आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
अध्यात्म लक्ष्य की सर्वांगपूर्णता विश्व शांति और लोक मंगल का आधार यह है कि सब लोग स्वभावतः एक दूसरे के प्रति प्रेम, आत्मीयता, उदारता, सेवा एवं सहानुभूति का व्यवहार करें। एक दूसरे के दुःख-दर्द को समझें और उसे घटाने एवं मिटाने का भी ऐसा ही प्रयत्न करें जैसा कि अपने निज के कष्ट को मिटाने के लिए किया जाता है। दूसरों की उन्नति सुविधा एवं प्रसन्नता में लोग वैसा ही आनंद अनुभव करें जैसे अपने आपको कोई लाभ मिलने पर होता है। दूसरों की प्रसन्नता एवं उन्नति के लिए लोग वैसा ही प्रयत्न करें जैसा अपने उत्कर्ष के लिए किया जाता है। आत्मीयता की, आत्मिक एकता की, इस परिधि को बढ़ाना आध्यात्मिकता का व्यावहारिक बाह्य रूप है।
जिस प्रकार भगवान् के दो रूप हैं, एक निराकार और दूसरा साकार, दोनों का मिला हुआ रूप ही भगवान् का सर्वांगपूर्ण रूप है। इसी प्रकार अध्यात्म का निराकार रूप वह है, जो हमारे अंतःकरण में आस्तिकता, धार्मिकता एवं भक्ति भावना को ओत-प्रोत रखता है। पूजा, उपासना, ध्यान, भजन, स्वाध्याय, चिंतन आदि उसके उपाय हैं। पर इतने मात्र को ही अध्यात्म का पूर्ण स्वरूप नहीं माना जा सकता, यह तो उसका एक अंश मात्र है। पूर्णता तब आती है जब बाह्य वातावरण में भी वह अध्यात्म भावनाएँ साकार रूप से दिखाई देती हैं। जैसे हमारा मन अध्यात्म तत्त्व में डूबा रहने पर सुख प्राप्त करता है, वैसे ही हमारा समाज यदि आध्यात्मिक आदर्शों को अपनाकर धर्म नीति पर चले तो शांति की स्थापना हो सकती है। भीतर उत्पन्न होने वाली दुर्भावनाओं की बाहर फैलने वाली सडाँध ही अशांति के रूप में प्रकट होती है। यदि समाज में उपस्थित अनेक समस्याओं, बुराइयों, उलझनों, संघर्षों का स्थायी समाधान करना है तो मनुष्य के भीतर भरी हुई दुर्भावनाओं की सडाँध को साफ करना पड़ेगा। अन्यथा बाह्य उपचार इसके लिए कुछ विशेष कारगर न होंगे।
अलग-अलग समस्याओं के अलग-अलग उपाय एवं समाधान भी हो सकते हैं, पर वे सब होंगे सामयिक ही, तात्कालिक ही। उनसे स्थायी हल न निकलेगा। रक्त विषैला हो रहा हो तो एक फुसी को मरहम लगाकर अच्छा भले ही कर लिया जाए, अन्य नई फुसियाँ उठने से रोक सकने में बेचारी मरहम कैसे सफल होगी? रक्त को शुद्ध करने वाले उपचार से ही फुसियों की स्थायी चिकित्सा हो सकती है। इसी प्रकार बाह्य जीवन में, व्यापक समाज क्षेत्र में जो अशांति दीख पड़ती है, उसका शमन तभी संभव है जब मूल कारणों को, आंतरिक दुर्भावनाओं को हटाया जाये।
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न