विभिन्न आचार्यों द्वारा निर्मित विभिन्न आध्यात्मिक साधनाएँ श्रद्धा को उपजाने के अपने-अपने ढंग के स्वतंत्र प्रयत्न हैं। वे देखने में पृथक हैं तो भी अंततः एक ही उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। इन साधनाओं द्वारा जो फल प्राप्त होते हैं, उनका कारण यह है कि श्रद्धा अत्यंत ही प्रबल एक आध्यात्मिक शक्ति है, उसकी प्रचंड प्रेरणा के कारण छिपी हुई अंतरंग योग्यताएँ प्रस्फुटित हो उठती हैं। साधक इनका चमत्कार देखता है। उसे आम खाने से मतलब न कि पेड़ गिनने से। अध्यात्मवाद शक्तिशाली बनाने की विद्या है, इस विज्ञान का प्रधान कार्य यह है कि अपूर्णता की निर्बलता को दूर करके बल का, अस्थिरता को दूर करके स्थिरता का आविर्भाव करे। समस्त साधनाएँ 'श्रद्धा द्वारा शक्ति उत्पादन' के केंद्र बिंदु की परिक्रमा कर रही है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन सबका अस्तित्व कायम रहा है।
आप आज की परिस्थितियों में देवी-देवताओं की उपासना में, तंत्र-मंत्रों की साधना में, गुरु-शिष्य परंपरा में दिलचस्पी नहीं रखते। हमारा उसके लिए भी आग्रह नहीं है। जब दूसरे रास्ते मौजूद हैं तो अपनी सुविधा और रुचि का मार्ग पसंद करने की आजादी होनी चाहिए। मूल मंतव्य श्रद्धा से है, आप श्रद्धा को अपने अंदर स्थान देते रहिए। अपनी महानता में श्रद्धा रखिए, अपनी पत्नी के प्रेम में विश्वास कीजिए, बालकों की निष्कपटता पर भरोसा रखिये, माता-पिता और गुरुजनों के वात्सल्य पर यकीन कीजिए। इस दुनिया में पाप की अपेक्षा पुण्य अधिक है। अधर्म से धर्म ज्यादा है। भलाई से बुराई कम है, प्रकाश से अंधकार न्यून है, ऐसी मान्यता बनाइए। अविश्वास और आशंका को कम कीजिए, प्रियजनों की सच्चाई पर भरोसा बढ़ाइए।
यह ठीक है कि ठगी, कपट, धोखा-धड़ी और बनावट बहुत है, पर इतनी नहीं—जो त्याग, स्नेह, सरलता और सच्चाई से अधिक हो। यह विश्व ईश्वर की पुण्य कृति है, इसमें उपयोगी और आनंददायक तत्त्व अधिक हैं, ऐसी मान्यता को बढ़ाते जाइए। अपने बारे में भी इसी दृष्टिकोण से विचार कीजिए कि आप समर्थ हैं, दृढ़ प्रतिज्ञ हैं, वचन का पालन करते हैं, सच्चे हैं, ईमानदारी का आचरण करते हैं। भले ही दूसरे दोष मौजूद हैं, पर निःसंदेह आप में अच्छे गुण भी विद्यमान हैं और उनकी मात्रा दोषों की अपेक्षा कहीं अधिक है। अपने सात्त्विक अंशों का प्रसन्नतापूर्वक बार-बार निरीक्षण कीजिए और अपनी उच्चता पर, महानता पर विश्वास करिए, श्रद्धा करिए।
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