव, संपन्नता, पवित्रता आदि प्रवृत्तियाँ आध्यात्मिक जीवन की सहज उपलब्धियाँ हैं। इन्हें पाकर मनुष्य को कुछ भी तो पाना शेष नहीं रह जाता। इस प्रकार की स्थायी प्रवृत्तियों को पाने से बढ़कर मनुष्य जीवन में कोई दूसरा लाभ हो ही नहीं सकता।

संसार का कोई संकट, कोई भी विपत्ति आध्यात्मिक व्यक्ति को विचलित नहीं कर सकती, उसके आत्मिक सुख को हिला नहीं सकती। जहाँ बड़े से बड़ा भौतिक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति तनिक सा संकट आ जाने पर बालकों की तरह रोने, चिल्लाने और भयभीत होने लगता है, वहाँ आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाला मनुष्य बड़ी से बड़ी आपत्ति में भी प्रसन्न एवं स्थिर रहा करता है। उसका दृष्टिकोण आध्यात्मिकता के प्रसाद से इतना व्यापक हो जाता है कि वह संपत्ति तथा विपत्ति दोनों को समान रूप से परमात्मा का प्रसाद मानता है और आत्मा को उसका अभोक्ता, जबकि भौतिकवादी अहंकार से दूषित दृष्टिकोण के कारण अपने को उनका भोक्ता मानता है। आध्यात्मिक व्यक्ति आत्म-जीवी और भौतिकवादी शरीर-जीवी होता है। इसीलिए उनकी अनुभूतियों में इस प्रकार का अंतर रहा करता है।

सुख-संपत्ति की प्राप्ति से लेकर संकट सहन करने की क्षमता तक संसार की जो भी दैवी उपलब्धियाँ हैं, वे सब आध्यात्मिक जीवनयापन से ही संभव हो सकती हैं। मनुष्य जीवन का यह सर्वोपरि लाभ है। उसकी उपेक्षा कर देना अथवा प्राप्त न करने से बढ़कर मानव-जीवन की कोई हानि नहीं हैं।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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