लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

18 पाठक हैं

अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


येना हं नामृता स्यां किमहं तेन कुर्याम

अध्यात्म पथिक कहता है जिसके द्वारा मझे अमृऒत की प्राप्ति न हो उसे लेकर मैं क्या करूँगा?" जो बँटा है, विच्छिन्न है, खंड-खंड है, वही मृत्यु के द्वारा आक्रांत है, अतः इसका त्याग आवश्यक है और उस विश्वात्मा की अनुभूति-उस परम पुरुष, परम-सत्ता जिससे परिपूर्ण यह समस्त ही पूर्ण है, उसे वरण करना आत्मा का, जीव चैतन्य का प्रधान धर्म है। यही परम गति है-

एसास्य परमागतिः एसास्य परमा संपद्।
ऐसोऽस्य परमो लोकः एसोऽस्य परम आनंदः।।


वह परमात्मा ही जीवों की परम गति हैं, परम संपद् हैं। वह ही जीवों का परम लोक एवं परम आनंद हैं।"

एस सर्वेश्वर एस भूताधिपतिरेस भूतपाल।
एस सेतुविधरणा एसां लोकानाम् सम्मेदाय।।


"यह परमात्मा ही सबका ईश्वर है, समस्त जीवों का अधिपति है और समस्त जीवों का पालनकर्ता है। वह विश्वात्मा ही सेतु स्वरूप होकर समस्त लोक को धारण करके ध्वंस से उसकी रक्षा करता है।

अध्यात्म साधना, मानव जीवन का परम लक्ष्य अपने दृष्टिकोण को खंड खंडता, विभिन्नता, संकीर्णता से हटाकर सर्वत्र उस विश्वात्मा, परमात्मा की विराट् सत्ता का दर्शन और उसकी अनुभूति प्राप्त करना मनुष्य के लिए यही सत्य और सनातन राजमार्ग है। जब जाति, गुण, कर्म, स्वभाव, संस्कार आदि समाप्त हो जाते हैं। मानव मात्र में आत्म-दृष्टि से देखने पर सर्वत्र उस विश्वात्मा की प्रतिष्ठापना के दर्शन होते हैं। इतना ही नहीं, प्राणी मात्र को वृक्ष, वनस्पतियाँ, जड़-चैतन्य में उसी परम शक्ति का क्रिया-कलाप दिखाई देता है और तभी अनिवर्चनीय आनंद की प्राप्ति होती है। जिस क्षण उस विश्वात्मा की अनुभूति प्राप्त होगी उसी क्षण समस्त पाप, ताप, अभ्यासजनित संस्कार, आचरणों का अंत हो जायेगा और "अमृत यद्विभाति" अर्थात् अमृत रूप में जो सबमें प्रकाशित है, उसी अमृत में आत्मा का प्रवेश होगा। फिर सर्वत्र आनंद रूपी अमृत के ही दर्शन होंगे। हमारी आत्मा में भूमा स्थित तत्त्व का दिव्य प्रकाश मुखरित हो उठेगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book